....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्योंकि हमारे समाचार-पत्र, पत्रकार,
ट्रेवेल एजेंसी तो हमें- हमारे
नव-युवाओं-युवतियों, देश के भावी कर्णधारों को मौज-मस्ती के लिए ..शराव - शबाव में मस्त रहने
को ही पर्यटन बता रहे हैं ..सिखा-पढ़ा रहे हैं | देखें चित्रों में ...
जबकि
हमारे देश भर के तमाम विद्वान्, शंकराचार्य जैसे विश्व-मान्य संत-विद्वान् एवं हाल ही में तमाम,
संतो-साधुओं-आचार्यों-विद्वानों –अनुभवी जन-नेताओं, साहित्यकारों आदि ने अप-संस्कृति एवं आचरण के विभिन्न बिन्दुओं
पर विचार व्यक्त किये हैं, जिन पर आधुनिकता से संचारित तमाम युवाओं ने आपत्ति भी
की है |
हमें सोचना होगा कि ये तमाम विज्ञ व
अनुभवी मान्य जनों के विचार आदि सही हैं या आपत्ति करने वाले कम-उम्र
अनुभव व ज्ञान वाले युवा जिन्हें अभी बहुत कुछ सीखना है और ये पत्र-पत्रिकाएं,
पत्रकार, ट्रेवेल एजेंट आदि धंधेबाज संस्थाएं|
ठीक है संत-समाज, नेताओं , अनुभवी लोगों
में भी हाल में ही तमाम कदाचार देखे-सुने गए हैं ..जिससे युवा व बच्चों में
अनास्था, अश्रृद्धा व मति-भ्रम उत्पन्न होता है | निश्चय ही उन्हें अपना आचरण सुधारना होगा |
परन्तु यह भी सत्य है कि यह तो अमेरिका जैसे देश में भी राष्ट्रपति स्तर तक के
तमाम लोग अनाचरण व कदाचार में लिप्त पाए हैं | तो हम क्यों स्व-संस्कृति त्यागकर पाश्चात्य –संस्कृति अपनाएं
व उस पर चलें |
परन्तु इस से सांकृतिक मूल्य, आचरण-अनाचरण,स्वसंस्कृति-अनुसार
आचार-व्यवहार की स्वीकार्यता, विदेशी एवं
अप-संस्कृति की
अस्वीकार्यता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता |