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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

ललिता चन्द्रावली राधा का त्रिकोण --- प्रेम, तपस्या एवं योग-ब्रह्मचर्य का उच्चतम आध्यात्मिक भाव-तत्व ----चन्द्रावली सखी----डा श्याम गुप्त

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


-ललिता चन्द्रावली राधा का त्रिकोण --- प्रेम, तपस्या एवं योग-ब्रह्मचर्य का उच्चतम आध्यात्मिक भाव-तत्व ----चन्द्रावली सखी----


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२.चन्द्रावली
             करेह्ला गाँव में रहती थी | गोवर्धन मल्ल की पत्नी थी, जो चन्द्रावली के साथ कभी सखीथरा (सखी स्थल) में कभी गोवर्धन निकट रहते थे |
------- चन्द्रावली वृषभानु महाराज के भाई चंद्रभानु गोप महाराज की लाड़ली पुत्री थी, जो रीठौरा गाँव के राजा थे | अतः वह राधा की चचेरी बड़ी बहन थी| ये श्रीकृष्ण की अनन्य प्रिया सखी थीं| ललिता जी का जन्म स्थान भी करेहला है| ललिता, पद्मा अदि सखियाँ यहाँ चन्द्रावली से श्रीकृष्ण का मिलन कराने हेतु प्रयत्न करती थीं |
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राधा के वृन्दावन आने से पहले चन्द्रावली श्रीकृष्ण की युवावस्था की प्रेमिका व सखी थी, तत्पश्चात खंडिका नायिका |
------भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक चन्द्रावली में ललिता व चन्द्रावली के संवाद इस प्रकार हैं—
नारद- चन्द्रावली के प्रेम की चर्चा आजकल ब्रज की डगर डगर फ़ैली हुई है| उधर श्रीमती ( राधा जी ) जी का भी भय है तथापि श्रीकृष्ण से जल में दूध की भाँति मिल रही हैं किसी न किसी उपाय से श्रीकृष्ण से मिल ही रहती हैं।
ललिता- ब्रज में रहकर इससे वही बची होगी जो ईंट-पत्थर की होगी|
चन्द्रावली—किससे ..
ललिता- जिसके पीछे तेरी यह दशा है |
चन्द्रावली- किसके पीछे मेरी यह दशा है |
ललिता- सखी, तू फिर वही बात कहे जाती है मेरी रानी, ये आँखें ऐसी बुरी हैं की जब किसी से लगती हैं तो कितना भी छिपाओ नहीं छिपती, मेरी तो यह विपद भोगी हुई है |
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               वृन्दावन के श्री रूप गोस्वामी महाराज की कृति राधा-माधव के अनुसार गोपियों में जो श्रीकृष्ण को प्रिय हैं, राधा और चन्द्रावली सर्वश्रेष्ठ हैं| दोनों में राधा जी श्रेष्ठ हैं वे माधव की कायारूपा हैं एवं सभी गुणों में सर्वश्रेष्ठ हैं|
------- रूप गोस्वामी जी के कुछ अन्य कृतियों, गोपाल विजय, के अनुसार ही चन्द्रावली राधा का ही अन्य नाम है | वस्तुतः सभी गोपियाँ राधा के ही विभिन्न भाव-नाम हैं| वे सभी राधा में ही निहित हैं|
------राधा मूल स्वरुप-शक्ति,महाभाव –वामा-हैं तो चन्द्रावली– दक्षिण अर्थात उनकी पूर्तिरूप भाव हैं|
------- यद्यपि चन्द्रावली सदैव ही राधा से कृष्ण प्रेम की प्रतियोगिता में क्रमश पीछे ही रह जाने वाली थी परन्तु फिर भी वह संतुष्ट थी |
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                        वृंदा कहती है कि चन्द्रावली व श्री कृष्ण के प्रेम महिमा कौन जान पाया है कि, जिनका प्रेम कभी कम नहीं होता, यद्यपि राधा के सौन्दर्य व गुणों में दिन प्रतिदिन वृद्धि के साथ कृष्ण में भी वृद्धि होते जाने पर चन्द्रावली के महत्त्व में कमी होने की संभावना है |
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                     श्रीकृष्ण के चले जाने पर गोवर्धन में एक ताल में राधा अपनी प्रतिच्छाया देख कर उसे चन्द्रावली समझती है, और कहने लगती है, अरे चन्द्रावली ! मैं तुझे देखकर कितनी भाग्यवान हूँ, आज भाग्यशाली दिवस है| श्रीकृष्ण ने कितनी बार तुम्हें अपनी भुजाओं में कस कर जकड़ा होगा, जल्दी आओ और अपनी भुजायें मेरे गले में डालकर मेरी प्यासी आत्मा को जल प्रदान करो क्योंकि उनमें अभी भी श्रीकृष्ण के कर्णफूलों की प्रिय सुगंध बसी हुई है |

