-----कृष्ण और  -----ललिता चन्द्रावली राधा का त्रिकोण ----- --- प्रेम, तपस्या एवं योग-ब्रह्मचर्य का उच्चतम आध्यात्मिक भाव-तत्व ----
             
           स्त्रियों के सहयोग के बिना कोई सामाजिक या राजनैतिक कार्य कहाँ
 संपन्न होपाता है –कृष्ण बचपन से ही ( साम्राज्यवाद व कंस विरोधी धुरी के 
भावी नायक होने के कारण ) राजनैतिक क्रियाकलापों में संलग्न थे | -------क्योंकि पुरुषों पर सदैव राज्य की गुप्तचर दृष्टि रहती है अतः 
उन्होंने
 स्त्रियों को (गोपिकाओं को) अपने दल-बल में सम्मिलित किया एवं 
विभिन्न सामाजिक क्रिया कलापों ( लीलाओं ) के रूप में मथुरा के विरुद्ध 
राजनैतिक अभियान का संचालन किया | 
 -------उन्हें समस्त गोपिकाओं 
सहित बचपन से ललिता, तत्पश्चात राजा वृषभानु के भाई चंद्रभानु महाराज की 
पुत्री चन्द्रावली एवं युवावस्था में वृषभानु सुता होने के कारण राधिका, 
ब्रजेश्वरी राधा; जो अपने पद-स्थिति, समर्पण व सामाजिक कृतित्वों से सब पर 
छा गयी; इन 
सबका अपने अपने सखि-यूथों सहित इस कार्य में पूर्ण सहयोग 
प्राप्त हुआ | \\
               वास्तव  में वह काल महिलाओं की स्वतंत्रता व
 इच्छाओं के दीर्घकालीन शमन से उत्पन्न विरोध-स्वर के उठने का था | 
श्रीकृष्ण उस सामाजिक उत्थान के नेता बनाकर उभरे एवं तात्कालिक परिस्थिति 
का राजनैतिक लाभ भी उठाया| ये सारी लीलाएं, क्रियाकलाप उसी का अंग थे| 
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पुरुष-प्रधान समाज में कृष्ण  उनके अपने हैं जो उनकी उंगली पर 
नाचते है, स्त्रियों के प्रति जवाब देह हैं, नारी उन्मुक्त ,उत्थान के 
देवता हैं। 
                             सूरदास ने राधा के अतिरिक्त ललिता का विशेष रूप से उल्लेख किया है और साथ ही चन्द्रावली का भी।
 ------- ललिता को राधा की परम प्रिय, घनिष्ठ सखियों के रूप में 'मान' और 
'खण्डिता' के प्रकरणों में चित्रित किया गया है। 'खण्डिता' प्रकरणों में इन
 दो के अतिरिक्त सूरदास ने 'शीला', 'सुखमा', 'कामा', 'वृन्दा', 'कुमुदा' और
 'प्रमदा' का भी उल्लेख किया है। 
 --------गोपियों में कृष्ण के प्रेम 
की अधिकारिणी इन्हें ही माना गया है। परन्तु इनमें से 
किसी का राधा से 
ईर्ष्याभाव नहीं था। कृष्ण के प्रेम हेतु ये विभिन्न भाव प्रतिद्वंदिता, 
आपसी द्वेष आदि उनके लिए सुख व आनंद के स्रोत हैं |.\
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यहाँ हम इस प्रेम त्रिकोण के बारे में अपनी बात कहेंगे -----
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| ललिता | 
१.ललिता ---        जब जहां कृष्ण की बात होती है राधा का नाम आता है| सच भी है, राधा-कृष्ण अटूट एकात्मकता, एक ही महाभाव की भाँति एक ही हैं | 
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 --------परन्तु वस्तुतः श्रीकृष्ण की बचपन की मूल सखी, प्रेमिका, सहयोगी 
ललिता जी हैं जो राधाजी की प्रतिच्छाया होने के साथ, लोक साहित्य में 
