आंखों की राह आए वो दिल मैं समा गए ।
कैसे बताएं कब मिले कब दिल मैं आ गए ।
हम चाहते ही रह गए ,चाहें नहीं उन्हें ,
वो हाथ लेकर हाथ मैं क़समें दिला गए।
अब क्या कहें क्या ना कहें मजबूर यूँ हुए ,
सब कुछ तो उनसे कह गए,बातों मैं आ गए।
कातिल थी वो निगाह ,शातिर थे वो निशाने ,
घायल किया ,बेसुध किया ख़्वाबों मैं छा गए।
इतनी ही है बस आरजू ,अब हमारी श्याम ,
सच कहिये हम भी आपकी चाहों को भा गए। ---डॉ श्याम गुप्त
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
सम्पादकों के लेख
कमजोर प्रधान मंत्री की मज़बूती --हि समा आलेख हरजिंदर ----इस राजनेतिक आलेख पर हमें यहाँ नहीं कहना है। हमें कहना है किपहले समाचार पत्रों मैं एक ही सम्पादकीय होता था ,सम्पादक अपनी बात उसी मैं ही कहता था। शेष पत्र का स्थान समाचारों व अन्य विविध क्षेत्र के विद्वानों के विचारों के लिए होते थे ।
अब तो सम्पादक, उपसंपादक, सहायक -सभी स्वयं ही अपने लेख अपने ही पत्र मैं छपवाते रहते हैं। और ये सहायक सम्पादक में भी वरिष्ठ ,कनिष्ठ क्या है ?
लेखक ने एक जादूगर बांसुरी वाला -चूहों व बच्चों को मोहित करने वाली अंगरेजी कथा का जिक्र किया है , हिन्दी ,हिन्दुस्तान ,हिन्दुस्तानी कथाएं , कृष्ण की बांसुरी से मोहित होनेवाली गायों की कथा को कौन याद रखे ? और क्यों ?, भारतीयता की बातें -च ..च ..
अब तो सम्पादक, उपसंपादक, सहायक -सभी स्वयं ही अपने लेख अपने ही पत्र मैं छपवाते रहते हैं। और ये सहायक सम्पादक में भी वरिष्ठ ,कनिष्ठ क्या है ?
लेखक ने एक जादूगर बांसुरी वाला -चूहों व बच्चों को मोहित करने वाली अंगरेजी कथा का जिक्र किया है , हिन्दी ,हिन्दुस्तान ,हिन्दुस्तानी कथाएं , कृष्ण की बांसुरी से मोहित होनेवाली गायों की कथा को कौन याद रखे ? और क्यों ?, भारतीयता की बातें -च ..च ..
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