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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

ये होता तो वो होता .

ये होता तो वो होता,
यूँ होता तो ये होता ,
ये न हुआ तो वो न हुआ ,
यूँ न हुआ तो क्यों न हुआ।
यह भी कोई बात हुई ,
बात बात की बात हुई।
यह मत सोचो ये न हुआ ,
ये न हुआ तो क्यों न हुआ।
सोचो हमने किया है क्या?
जग को हमने दिया है क्या?
क्यों न देश हित कार्य किया?
क्यों न सत्य -परमार्थ जिया?
तू करता तबतो होता ,
तूने एसा क्यों न किया?

डॉ श्याम गुप्त

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

विधान सभा चुनाव परिणाम

लोकल व अपने व्यक्तिगत लाभ के पक्ष मैं वोटिंग है। राष्ट्रीय मुद्दों पर कोई नहीं सोच रहा ।

सोमवार, 8 दिसंबर 2008

हिंदू धर्म -पंथ निरपेक्ष

आजकल ही नहीं , सदैव से ही हिंदू धर्म पर यह आक्षेप लगते रहे हैं किहिंदू संगठित व एक नहीं होते , स्वयं हिंदू लोग व हिंदू संगठन ही आलोचना करते रहे हैं कि हम एक नहीं हैं । वास्तव मैं हिंदू धर्म पंथ -सापेक्षी धर्म नहीं है , वह अन्य धर्मों की भांति किसी एक व्यक्ति, या विचारधारा या पुस्तक के पीछे नहीं चलसकताअपितु वह सदा सत्य व धर्म पर चलने वाला धर्म है। अतः किसी एक आवाज़ के पीछे नहीं चलता । सत्य के पीछे ही चलता है। ---सत्यम वदधर्मं चर जो शाश्वत विचार धारा व जीवन धारा है।

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

जोड़ने का धर्म -अनहद हिन्दु-समा.

हाँ हिन्दु धर्म जोड़ने का धर्म है। सामान्य समाज धर्म मैं यह मध्यम मार्गीय है। परन्तु आपातकाल मैं आपद धर्म अपनाना होता है। वह सदैव उच्चव कठोर अतिवादी मार्ग से ही सफलता दिलाता है। राम ,कृष्ण व गांधी ने शौर्य ,प्रेम ,भक्ति व कूटनीति तथा अहिंसा के अतिवादी मार्ग से ही सामाजिक परिवर्तन किए थे। वे सर्वकालिक नेता व सुधारक हुए । अतः ६ दिस .हिन्दु समाज को जोड़ने का दिन था । सम्भ्र्मों व असंगत तुष्टीकरण को बंद कियाजाना चाहिए । विद्वजन सोचें व समझें।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

आतंकवाद= दिलों की दूरी

प्रीतिका एक दीपक जलाओ सखे !
देहरी का सभी तम् सिमट जायगा ।
प्रीति का गीत यदि गुनगुनाओ सखे !
ये ह्रदय दीप भी जगमगा जायगा ।
ये अँधेरा है क्यों ,
विश्व मैं छारहा ?
साया आतंक का ,
कौन बिखरा रहा
राष्ट्र के भाव अंतस सजाओ सखे !
ये कुहासा तिमिर का भी छंट जायगा ।
मन मैं छाया हो ,
अज्ञान- रूपी तमस
सूझता सत-असत,
भाव कुछ भी नहीं।
ज्ञान का दीप तो इक जलाओ सखे !
वाल - रवि से छितिज़ जगमगा जायगा।

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

कृष्ण की आवश्यकता है.

कृष्ण जो नेत्रत्व को मोहमुक्त कराकर उसे स्वधर्म का भान कराये, उसके अंतर्मन मैं इच्छा व संकल्प शक्ति को जगाये और कहे-- नपुंसक मत बन पार्थ , दुर्वलता त्याग , उठ खडा हो , युद्ध कर।

नेताओं पर टिप्पणियाँ -मुंबई हमले के बाद

नेताओं पर टिप्पणियाँ उनकी बुराई खूब की जारहीं हैं ; जनता, मीडिया व सभी लोग ज़रा अपने गरेवान मैं भी झाँक कर देखें वे स्वयं कहाँ खड़े हैं । नेता जनता से ही आते हैं .यदि वे नाकारा हैं तो जनता स्वयं ही दोषी है। जनता स्वयं क्यों अपने छोटे छोटे कार्यों के लिए नेताओं को तरजीह देती है। उन्हें बिगाड़ने वाले ,नाकारा बनाने वाले हम ही हैं। दूसरों को दोष देना कितना आसान है? आज हम सब , सारी मानवता ,मानवता से गिर गयी है, हर व्यक्ति सिर्फ़ स्वयं के बारे मैं ही सोचता है तो नेता कैसे अपवाद रह सकता है? जो नेता उचित बात कहता है ,कैसे मीडिया के स्वयंभू विद्वान् ( जो शायद एजूकेशन तथा ज्ञान की सबसे निम्न स्तर से आते हैं। ) उनसे अदालत की तरह हाँ या ना कहलवाने की कोशिश करते हैं। रोजाना टी.वीपर देखिये । जनता सोचे और समझे ।