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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

भारत में विदेशी ताकतें किस प्रकार इस देश समाज धर्म संस्कृति को तोड़ने में व्यस्त---डा श्याम गुप्त

                                 ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                                      भारत में विदेशी ताकतें किस प्रकार इस देश समाज धर्म संस्कृति को तोड़ने में व्यस्त हैं एवं हमारे देश-समाज में स्थित विभिन्न वर्ग, जातियां संस्थाएं किस प्रकार इनके बहकावे में आकर अपने देश-धर्म को ही तोड़ने पर आमादा होजाती हैं, इसका एक उदाहरण पेश है ---

The Tales Of Gondwana Samaj की एक पोस्ट में निम्न वर्णन है --

                         इस सृष्टि पर सबसे पहले आदिमानव ने अपनी अधिसत्ता स्थापित कीउसी आदिमानव की संतान हम गोंड आदिवासी हैं। हमारे पूर्वजों ने सबसे पहले प्रकृति को समझा, उसके संचलन के गुणधर्मो को जाना और उसे ही अपने जीवन के संस्कार के रूप में समाहित कर लिया। यही उसका धर्म हो गया। इसलिए आदिकाल से अब तक गोंड आदिवासियों का कोई लिखित धर्म नहीं बन सका।
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प्रकृति के विधान का कोई लिखित स्वरुप इस धरती का तुच्छ मानव कर ही नहीं सकता। प्रकृति की उत्पत्ति और विनाश का कोई लेखा कोई कागज पर रखा ही नहीं जा सकता। प्रकृति से उत्पन्न वस्तु या भौतिक शरीर का अंत निश्चित है। इसलिए गोंड आदिवासी प्रकृति के शाश्वत विधान को ही अपने जीवन का संस्कारिक गुणधर्म मान लिया। यही हमारा सर्वोच्च प्राकृतिक धर्म ही "गोंडी" धर्म है। प्रकृति की तरह अडिग, सच्चा, प्रकृति प्रेमी, प्रकृति को मानने वाले, प्रकृति की पूजा करने वाले, माता-पिता की पूजा करने वाले बूढ़ादेव के रूप में अपने पूर्वजों की पूजा साजा झाड़ के नीचे बैठकर करने वाले कदापि हिन्दू नहीं हो सकते।
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हिन्दू धर्म आदिवासियों की विनाश की कृति है। आदिवासियों का पूज्य "बड़ादेव" है। बड़ादेव अर्थात वह सर्वव्यापी सत्व तत्व जो सृष्टि का निर्माण करता है और विनाश भी। किसी भी नवीन संरचना निर्माण के लिए वैज्ञानिक और सर्वव्यापी आधार है कि किन्ही २ तत्वों को मिलाकर ही तीसरी संरचना का निर्माण किया जा सकता है। वे निर्माणकारी २ तत्व हैं (+) धन तत्व और (-) ऋण तत्व। इन्हें धनात्मक और ऋणात्मक शक्ति भी कहते हैं। इन्हें गोंडी में सल्लें-गांगरे शक्ति कहते हैं. इन दोनों धनात्मक और ऋणात्मक (सल्लें-गांगरे) शक्तियों के संयोग के बिना किसी तीसरी संरचना का निर्माण किया ही नहीं जा सकता। यह गोंडवाना का प्रथम एवं अंतिम वैज्ञानिक प्रमाण है। गोंड आदिवासी समाज द्वारा इस (+) धन शक्ति को "पितृशक्ति" अर्थात पितातुल्य तथा (-) ऋण शक्ति को "मातृशक्ति" अर्थात मातातुल्य माना जाता है। इसलिय सृष्टि के उत्पत्तिकारक सर्वोच्च शक्ति अर्थात संरचना की निर्माण करने वाले, पैदा करने वाले, बनानेवाले माता-पिता के रूप में इनकी पूजा की जाती है।
               वास्तव में कोई जीव, तत्व, ठोस, द्रव्य किसी भी भौतिक-अभौतिक चीजों की संरचनाओं का निर्माण उनके उत्पत्तिकारक माता-पिता के रूप में इन्ही प्राकृतिक शक्तियों के संयोग से ही होता है। चुम्बकत्व से लेकर परमाणु बम की शक्ति भी यही शक्तियां हैं। इसलिए इन्हें उत्पत्ति एवं विनाश की शक्ति अर्थात सबसे बड़ा शक्ति "बड़ादेव" के रूप में इन शक्तियों की पूजा गोंड आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है
                              "गोंडी" धर्म के लिए प्रकृति/सृष्टि से बड़ा कोई ईस्वर का साक्षात् प्रमाण हो ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में उन्हें अन्य धर्मों की तरह "धर्म" और "धर्मग्रंथों" की आवश्यकता ही नहीं है, किन्तु यह सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है कि समस्त आदिवासी समुदायों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए धर्म के रूप में "गोंडी धर्म, आदिम धर्म, आदिवासी धर्म, प्राकृत धर्म" या समाज के बुद्धिजीवियों का कोई अन्य प्रस्ताव हो सकता है, जिसका पंजीयन हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिक्ख धर्म आदि की तरह कराया जा सकता है। इसके लिए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों को तन-मन-धन से प्रयास करना होगा.
