ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 13 मार्च 2014

प्रेम अगीत.....

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

१.

गीत तुम्हारे मैंने गाये

अश्रु नयन में भर भर आये |

याद तुम्हारी घिर घिर आयी,

गीत नहीं बन पाए मेरे |

अब तो तेरी ही सरगम पर,

मेरे गीत ढला करते हैं|

मेरे ही रस छंद भाव सब,

मुझसे ही होगये पराये ||

२.

श्रेष्ठ कला का जो मंदिर था

तेरे गीत सजा मेरा मन |

प्रियतम तेरी विरह पीर में,

पतझड़ सा वीरान होगया |

जैसे धुन्धलाये शब्दों की ,

धुंधले अर्ध मिटे चित्रों की ,

कलावीथिका एक पुरानी  ||

३.

तुम जो सदा कहा करती थीं ,

मीत सदा मेरे बन रहना |

तुमने ही मुख फेर लिया क्यों,

मैंने तो कुछ नहीं कहा था |

शायद तुमको नहीं पता था ,

मीत भला कहते हैं किसको |

मीत शब्द को नहीं पढ़ा था,

तुमने मन के शब्द कोष में ||

४.

बालू से सागर के तट पर,

खूब घरोंदे गए उकेरे |

वक्त की ऊंची लहर उठी जब,

सब कुछ आकर बहा लेगयी

छोड़ गयी कुछ घोंघे-सीपी ,

सजा लिए हमने दामन में |||