....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
यह आदि-सृष्टि कैसे हुई, ब्रह्मांड कैसे बना एवं हमारी अपनी पृथ्वी कैसे बनी व यहां तक का सफ़र कैसे हुआ, ये आदि-प्रश्न सदैव से मानव मन व बुद्धि को निरन्तर मन्थित करते रहे हैं । इस मन्थन के फ़लस्वरूप ही मानव धर्म, अध्यात्म व विग्यान रूप से सामाजिक उन्नति में सतत प्रगति के मार्ग पर कदम बढाता रहा । आधुनिक विग्यान के अनुसार हमारे पृथ्वी ग्रह की विकास-यात्रा क्या रही इस आलेख का मूल विषय है । इस आलेख के द्वारा हम आपको पृथ्वी की उत्पत्ति, बचपन से आज तक की क्रमिक एतिहासिक यात्रा पर ले चलते हैं।...प्रस्तुत है इस श्रृंखला का भाग पांच ...मानव का विकास ...जिसे दो खण्डों में वर्णित किया जायगा.......
खंड अ. मानव का संरचनात्मक विकास तथा खंड ब. मानव का सामाजिक विकास |
इस प्रकार सेनोज़ोइक युग (नव--काल) में .. लगभग 6 मिलियन के आस-पास पाया जाने वाला स्तनधारी छोटा अफ्रीकी वानर के वंशजों में आधुनिक मानव व उनके निकटतम संबंधी, बोनोबो तथा चिम्पान्ज़ी दोनों शामिल थे---कुछ कारणों से एक शाखा के वानरों ने सीधे खड़े होकर चल सकने की क्षमता विकसित कर ली | उनके मस्तिष्क के आकार में तीव्रता से वृद्धि हुई और 2 मिलियन तक, होमो -वंश के पहले प्राणी का जन्म हुआ। इसी समय के आस-पास, आम चिम्पांज़ी के पूर्वजों और बोनोबो के पूर्वजों के रूप में दूसरी शाखा निकली । और जीवन के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा।
मानव के विकास क्रम को निम्न दो खण्डों वर्णन किया जा सकता है-- (अ)
मानव का संरचनात्मक विकास (ब) मानव का
सामाजिक-विकास
यह आदि-सृष्टि कैसे हुई, ब्रह्मांड कैसे बना एवं हमारी अपनी पृथ्वी कैसे बनी व यहां तक का सफ़र कैसे हुआ, ये आदि-प्रश्न सदैव से मानव मन व बुद्धि को निरन्तर मन्थित करते रहे हैं । इस मन्थन के फ़लस्वरूप ही मानव धर्म, अध्यात्म व विग्यान रूप से सामाजिक उन्नति में सतत प्रगति के मार्ग पर कदम बढाता रहा । आधुनिक विग्यान के अनुसार हमारे पृथ्वी ग्रह की विकास-यात्रा क्या रही इस आलेख का मूल विषय है । इस आलेख के द्वारा हम आपको पृथ्वी की उत्पत्ति, बचपन से आज तक की क्रमिक एतिहासिक यात्रा पर ले चलते हैं।...प्रस्तुत है इस श्रृंखला का भाग पांच ...मानव का विकास ...जिसे दो खण्डों में वर्णित किया जायगा.......
खंड अ. मानव का संरचनात्मक विकास तथा खंड ब. मानव का सामाजिक विकास |
( सृष्टि व ब्रह्मान्ड रचना पर वैदिक,
भारतीय दर्शन, अन्य दर्शनों व आधुनिक-विज्ञान के समन्वित मतों के प्रकाश में इस यात्रा
हेतु -- मेरा आलेख ..मेरे ब्लोग …श्याम-स्मृति the world of my thoughts...,
विजानाति-विजानाति-विज्ञान , All India
bloggers association के ब्लोग …. एवं e- magazine…kalkion Hindi तथा पुस्तकीय रूप में मेरे महाकाव्य "सृष्टि -ईशत इच्छा या बिगबैंग - एक अनुत्तरित उत्तर" पर पढा जा सकता है| ) -----
(अ) मानव का संरचनात्मक विकास
जल में जीवन व प्रथम कोशिका उत्पत्ति से मत्स्य, स्थलीय प्राणी व वानर बनने के क्रम में --- छुद्र ग्रहों के पृथ्वी पर प्रहार- बम्बार्डमेंट,
महाद्वीपों के निर्माण व विनाश, वातावरण के क्रमिक रासायनिक व भौतिक बदलाव... ज्वालामुखीय
घटनाओं, किसी उल्का-पिण्ड
के प्रभाव, मीथेन
हाइड्रेट के गैसीकरण, समुद्र के जलस्तर में परिवर्तनों, ऑक्सीजन में
कमी की बड़ी घटनाओं या इन घटनाओं के किसी संयोजन आदि -- के कारण पृथ्वी पर
जीवन का लगातार बार-बार निर्माण व विनाश का क्रम
चलता रहा। प्रकृति ने भी हर बार नवीन प्रयोग किेये, प्रत्येक