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दूसरी ओर हिदू धर्म आदिवासियों का आशियाना (जल, जंगल, जमीन) उजाड़कर काल्पनिक आस्था के भगवानों के मंदिर बनवाने और उसमे मूर्ती बैठाकर पूजा करने में विश्वास रखता है. उसे अपने माता-पिता और मानव से ज्यादा मूर्ती पर विश्वास होता है, इन्शान पर नहीं.
                 हिन्दुवादी लोग अपने माता-पिता और पूर्वजों को उनके देहावसान के बाद उन्हें जलाकर राख कर देता है तथा उसका अस्तित्व मिटा देता है, किन्तु आदिवासी अपने पूर्वजों को इस धरती पर ही दफन करता है और उनकी आत्मा को अपने कुल देवता में शामिल करता है तथा यह मानता है कि उनके पूर्वज उनके साथ घर में निवास करते हैं और कठिन परिस्थितियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं. हिन्दुवादी व्यवस्था में वर्ष में एक बार पितृ पक्ष मनाया जाता है तथा उन्हें बुलाकर भोग दिया जाता है. गोंडी व्यवस्था में प्रतिदिन के भोजन का प्रथम भोग अपने पूर्वजों को चढ़ाया जाता है. उसके पश्चात ही परिवार भोजन ग्रहण करता है. हिंदू मंदिरों में भगवानों की पूजा-पाठ पर विश्वास करता है तथा जन्म देने वाले माता-पिता को वृद्ध होने पर सेवा करने के बजाय वृद्धाश्रम भेज देता है. अर्थात हिंदुओं के लिए माता-पिता भगवन नहीं हो सकते ? यह कार्य विकसित हिंदुओं के लिए आम प्रचलन बन चुकी है. आदिवासी कभी भीख नहीं मांगता. दूसरे धर्मों में भगवान के नाम से भीख मांगने का धंधा बन गया है, एक व्यवसाय बन गया है. हमारा आदमी मेहनत और कर्म पर विश्वास करता है. झूठ नहीं बोल सकता इसलिए व्यवसाय का गुर नहीं सीख सकता. इस कारण सफल व्यवसायी भी नहीं बन सकता और न ही रूपये कमा सकता किन्तु धर्म के नाम पर अपना और अपने परिवार का पेट नही भरता. अपना ईमान भगवान के घर और मंदिरों में नहीं छोड़ता. अपना ईमान कभी नहीं बेचता. जीवन भर अपने कमरतोड़ परीश्रम और कर्मों को ही अपना ईमान और जीवन का परिणाम समझता है. वह किश्मत का रोना नहीं रोता.
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इस तरह बहुत सारी बातें हैं, जो गोंड और हिंदुओं के धार्मिक जीवन व्यवस्थाओं से मेल नहीं खाता. आदिवासियों का अतीत सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात प्रथम मानव के रूप में पुराविद और इतिहासकारों ने दर्ज किया है. उसके करोडों वर्ष बीत जाने के बाद भी अपने मूल संस्कारों को बचाकर रखा है तो वह केवल आदिवासी ही है. इसी संरक्षित सांस्कारिकता के कारण भारत आज दुनिया का सांस्कारिक देश कहलाता है. इसी सांस्कारिकता के कारण भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी है और इसका लाभ समाज, आप और हम सभी आदिवासी समाज उठा रहा है. यदि हम अपने समाज का खाकर दूसरों का नक़ल करेंगे तो हमसे बड़ा समाज को धोखा देने वाला धोखेबाज, गद्दार कोई होगा नहीं. इसलिए हमें अपने समाज पर गर्व करना चाहिए और गर्व से हमें अपना Religion-"Gondi" लिखना चाहिए.
