....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
पावस गीत ---क्या हो गया..
इस प्रीति की बरसात में ,
भीगा हुआ तन मन मेरा |
कैसे कहें, क्या होगया,
क्या ना हुआ, कैसे कहें ||
चिटखीं हैं कलियाँ कुञ्ज में ,
फूलों से महका आशियाँ |
मन का पखेरू उड़ चला,
नव गगन पंख पसार कर ||
इस प्रीति स्वर के सुखद से,
स्पर्श मन के गहन तल में |
छेड़ वंसी के स्वरों को,
सुर लय बने उर में बहे ||
बस गए हैं हृदय-तल में,
बन, छंद बृहद साम के |
रच-बस गए हैं प्राण में,
इस प्रीति की बरसात में ,
भीगा हुआ तन मन मेरा |
कैसे कहें, क्या होगया,
क्या ना हुआ, कैसे कहें ||
चिटखीं हैं कलियाँ कुञ्ज में ,
फूलों से महका आशियाँ |
मन का पखेरू उड़ चला,
नव गगन पंख पसार कर ||
इस प्रीति स्वर के सुखद से,
स्पर्श मन के गहन तल में |
छेड़ वंसी के स्वरों को,
सुर लय बने उर में बहे ||
बस गए हैं हृदय-तल में,
बन, छंद बृहद साम के |
रच-बस गए हैं प्राण में,
बन
करके अनहद नाद से ||
कुछ न अब कह पांयगे,
सब भाव मन के खोगये |
शब्द, स्वर, रस, छंद सारे-
सब तुम्हारे ही होगये ||
अब हम कहैं या तुम कहो,
कुछ कहैं या कुछ ना कहैं |
प्रश्न उत्तर भाव सारे,
प्रीति रस में ही खोगये ||
कुछ न अब कह पांयगे,
सब भाव मन के खोगये |
शब्द, स्वर, रस, छंद सारे-
सब तुम्हारे ही होगये ||
अब हम कहैं या तुम कहो,
कुछ कहैं या कुछ ना कहैं |
प्रश्न उत्तर भाव सारे,
प्रीति रस में ही खोगये ||