---क्रमश ---राधा---अगली पोस्ट में....
चित्र---चन्द्रावली ...

 

सृष्टि व मानव जाति के महान समन्वयक—विश्व भर में पूज्य -देवाधिदेव शिव --डा श्याम गुप्त

                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



        सृष्टि व मानव जाति के महान समन्वयक—विश्व भर में 

पूज्य -देवाधिदेव शिव 


        प्राणी व मानव कुल एवं मानवता के मूल समन्वयक त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने समस्त प्राणी जगत ( देव, दनुज, मानव, गंधर्व आदि सभी का आपस में सामाजिक संयोजन करके एक विश्व-मानवकुल की नींव रखी | शिव, जो वस्तुतः निरपेक्ष, सबको साथ लेकर चलने वाले महान समन्वयवादी थे, ने ब्रह्मा, विष्णु के सहयोग से इंद्र आदि देव एवं अन्य असुर आदि सभी कुलों को आपस में समन्वित किया और एक महान मानव समूह को जन्म दिया जो वैदिक-सभ्यता हुई एवं तत्पश्चात देव –असुर सभ्यता कहलाई तथा महाजलप्रलय के पश्चात पुनः उद्भव पर ‘आर्य-सभ्यता |


          यह उस समय की बात है जब भारतीय भूखंड एक द्वीप के रूप में अफ्रीका ( गोंडवाना लेंड) से टूट कर उत्तर में एशिया की ओर बढ़ रहा था | मूल गोंडवानालेंड में विक्सित जीव व आदि-मानव पृथक हुए भारतीय भूखंड के नर्मदा नदी क्षेत्र गोंडवाना प्रदेश में डेनीसोवंस( अर्धविकसित) एवं नियंडर्थल्स (अविकसित) मानव में विक्सित हो रहे थे एवं सभ्यता व संकृति का विकास होरहा था| ये मानव यहाँ विक्सित हुए एवं समूहों व दलों में भारत में उत्तर की ओर बढ़ते हुए, भारतीय प्रायद्वीप के एशियन छोर से मिल जाने पर बने मार्ग से उत्तर भारत होते हुए सुदूर उत्तर-मध्य एशिया क्षेत्र -सुमेरु क्षेत्र व मानसरोवर-कैलाश क्षेत्र पहुंचे एवं पश्चिमी एशिया-योरोप से आये अन्य अविकसित/ अर्धबिकसित मानवों से मिलकर विक्सित मानव, होमो सेपियंस में विक्सित हुए| इसीलिये सुमेरु क्षेत्र को भारतीय पौराणिक साहित्य में ब्रह्म-लोक कहा जाता है, जहां ब्रह्मा ने मानव की व सृष्टि की रचना की| सुमेरु के आस-पास के क्षेत्र ही देवलोक, इन्द्रलोक, विष्णु लोक, स्वर्ग आदि कहलाये जहाँ विभिन्न उन्नत प्राणियों मानवों ने सर्वप्रथम बसेरा किया | 