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गोंडी धर्म रजिस्टर्ड नहीं होने के कारण सामने वाला इस बात को उठता है किन्तु संविधान में यह व्यवस्था है कि हम अपना धर्म लिखने और पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं. भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने व्यवस्था दी है कि "Gond" Hindu नहीं है. धार्मिक व्यवस्थाओं के दूरगामी परिणामों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने प्रकरण (सन्दर्भ 1971/MPLI/NOTE-71, त्रिलोकसिंह विरुद्ध गुलबसिया) के महत्वपूर्ण फैसले में निर्णय दिया है कि "It is true that gonds are not hindu. They are governed by Customs Prevalint in the caste.- Justice S.P.Sen, Suprem Court." इसकी प्रति भी उपलब्ध है. अतः माननीय उच्चतम न्यायलय ने गोंड समुदाय कि रीति रिवाज और विशुद्ध प्रकृतिवादी सांस्कारिक संरचना के आधार पर यह निर्णय दिया है. रीति रिवाज और विशुद्ध प्रकृतिवादी संस्कारिक संरचना के धारक गोंड आदिवासी समुदाय किसी भी रूप में हिंदू नहीं हैं. अतः गोंड आदिवासी समुदाय के लोगों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी व्यवस्था का कट्टरता से पालन करना चाहिए कि गोंड आदिवासी समुदाय "हिंदू" नहीं है.
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अब हम इन तथ्यों का क्रमश उत्तर प्रस्तुत करेंगे----
१. इस सृष्टि पर सबसे पहले आदिमानव ने अपनी अधिसत्ता स्थापित की। उसी आदिमानव की संतान हम गोंड आदिवासी हैं।
------विश्व के सभी मानव उन्ही की संतान हैं|
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२. हमारे पूर्वजों ने सबसे पहले प्रकृति को समझा, उसके संचलन के गुणधर्मो को जाना और उसे ही अपने जीवन के संस्कार के रूप में समाहित कर लिया।
---प्रत्येक मानव के वही पूर्वज थे, उन्हीं से सभी संस्कार आदि मिले तो इसमें नया क्या है |
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३.प्रकृति से उत्पन्न वस्तु या भौतिक शरीर का अंत निश्चित है। इसलिए गोंड आदिवासी प्रकृति के शाश्वत विधान को ही अपने जीवन का संस्कारिक गुणधर्म मान लिया। यही हमारा सर्वोच्च प्राकृतिक धर्म ही "गोंडी" धर्म है।
----प्रत्येक मनुष्य, जाति, धर्म यही मानता है | गोंडी जाति/समुदाय है धर्म कैसे होगया, आदि में तो कोइ धर्म ही नहीं था |
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४.प्रकृति की तरह अडिग, सच्चा, प्रकृति प्रेमी, प्रकृति को मानने वाले, प्रकृति की पूजा करने वाले, माता-पिता की पूजा करने वाले बूढ़ादेव के रूप में अपने पूर्वजों की पूजा साजा झाड़ के नीचे बैठकर करने वाले कदापि हिन्दू नहीं हो सकते।
---सभी हिन्दू यही करते हैं, आज भी |
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५.किसी भी नवीन संरचना निर्माण के लिए वैज्ञानिक और सर्वव्यापी आधार है कि किन्ही २ तत्वों को मिलाकर ही तीसरी संरचना का निर्माण किया जा सकता है। वे निर्माणकारी २ तत्व हैं (+) धन तत्व और (-) ऋण तत्व। इन्हें धनात्मक और ऋणात्मक शक्ति भी कहते हैं।
---सभी दुनिया भर यही मानते हैं –इसमें नया क्या है |
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६.उन्हें अन्य धर्मों की तरह "धर्म" और "धर्मग्रंथों" की आवश्यकता ही नहीं है, किन्तु यह सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है कि समस्त आदिवासी समुदायों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए धर्म के रूप में "गोंडी धर्म, आदिम धर्म, आदिवासी धर्म, प्राकृत धर्म" या समाज के बुद्धिजीवियों का कोई अन्य प्रस्ताव हो सकता है, जिसका पंजीयन हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिक्ख धर्म आदि की तरह कराया जा सकता है। इसके लिए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों को तन-मन-धन से प्रयास करना होगा.
