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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

डॉ श्याम गुप्त की कविता --ब्लॉग .....

आजकल ,
बड़े बड़े लोग अपने ब्लॉग बना रहे हैं ,
बहाने से एक दूसरे को गरिया रहे हैं,
चिलमन से वाग्बाण चला रहे हैं;
ब्लॉग को अपनी बात कहने का -
बड़ा आधुनिक तरीका एवं ,
बहुत बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं।

हमारे साहित्यकार बन्धु तो-
न जाने कब से ब्लॉग बना रहे हैं ।
जब महादेवी , निराला ,प्रसाद को,
समकालीन आचार्यों के आचार नहीं भाये ;
तो सभी ने -
खेमेबाज़ भूमिका लिखने वालों को -
अंगूठे दिखाए।
अपनी रचनाओं में -
अपने अपने ब्लॉग छपवाए ;
स्वयं भूमिकाएं लिखीं , व-
लम्बे-लम्बे आत्मकथ्य प्रकाशित कराये।

आज भी ,
मेरे जैसे अकिंचन साहित्यकार भी ,
जब स्वनाम धन्य आचार्यों ,
अखाड़े बाजों ,खेमेबाजों को नहीं सुहाते हैं , तो-
स्वयं अपनी रचनाएँ प्रकाशित कराते हैं ।
भूमिकाएं हों या न हों,
आत्मकथ्य रूपी ब्लॉग अवश्य छपवाते हैं।
कोइ माने या न माने-
अपनी बात इसतरह कहे जाते हैं।

हाँ ,इन ब्लागों में ,
समाज, साहित्य व कविता हिताय ,
नवीन प्रगतिशील विचारों को ,
रखा जाता है;
किसी को गरियाकर ,
उसका दिल नहीं दुखाया जाता है ॥

अगीतोत्सव -२०१० में परिचर्चा पर पढ़ा गया आलेख ---- डा श्याम गुप्त