tag:blogger.com,1999:blog-5180892187599976558.post6658198594701396644..comments2023-11-03T15:45:47.907+05:30Comments on श्याम स्मृति..The world of my thoughts... श्याम गुप्त का चिट्ठा..: गडकरी , आईक्यू , विवेकानंद और दाऊद ....डा श्याम गुप्त shyam guptahttp://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5180892187599976558.post-70233003695173656202012-11-07T10:41:32.241+05:302012-11-07T10:41:32.241+05:30सही पांडे जी.... बातों का स्वार्थवश अर्थ न समझ पान...सही पांडे जी.... बातों का स्वार्थवश अर्थ न समझ पाने के कारण वे बतंगड के साथ अनावश्यक दिखावे रूप में बड़ी बन जाती हैं यद्यपि होती नहीं हैं ... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5180892187599976558.post-18184497751479256622012-11-07T10:39:25.176+05:302012-11-07T10:39:25.176+05:30----सही कहा सुज्ञ जी, धन्यवाद ...पहली सीढी पर पै...----सही कहा सुज्ञ जी, धन्यवाद ...पहली सीढी पर पैर रखकर ही आगे अगली सीढी पर चढ़ा/बढ़ा जा सकता है...और पहली सीढी जो जाने बिना पहचाने/परखे बिना अगली पर पैर कौन रखता है ... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5180892187599976558.post-2373276445972688152012-11-06T16:45:20.588+05:302012-11-06T16:45:20.588+05:30डॉ. गुप्त जी,
मुझे भी कुछ अनुचित नहीं लगी 'गड...डॉ. गुप्त जी, <br />मुझे भी कुछ अनुचित नहीं लगी 'गडकरी की कही' <br /><br />मेरा भी जितने लोगों से विमर्श हुआ ... मैंने आपकी ही बातों को रखा। <br /><br />अंतर इतना है कि आपने इसे सार्वजनिक मंच से कहा और मैंने इसे तब कहा जब कोई बिना अक्ल के दौड़ता मिला। <br /><br /><br />एक विद्वान् हुए हैं : डॉ. त्रिलोकीनाथ 'क्षत्रिय' वे अब नहीं हैं। लेकिन उनका कहा मुझे आज भी स्मृत है। वे कहते थे - <br /><br /><br />"जितने भी महापुरुष हुए हैं 'राम' 'कृष्ण' 'बुद्ध' 'महावीर' 'दयानंद' 'विवेकानंद' 'गांधी' सबके ऊपर पाँव रखकर आगे बढ़ो।" बस इतना भर सुन या पढ़ लेने के बाद तो उनकी आफत आ जाती थी। लेकिन उनके निहितार्थ को बहुत कम ने जाना। वे आगे इसका विस्तार भी देते थे। <br /><br />उनका मानना था कि 'नाम से मत चिपको, उसके कार्यों को आचरण में लाओ। आगे की सोच विकसित करो। वहीँ तक मत रह जाओ। आदि-आदि। मैं उनकी बातों से सहमत था। किन्तु जहाँ उनकी बातों का 'आर्यसमाज के पंडितों में निरादर हुआ। वही बात आज मैं गडकरी के साथ होती देख रहा हूँ।प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5180892187599976558.post-26013072176429589682012-11-06T14:46:18.444+05:302012-11-06T14:46:18.444+05:30बातें बड़ी बन जाती हैं।बातें बड़ी बन जाती हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com