प्रभावी उपस्थिति के बावजूद जन साहित्य व जन मन से उनकी छाया में गुम 
होजाती हैं |
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             नित्य बिहारी राधा-कृष्ण की ललिता 
अभिन्न सहचरी हैं।    ललिता जी राधाजी की सबसे प्रधान सखी है जो कि 
सर्वश्रेष्ठ थी । वे राधाजी से २७ दिन बड़ी थीं| ललिता जी की आज्ञा बिना न 
राधिका जी के स्वपक्ष में, न रास में ही प्रवेश होसकता है| इनके प्रयत्नों 
से ही राधा-माधव का मिलन हुआ| जब उन्हें पता चलता है भगवान गोवर्धन पर आते 
है । तो वो राधा जी को वृदांवन से मिलाने के लिए वहाँ लेकर आती है । हर 
प्रयास करती है । 
     -------- ललिता जी के अंग की कांति गौरोचन के 
समान शुभ्र है, वर्ण लालिमा युक्त पीतवर्ण है | वे मोर के पंख सदृश्य रंग 
के वस्त्र धारण करती हैं| 
      --------- ललिता जी का जन्म यावट गाँव 
मे हुआ उनका निवास स्थान “ऊचा गाँव” है उनके पिता विशोक और माता शारदा है ।
 और भैरव नाम के गोप के साथ उनका विवाह हुआ |
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ललिता जी राधा रानी की सहचरी के अतिरिक्त इनका खंडिका नायिका के रूप में भी
 चित्रंण होता है मतलब सेविका के रूप मे राधा माधव के साथ आती है  और 
कभी-कभी नायिका बनकर कृष्ण जी के साथ विहार करती है ।
 ------- ललिता जी
 एक सफल दुति के अनुरूप, मान रूप, तीक्ष बुद्वि वाली, वाकचातुर्य, 
आत्मीयता, नायक को रिझाने वाली व्यक्तित्व सौन्दर्य वाली है । बिलकुल राधा 
रानी के जैसी ही है..... ललिता जी कोई सामान्य सखी नहीं है ये राधा जी 
कायारूपा है | 
 --------इनका अन्य नाम अनुराधा भी है |  ललिता जी की आठ
 प्रधान सखी कही गई है - रत्नप्रभा, रतिकला, सुभद्रा, चंद्र्रेखिका, 
भद्र्रेखिका, सुमुखी, घनिष्ठा, कल्हासी, कलाप्नी | 
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      जब 
भगवान शिव महारास में सम्मिलित होने के लिए आए तो ललिता जी ने प्रवेश देने 
से मना कर दिया कि यहाँ ब्रज में कृष्ण के अलावा कोइ पुरुष नहीं प्रवेश पा 
सकता | भगवान् शिव ने कहा तो मैं क्या करूं, कृष्ण हमारे आराध्य हैं | 
ललिता जी ने उन्हें गोपी का श्रृंगार कराया, चोली पहनायी, कानों में 
कर्णफूल व घूंघट डाला, युगल मन्त्र दिया, तब प्रवेश हुआ | अतः ललिता जी शिव
 की गुरु होगयीं |
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      तब योग के देवता शिव ने ललिता से 
कहा कि उसकी कृष्ण के प्रति यही एक तरफ़ा साधना उसे वहां तक लेजायगी जहां 
राधा अभी नहीं पहुँची है | आज जहां ललिता है वहीं एक दिन राधा भी होगी | 
ललिता विस्मय में रह गयी थी |
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             वास्तव में कृष्ण की बचपन की सखी, प्रेमिका व अभिन्न मित्र ललिता थी | 
 ------बिशाखा, चित्रा, चम्पकलता, इन्दुलेखा, तुन्ग्विद्या, रंगदेवी, वासुदेवी सभी ललिता के साथ बड़ी हुईं| 
 --------सभी एक साथ नंदगांव के कृष्ण के सख्य में बड़ी हुईं, वे गोप कन्या 
