....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
माँ तेरे ही चित्र पर नित-नित पुष्प चढ़ायं |
मिश्री सी वाणी मिले, मंत्री पद मिलि जाय ||
श्याम खडा बाज़ार में, देखे सबका हाल,
चोर लुटेरे सब सुखी, सच्चा है बेहाल |
चाहे जो कुल जनमियाँ, करनी जो भी होय |
नेता-मंत्री पद मिला, मुझ सा भला न कोय ||
तेरा मेरा क्या करे, मेरा मेरा जाप |
जो तू ही खुश ना रहे,तो क्या करिहै जाप ||
तुझ को कुछ भी ना मिले, सब कुछ मेरा होय |
इससे बढ़कर जगत में, भली नीति क्या होय ||
चाहे करो प्रशंसा , करो प्रेम संवाद |
पर पानी की बाल्टी, भरना मेरे बाद ||
स्वारथ में ही छिपा है, अर्थ प्राप्ति का भेद |
परमारथ को भूलकर, परम-अर्थ को देख ||
घर को सेवै सेविका, पत्नी सेवै अन्य |
छुट्टी लें तब मिलि सकें, सो पति-पत्नी धन्य ||
निषिद चाकरी अब कहाँ, अब चाकर हर कोय |
इक दूजे को लूट कर, जन-जन हर्षित होय ||
भाँति-भाँति के रूप धरि, खड़े मचाएं शोर |
किसको हम सच्चा कहें, किसको कह दें चोर ||
कवि, बन पायं जो मसखरे, सकें रात भर गाय |
बजें तालियाँ ज्यों रहे, नट सरकस दिखलाय ||
माँ तेरे ही चित्र पर नित-नित पुष्प चढ़ायं |
मिश्री सी वाणी मिले, मंत्री पद मिलि जाय ||
श्याम खडा बाज़ार में, देखे सबका हाल,
चोर लुटेरे सब सुखी, सच्चा है बेहाल |
चाहे जो कुल जनमियाँ, करनी जो भी होय |
नेता-मंत्री पद मिला, मुझ सा भला न कोय ||
तेरा मेरा क्या करे, मेरा मेरा जाप |
जो तू ही खुश ना रहे,तो क्या करिहै जाप ||
तुझ को कुछ भी ना मिले, सब कुछ मेरा होय |
इससे बढ़कर जगत में, भली नीति क्या होय ||
चाहे करो प्रशंसा , करो प्रेम संवाद |
पर पानी की बाल्टी, भरना मेरे बाद ||
स्वारथ में ही छिपा है, अर्थ प्राप्ति का भेद |
परमारथ को भूलकर, परम-अर्थ को देख ||
घर को सेवै सेविका, पत्नी सेवै अन्य |
छुट्टी लें तब मिलि सकें, सो पति-पत्नी धन्य ||
निषिद चाकरी अब कहाँ, अब चाकर हर कोय |
इक दूजे को लूट कर, जन-जन हर्षित होय ||
भाँति-भाँति के रूप धरि, खड़े मचाएं शोर |
किसको हम सच्चा कहें, किसको कह दें चोर ||
कवि, बन पायं जो मसखरे, सकें रात भर गाय |
बजें तालियाँ ज्यों रहे, नट सरकस दिखलाय ||