युगों से भारतीय सन्स्क्रिति, भारतीयता, वैदिक धर्म के विरुद्ध षड्यन्त्र होते रहे हैं...यह वास्तव में सत-असत, अच्छाई-बुराई, सदाचारी व्यवस्था- भोगी व्यवस्था में सनातन संघर्ष है...(वस्तुतः अच्छी व्यवस्था के विरुद्ध सदा षड्यन्त्र होते ही रहते हैं--अन्धकार सदा प्रकाश पर हावी होने का प्रयत्न करता रहता है )---समय समय पर अवतारों की अवधारणा व उत्पत्ति इसी के लिये हुई। वर्तमान में--मुगल व अन्य विदेशी विधर्मी आक्रान्ताओं द्वारा तलवार के बल पर इस कार्य को अन्जाम देना शुरू किया, विश्व प्रसिद्द भारतीय पुस्तकालयों, ग्रन्थों, विध्यालयों के नाश द्वारा....तत्पश्चात अन्ग्रेज़ों की सुनियोजित षडयन्त्र्कारी नीति, क्योंकि वे समय क्रमानुसार अधिक चालाक थे , सुनियोजित रूप से भारतीय ग्रन्थों, भारतीय ग्यान,-- प्रत्येक भारतीय विधा चाहे वह सब्जी खाना य बेचना ही हो---को गलत रूप में प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया---विग्यान का, उन्नति का , परीक्षण, प्रयोग,खोज ---आदि सभी का सहारा लेकर, भाषा विग्यान, भौगोलिक-तथ्य, धार्मिक तथ्य, वेदिक-पौराणिक ग्यान के अर्थ-अनर्थ करके , तोड मरोड कर प्रस्तुत तथ्यों द्वारा भारतीय /वैदिक सन्स्क्रिति को निम्न, हेय व भारतीय बातों को असत्य प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया---और यह सुनियोजित षडयन्त्र आज तक चल रहा है और उसमें कुछ अपने भारतीय...काले-अन्गेज़ भी शामिल हैं( बास्तव में कोई भी चाल अपने देश द्रोही लोगों के मिले बिना पूरी हो ही नहीं सकती)।
इसी का एक नया स्वरूप ब्लोग की दुनिया पर भी अवतरित हुआ है--- कोई डा अनवर ज़माल हैं, जो स्वयं को हिन्दू-ग्रन्थों ..वेद, उपनिषद, पुराणों का ग्याता व स्वयं को संसार में धर्म, हिन्दूधर्म और भारत का एक मात्र उद्धारक भी घोषित करते रहते हैं।परन्तु वास्तव में उनका उद्देश्य वैदिक-ग्यान व हिन्दुओं को उनकी, उनके ग्रन्थों, उनके धर्म, शास्त्रों, रीति-रिवाज़ों की अनर्थ मूलक कमियां दिखा कर इस्लाम का सुनियोज़ित प्रचार करना है......वे सामुदायिक ब्लोगों पर स्वयं तो धार्मिक( मूलतः हिन्दुओ के) निन्दा के आलेख लिखते रहते हैं प्रश्न पूछते रहते है परन्तु अन्य लोगों के उत्तर व टिप्पणियों और पोस्टों पर अशोभनीयभाषा व उत्तेज़नात्मक शब्दों का प्रयोग करके विवादों को जन्म देते हैं व सभी अन्य लोगों की पोस्ट को ईश-निन्दा घोषित करते रहते हैं-ताकि अन्य लोगों की पोस्टें धार्मिक -विवादित घोषित होजायं और ब्लोग एड्मिनिस्त्रेटर व लेखक आदि डर कर या विवाद से बचने के लिये ( जैसे लाल चौक पर देश का तिरन्गा झन्डा फ़हराने का सरकारी डर व तुष्टीकरण नीति)---- हिन्दू/ वैदिक धर्म, विग्यान ,साहित्य पर कोई बात ही न कर पाय व सब लोग लिखना ही बन्द करदें......और उनका मूल उद्देश्य सफ़ल हो.....। आश्चर्य की बात है कि अनवर जी के व्यर्थ के कुतर्कों आदि का किसी भी मुस्लिम या इस्लामी विद्वान ने उत्तर व टिप्पणी नहीं दी। मैनें व हरीश जी व कुछ अन्य ने प्रति-उत्तर दिये तो अनवर जी अशोभनीय भाषा का प्रयोग करने लगे , ताकि विवाद उत्पन्न हो और वे अपने मूल उद्देश्य में सफ़ल हों।
एसे लोग न सिर्फ अन्य धर्म व मानवता अपितु स्वयम अपने धर्म/समाज के लिए खतरा होते हैं क्योंकि इससे सामाजिक वैमनष्य फैलता है एवं क्रिया-प्रतिक्रया उत्पन्न होती है | जब तक स्वयम उनका अपना समाज व धर्म उनका बहिष्करण व प्रतारण नहीं करेगा अपनी विश्वसनीयता नहीं बना पायेगा |
अनवर ज़माल जी यह भी कहते हैं कि वे ईश-निन्दा के विरुद्ध अवश्य बोलेंगे और एक अकेले वे ही धर्म व ईश्वर के बारे में सब को ग्यान दे सकते हैं.....लगता है आजकल ईश्वर अपनी रक्षा स्वयं नही करपारहा अतः उसने अपने ऎजेन्ट रख छोडे है स्वयं के प्रचार व रक्षा के लिये। तभी तो घर घर, गली-गली, नगर-नगर, महानगरों में भी पन्डे-पुजारी-बाबा-संत-मौलवी-मुल्ला-पादरी, अपनी दुकानें खोले हुए बैठे हैं जो विभिन्न अनाचारों में भी लिप्त पाये जाते हैं।
सदा की भांति यह भी एक सुनियोजित षडयन्त्र है ताकि वैदिक धर्म, शास्त्र, ग्यान, ग्रन्थों पर लिखना बन्द होजाय व उनके विरुद्ध कुप्रचार को खुली भूमि मिलती रहे, और प्रकाश का दीप हाथ में लिये दुनिया को पुनः राह दिखाने को तत्पर यह भारतदेश फ़िर से अग्यान के अन्धकार में समाने लगे.........समझें.....फ़िर न कहना हमें खबर न हुई....