थीं, सभी में गोपी-प्रेम भावना थी, कभी कृष्ण के लिए उनमें अलग आत्मा की 
सीमा खड़ी नहीं हुई, उनके लिए कृष्ण सभी के हैं, कभी यह भावना नहीं आई की 
कान्हा केवल मेरे हैं, कान्हा के लिए सुख व वेदना साझी थी उन सबके लिए |
           राधा अपनी माता के देहांत के बाद ननिहाल में रही, उसके पिता 
अपनी दूसरी पत्नी के साथ वृन्दावन आगये | राधा युवावस्था में आई और 
स्वच्छंदता से घूमती थी| संयोग से कृष्ण भी वृन्दावन आगये |
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अतः यह संयोग ही था कि राधा युवावस्था में वृन्दावन आई और सब पर छागई, वह 
इस तरह कृष्ण की ओर खिची कि कृष्ण का मन भी मोहित होगया| 
 
--------ललिता अपनी गति में रह गयी, जब तक उसके भीतर ज्वार उठता, कृष्ण 
कहीं और बह गए, पर ललिता की गति में एक स्थिरता थी कृष्ण उससे अपनी हर बात 
कह पाते हैं| वो वृन्दावन छोड़कर जाने वाले हैं यह बात वो राधा से नहीं कह 
पाते | 
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      वस्तुतः नन्दगाँव के बाद सबसे अधिक सन्देश  ( कंस व
 मथुरा से संवंधित, राजनैतिक सन्देश-नन्द –वसुदेव - कृष्ण व गोप-गोपियों के
 कंस विरोधी संवर्ग के लिए ) यहीं ऊंचागाँव में ही आते थे, 
 -------अतः
 ललिता कृष्ण की अभिन्न मित्र, साथी, सहकर्मी थी उसको यह आभास था कि कृष्ण 
को बड़े होकर मथुरा चले जाना है, अपने सम्पूर्ण समर्पण के बाद भी ललिता 
जानती थी कि वियोग ही उसका सर्वस्व होने वाला है, अतः वह संयोग के हर पल को
 जी लेना चाहती है, भले ही कृष्ण राधा के साथ प्रेमपूर्ण क्यों न हों | 
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        एक बार सखियों ने प्रिया-प्रियतम का श्रृंगार करके ललिता जी के साथ
 श्री श्यामसुंदर के विवाह का आयोजन भी किया था| ललिता जी के मेहंदी रचे कर
 कमल जिस शिला पर टिके होने से उनके चिन्ह उस पर बन गए जो आज भी निधि वन 
में चित्र-विचित्र नामक शिला पर सुन्दर चित्रकारी के रूप में मिलते हैं|
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| ललिता-माधव | 
शरदपूर्णिमा  की महारास लीला में, राधा की आठ सखियों के साथ उसे
 भी सम्पूर्णता का अहसास था, ललिता व् कृष्ण एक ही जगह हैं यह सत्य ही उसे 
सम्पूर्ण कर रहा था, उसके अनुसार—नज़दीकी व दूरी तो सापेक्ष है, यह तो मन का
 विकल्प है | सूर्य तो सौर मंडल के प्रत्येक छुद्र से छुद्र गृह के भी साथ 
है, हम अपने अन्दर एकात्मकता का अनुभव करें न कि द्वैत का ईर्ष्या भाव |
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          देवर्षि नारद के कहने पर एक बार ललिता कृष्ण के साथ झूले पर बैठ 
गयी तो राधा ने मान किया, ललिता सोचती है, किस भावना से यह मान | 
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      --------- क्या कृष्ण का सौन्दर्य इतना पार्थिव है जो एक के प्यार से
 सम्पूर्ण होजाए, कृष्ण की मुरली के आगे धरा का क्या सारे मनोजगत का सुख भी