     शेष अफ्रीकी भूखंड से उत्तर-पश्चिम की ओर चलते हुए आदिमानव अन्य समूहों में योरोप-एशिया पहुंचता रहा, नियंडरथल्स में विक्सित होता रहा परन्तु उत्तर-पश्चिम की अनिश्चित शीतल जलवायु व मौसम से बार बार विनष्ट होता रहा, बचे-खुचे मानव पूर्व-मध्य एशिया के सुमेरु–कैलाश क्षेत्र में उपस्थित विक्सित मानवों से मिल गए|

       जनसंख्या बढ़ने पर, ब्रह्मा द्वारा मानव के पृथ्वी पर निवास की आज्ञा से, मानव सर्वत्र चहुँ ओर फ़ैलने लगे | पूर्वोत्तर की ओर चलकर बेयरिंग स्ट्रेट पार करके ये पैलिओ-इंडियन अमेरिका पहुंचे व सर्वत्र फ़ैल गए| पूर्व की ओर चाइना, जापान, पूर्वी द्वीप समूह आस्ट्रेलिया तक| दक्षिण में समस्त भारतीय भूमि पर फैलते हुए ये मानव सरस्वती घाटी ( मानसरोवर से पंजाब तक) में; जहां दक्षिणी भारत की नर्मदा घाटी में पूर्व में रह गए मानव समूह  उन्नति करते हुए पहुंचे मानवों (जिन्होंने हरप्पा, सिंध सभ्यता का विकास किया|) से इनकी भेंट हुई और दोनों सभ्यताओं ने मिलकर अति-उन्नत सरस्वती घाटी सभ्यता की नींव रखी| 

       यह वह समय था जब सुर-असुर द्वंद्व हुआ करते थे | शिव जो एक निरपेक्ष देव थे सुर, असुर, मानव व अन्य सभी प्राणियों, वनस्पतियों आदि के लिए समान द्रष्टिभाव रखते थे, सभी की सहायता करते थे | उन्हें पशुपतिनाथ व भोलेनाथ भी कहा जाने लगा |

१.शिव ने ही समुद्र मंथन से निकला कालकूट विषपान करके समस्त सृष्टि को बचाया| 

२.शिव ने ही देवताओं को अमृत प्राप्ति पर दोनों ओर बल-संतुलन हेतु असुरों को संजीवनी विद्या प्रदान की | 

३. शिव ने ही मानसरोवर से सरस्वती किनारे आये हुए इंद्र-विष्णु पूजक मानवों एवं दक्षिण से हरप्पा आदि में विक्सित स्वयं संभु सेक शिव के समर्थकों मानवों के दोनों समूहों, के मध्य मानव इतिहास का प्रथम समन्वय कराया, जिसके हेतु वे स्वयं दक्षिण छोड़कर कैलाश पर बस गए पहले दक्ष पुत्री सती से प्रेम विवाह पुनः हिमवान की पुत्री उत्तर-भारतीय पार्वती से विवाह किया तथा अनेकों असुरों का भी संहार किया, और महादेव, देवाधिदेव कहलाये | 

        हरप्पा, सिंध सभ्यता का विकास करने वाले भारतीय मानव ( गोंडवाना प्रदेश के मूल मानव ) जो अपने देवता शम्भू-सेक के पूजक थे अपनी संस्कृति विकसित करते हुए उत्तर तक पहुंचे थे | हरप्पा में प्राप्त शिवलिंग, पशुपति की मोहर आदि इसके प्रमाण हैं| अर्थात शिव मूल रूप से भारत के दक्षिण क्षेत्र के देवता थे |

      यही दोनों समूह मिलकर एक अति-उन्नत सभ्यता के वाहक हुए जो सरस्वती सभ्यता, या वैदिक सभ्यता कहलायी एवं कालान्तर में यही लोग ‘आर्य’ कहलाये अर्थात सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ मानव | जो विकासमान हिमालय की नीची श्रेणियों को पार करके देवलोकों व समस्त विश्व में आया जाया करते थे| जनसंख्या व अन्य विकास की विभिन्न सीढ़ियों के कारण पुनः यही मानव समस्त विश्व में फैले और समस्त यूरेशिया, जम्बू द्वीप या वृहद् भारत कहलाया | आज समस्त विश्व में यही भारतीय मानव एवं उनकी पीढियां निवास करती हैं| 