----अर्थात समाज, सभ्यता, संस्कृति का विकास होने पर धर्म ग्रंथों की आवश्यकता होती है यही प्रयास अति-प्रारम्भिक काल में होचुका है जिसका परिणाम हिन्दू धर्म है, सदा से आप उसीके अंग हैं | आप अब युगों बाद नया क्यों करना चाहते हैं |
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७.हिन्दू पूर्वजों को उनके देहावसान के बाद उन्हें जलाकर राख कर देता है तथा उसका अस्तित्व मिटा देता है, किन्तु आदिवासी अपने पूर्वजों को इस धरती पर ही दफन करता है और उनकी आत्मा को अपने कुल देवता में शामिल करता है तथा यह मानता है कि उनके पूर्वज उनके साथ घर में निवास करते हैं और कठिन परिस्थितियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं |
----तो आप अपने आपको मुस्लिम, ईसाई आदि मानिए अलग गोंड धर्म की क्या आवश्यकता है | हिन्दुओं में पुरातन व नवीन -दफ़न व दाह, दोनों ही विधियां अपनाई जाती हैंडाह विधि समयानुसार विकास है | आप हिन्दू ही हैं|
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८.गोंडी व्यवस्था में प्रतिदिन के भोजन का प्रथम भोग अपने पूर्वजों को चढ़ाया जाता है. उसके पश्चात ही परिवार भोजन ग्रहण करता है.
---- हिन्दुओं में भी भोजन से पहले यही नीति अपनाई जाती है |
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९.आदिवासियों का अतीत सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात प्रथम मानव के रूप में पुराविद और इतिहासकारों ने दर्ज किया है. उसके करोडों वर्ष बीत जाने के बाद भी अपने मूल संस्कारों को बचाकर रखा है तो वह केवल आदिवासी ही है. इसी संरक्षित सांस्कारिकता के कारण भारत आज दुनिया का सांस्कारिक देश कहलाता है.
----- वही आदिवासी सभी का प्रथम मानव है, भारत आज दुनिया का सांस्कारिक देश कहलाता हैऔर इसका नाम हिन्दुस्थान प्रसिद्द है तो सभी भारतीय जो विदेशी/ या विदेशी धर्म अपनाए हुए नहीं हैं, हिन्दू हुए | गोंड भी |
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१०.भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी है और इसका लाभ समाज, आप और हम सभी आदिवासी समाज उठा रहा है |
---आरक्षण इसलिए दिया गया कि आप लोगों ने विकास नहीं किया अतः अब संकीर्णता से ऊपर उठें व राष्ट्र की मुख्यधारा सर्वाधिक जन में जुड़ें, उसे तोड़ें नहीं |
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११."It is true that gonds are not hindu. They are governed by Customs Prevalint in the caste.- Justice S.P.Sen, Suprem Court."
---स्पष्ट है कि Customs Prevalint in the caste—का अर्थ जाति से है धर्म से नहीं, हिन्दू धर्म में आप के समान कई जातियाँ हैं |
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                           पता नहीं इतने प्रमाण होते हुए भी जैसा ये कह रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कैसे दिया, मेरे विचार से निम्न निर्णय में कहीं भी स्पष्ट नहीं है कि ---गोंड पृथक धर्म है अपितु यह भी स्वीकार किया है कि गोंड एक जाति है, जो हिन्दू धर्म की मिताक्षरा विचारधारा नियम के अंतर्गत हैं| वे ब्राह्मण या क्षत्रिय नहीं हैं अतः शूद्र हो सकते हैं |
------ वस्तुतः यह मुकदमा एक इस विषय से अन्य विषय का केस है जिसमें अपील को डिसमिस कर दिया गया है |
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रति----