 फीका पड जाता है, ईश्वर के होने की अनुभूति होजाती है| किसी गहरी सत्ता की
 अनुगूंज बस जाती है, तन मन में | 
       --------   प्रेम इस पर टिका 
नहीं होता है कि दूसरा हमें प्रेम करता है या नहीं | वह तो हमारे अन्दर का 
सत्य उद्भूत प्रेम है न कि प्यार की संभावना से प्रेरित व्यवहार |  यदि  
स्व को जलाकर भष्म कर देना और शिवत्व का अमृत हमारे भीतर असीम प्रेम, 
वैराग्य रूप में नहीं आता तो यह असमर्थता हमारी है,  दोष दैव का नहीं है |
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    राधा को लगता है की वह कृष्ण को सम्पूर्ण रूप से चाहती है तो कृष्ण पर 
किसी अन्य  के प्रेम की छाया न पड़े न कृष्ण किसी और के प्रति झुके | 
 
-----------यदि किसी के सर्वस्व समर्पण होने से प्यार की संभावना खत्म 
होजाती हो तो महाराज कंस के विश्वस्त सैनिकों के नायक अय्यन से तो उसकी 
सगाई कब की होचुकी है, फिर उसके ही कृष्ण के प्रति प्रेम का क्या आधार रह 
पाता है |
     --------- राधा के प्रति कृष्ण का प्रेम राधा को यह सब 
नहीं देखने देता | यदि प्यार न मिले तो तो प्यार की सार्थकता को प्रश्न 
समझने वाली राधा ये नहीं सोच पाती, कि जब एक दिन कृष्ण चले जायेंगे तो यही 
प्रश्न सबसे अधिक राधा के सामने खडा होगा | शिव के वचनों का अर्थ अब ललिता 
समझ रही थी |
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      ----कृष्ण की मुस्कान के भीतर छुपा विषाद राधा
 अपने प्रेम-संयोग के उल्लास में नहीं देख पाती, पर ललिता समझती है, कृष्ण 
एक बार जब अपने हस्त में बने मुद्रा को देखकर जब गंभीर होगये थे तब ललिता 
ने ही उन्हें हौले से धक्का देकर चेताया था| 
    -------- राधा का 
श्रृंगार ललिता जानकर करती थी, कृष्ण को क्या अच्छा लगता है राधा नहीं 
जानती थी जितना ललिता को कृष्ण के बारे में पता रहता था| कृष्ण अब राधा से 
अपनी खुशी के लिए प्यार नहीं करते अपितु वे राधा की बड़ी बड़ी आँखों के 
अश्रुपूर्ण होने से डरते थे | 
       -------जो बात कृष्ण राधा से 
नहीं कह पाए वह उन्होंने ललिता को ही कहा| गहरी बात अपने प्यार से नहीं कह 
पाते वह मित्र से कह देते हैं| कृष्ण भी ललिता से खुले हुए थे, वे उसके 
बचपन से अनुराग को जानते थे|
     ------ तुम्हारे होने पर हम सभी 
जितना प्यार करते हैं, उतना ही हम सब तुम्हें खोने पर भी करेंगे | राधा भी 
करेगी|........ यह सुनकर कृष्ण ललिता को स्थिर एकटक देखने लगे, कृष्ण इसके 
अर्थ में ऐसे डूबे जिसने कृष्ण की पूरी जिन्दगी के ही लिए प्यार का अर्थ 
बदल दिया | दूसरे क्षण ही मुस्कुराते हुए बोले, मेरे जाने के बाद राधा को 
संभाल लेना, उससे अधिक वे कुछ नहीं कह पाए | 
       --------श्रीकृष्ण 
के द्वारिका चले जाने पर ललिता ही राधिका को सम्हालती है | वह अपने 
विरह-व्यथा की अपेक्षा राधिका के विरह व्यथा का अधिक वर्णन करती है |
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----क्रमश -----अगली पोस्ट में --चन्द्रावली----'