     विश्व के प्रत्येक कोने में प्राप्त शिवलिंग एवं शिव मंदिर उनके सर्वेश्वर एवं देवाधिदेव, महादेव होने के प्रमाण हैं| अर्थात यह  द्योतक है इसका कि वैदिक सभ्यता व देवता भारत से समस्त विश्व में फैले पश्चिम में चलते गए उनके नाम व स्वरुप बदलते गए |









































महादेव—शिव
 ------ चीनी ड्रेगन एवं बौने मानव के साथ शिव-पार्वती  – बादामी कर्नाटक
                        
  
----अफ्रीका में ६००० वर्ष प्राचीन शिवलिंग
 
--------ओसीरिस मिस्र
 
----रोम में बेबीलोन, मेसोपोटामिया एवं समस्त योरोप में लिंग को प्रायेपस कहाजाता है, |
-----मक्का के काबा में काले ग्रेनाईट का अंडाकार पत्थर शिवलिंग ही है जो शुक्राचार्य ( उशना काव्य, काबा गुरु) द्वारा स्थापित शिव मंदिर है | इसीलिये मुस्लिम शुक्रवार को पवित्र दिन मानते हैं

मक्का स्थित शिवलिंग ---जब यह बिना ढके पूजा जाता था

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--काला पत्थर जिसे चूमा जाता है शिव लिंग का शेष भाग ...

 


 

---टाइटन्स( जिन्हें असुर कहा जाता था ) वे महान शिव भक्त थे रावण की भाँति |
--आयरलेंड में हिल ऑफ़ तारा पर प्राचीन शिवलिंग स्थित है | ब्रोंज(कांसा) बनाने की शक्ति वाला देवता लेकर आया था जो देवी दनु के पुत्र थे | अर्थात कश्यप की पत्नी दनु( दक्ष पुत्री ) के पुत्र जो सारी आयरलेंड में राज्य करते थी एवं डेन्यूब नदी (दनु नदी )के किनारे किनारे सारे योरोप में
आयरलेंड में प्राचीन शिवलिंग
 
तारा पर्वत
 
----दनु के पुत्र दानव –समस्त योरोप में डेन्यूब नदी के किनारे किनारे बसे | डेन्यूब नदी योरोप के विभिन्न देशों में दुनाज़,दूना,दुनेव,दुनारिया,आदि नामों से जानी जाती है | यह योरोप की सबसे बड़ी नदी है वोल्गा के बाद |
--वियतनाम में प्राचीन शिवलिंग
---वेटिकन सिटी रोम में शिवलिंग –इट्रूस्कन म्यूज़ियम में | प्राचीन इटली का नाम इट्रूरिया था| इटली में भी ऐसे लिंग मिले हैं | ये  ईसापूर्व दूसरी से सातवीं सदी के हैं|
 
हरप्पा में मिले तीन शिवलिंग
 
द.अफ्रीका के सुद्वारा में ६००० हज़ार वर्ष प्राचीन कठोर ग्रेनाईट के शिवलिंग
 
नंदी की मूर्ती—इंडोनेशिया
 


रोमन देवता-नेपच्यून की शिव से समानता----हाथ में त्रिशूल शिव का मूल स्वरुप है |
उसके खड़े होने की स्थिति, माया से अप्रभावित शिव की ‘स्थित-‘से मेल खाती है |

वार्सीलोना
 
नेपच्यून का फुहारा ---न्यूरेमबर्ग जर्मनी में

 







नेपच्यून (शिव) –पोलेंड –
 


ग्रीक देवता –पोसीडोंन (शिव)
 



रोम - एमफीट्राईट- –पार्वती-शिव