बार नवीन जीव-सृष्टि उत्पन्न होती रही जो वातावरण व जीवन-संघर्ष के अधिकाधिक उपयुक्त थी। अनुपयुक्त जीव-सृष्टि नष्ट हो जाती थी व शेष.. जीवन को आगे विकसित
करके अपनी आगे की पीढी को अधिकाधिक उपयुक्तता प्रदान करती थी...शारीरिक संरचना व जीवन
प्रक्रियाओं में भी उसी प्रकार परिवर्तन व उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) आते गये। समर्थ प्रजातियों में से कुछ जीव म्यूटेशन या
विपर्यय-प्रज़नन द्वारा नवीन प्रजातियों की उत्पत्ति भी करते
गये। जो प्रथम मानव की उत्पत्ति तक चलता रहा। साथ ही साथ जीवन
के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा।
एक बार पुनः जल ( महासागर ) में ---- यद्यपि --पैलियोशीन काल में, स्तनधारी
जीवों में तेजी से विविधता उत्पन्न हुई, उनके आकार में
वृद्धि हुई और वे प्रभावी कशेरुकी जीव बन गए| परन्तु इन प्रारंभिक जीवों का
अंतिम आम पूर्वज शायद इसके 2 मिलियन वर्षों (लगभग 63 Ma में) बाद समाप्त हो गया| कुछ
ज़मीनी-स्तनधारी महासागरों में लौटकर गए, जिनसे अंततः डाल्फिनों
व ब्लयू-व्हेल आदि महासागरीय जीवन का विकास हुआ | ऊपर---चित्र-१---जलीय जीव से मत्स्य एवं बानर व मानव की उत्पत्ति का क्रम .... चित्र-२.. जलीय-जीव
से
मानव-आकृति तक के क्रमिक उत्पत्ति-विकास क्रम का चित्रान्कन
इस प्रकार सेनोज़ोइक युग (नव--काल) में .. लगभग 6 मिलियन के आस-पास पाया जाने वाला स्तनधारी छोटा अफ्रीकी वानर के वंशजों में आधुनिक मानव व उनके निकटतम संबंधी, बोनोबो तथा चिम्पान्ज़ी दोनों शामिल थे---कुछ कारणों से एक शाखा के वानरों ने सीधे खड़े होकर चल सकने की क्षमता विकसित कर ली | उनके मस्तिष्क के आकार में तीव्रता से वृद्धि हुई और 2 मिलियन तक, होमो -वंश के पहले प्राणी का जन्म हुआ। इसी समय के आस-पास, आम चिम्पांज़ी के पूर्वजों और बोनोबो के पूर्वजों के रूप में दूसरी शाखा निकली । और जीवन के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा।
चित्र-३—मानव के पूर्वज की विभिन्न शाखाये….
आधुनिक मानव (होमो सेपियन्स ) की उत्पत्ति--- लगभग 200,000
वर्ष पूर्व या और अधिक पूर्व अफ्रीका में हुई |
आध्यात्मिकता के संकेत देने वाले पहले मानव - नियेंडरथल वे अपने मृतकों को दफनाया करते थे, अक्सर भोजन या उपकरणों
के साथ | परन्तु इसका कोई वंशज शेष नहीं बचा
|
अधिक परिष्कृत विश्वासों के साथ मानव - क्रो-मैग्नन - गुफा-चित्रों, पत्थर की कुछ आकृतियां बनाने वाले व जादुई या धार्मिक
महत्व वाले मानव की उत्पत्ति लगभग 32,000
वर्ष के
उपरान्त ही लगभग हुई होगी क्योंकि गुफ़ा चित्र ३२०००
वर्ष तक नहीं मिलते। क्रो-मैग्ननों ने अपने पीछे पत्थर की कुछ आकृतियां जैसे विलेन्डॉर्फ का
वीनस, भी छोड़ी हैं|
11,000
वर्ष पूर्व की अवधि तक आते-आते, होमो सेपियन्स विश्व
भर में फ़ैल गए व
दक्षिणी-अमरीका के दक्षिणी छोर तक पहुंच गये, जो कि अंतिम निर्जन
महाद्वीप था | औज़ार व हथियार आदि उपकरणों का प्रयोग और
संवाद में सुधार जारी रहा और पारस्परिक संबंध अधिक जटिल होते गए |
यद्यपि अभी तक मानव का प्रथम अवतरण अफ़्रीका में माना जाता रहा है …. परन्तु आधुनिकतम खोजों से मानव का उद्भव व विकास एशिया से ही सिद्ध होता है। प्रोसीदिंग्स ऑफ
नॅशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज के अनुसार -- म्यामार में अन्थ्रोपोइड्स... [ मानव के पूर्वज ..बानर, (मंकी ) , लंगूर
(एप्स) व पूर्व-मानव ]... के दांतों के जीवाश्म (फौसिल) प्राप्त हुए हैं जो
अफ्रीका व एशिया के ‘मिसिंग लिंक्स ‘ हैं| वे एशिया में उत्पन्न हुए व अफ्रीका में स्थानांतरित होकर गए|