....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ ....
हे प्रभु ! हमारे जन्मदाता, प्राण-त्राता आप हो |
हैं अल्प ज्ञानी हम मनुज, सब ज्ञान दाता आप हो |
भूलें विषय रत आपको पर आप मत बिसराइए |
हो कृपा सागर यदि प्रभो तो कृपा ही बरसाइये ||
हे नाथ ! इस संसार के हो, आप ही कारन -कारन |
सब जग कृपा से आपकी ही, आप ही तारन -तरन |
यह जगत माया आपकी ही, आप नित धारन-धरन|
कट जायं भव-दुःख नित करे यदि आपका मानव मनन ||
अनुरोध है हरि-गीतिका में छंद एक रचाइए |
सुंदर सरस शब्दावली में, उचित भाव सजाइए |
हों मात्राएँ सोलह-बारह, अंत में लघु-दीर्घ हो |
मिल जाय शुभ-शुचि छंद कोई पूर्ण यह अनुरोध हो ||
त्यौहार प्रिय मानव जगत में सौख्य का आधार है |
उत्सव जहां होते न वह भी भला क्या संसार है |
त्यौहार बिन जीवन-जगत बस व्यर्थ का व्यापार है |
हिलमिल उठें बैठें चलें , यह भाव ही त्यौहार है ||
है कसौटी हर चमन की वह, महकती पावन-पवन |
है मनुजता की कसौटी पर-हित धरम धारन-धारन |
क्या है कसौटी प्रेम की ,युग युग हुआ मंथन-मनन |
है कसौटी की कसौटी हो ,स्वर्ण का प्रतिशत चयन ||
हे प्रभु ! हमारे जन्मदाता, प्राण-त्राता आप हो |
हैं अल्प ज्ञानी हम मनुज, सब ज्ञान दाता आप हो |
भूलें विषय रत आपको पर आप मत बिसराइए |
हो कृपा सागर यदि प्रभो तो कृपा ही बरसाइये ||
हे नाथ ! इस संसार के हो, आप ही कारन -कारन |
सब जग कृपा से आपकी ही, आप ही तारन -तरन |
यह जगत माया आपकी ही, आप नित धारन-धरन|
कट जायं भव-दुःख नित करे यदि आपका मानव मनन ||
अनुरोध है हरि-गीतिका में छंद एक रचाइए |
सुंदर सरस शब्दावली में, उचित भाव सजाइए |
हों मात्राएँ सोलह-बारह, अंत में लघु-दीर्घ हो |
मिल जाय शुभ-शुचि छंद कोई पूर्ण यह अनुरोध हो ||
त्यौहार प्रिय मानव जगत में सौख्य का आधार है |
उत्सव जहां होते न वह भी भला क्या संसार है |
त्यौहार बिन जीवन-जगत बस व्यर्थ का व्यापार है |
हिलमिल उठें बैठें चलें , यह भाव ही त्यौहार है ||
है कसौटी हर चमन की वह, महकती पावन-पवन |
है मनुजता की कसौटी पर-हित धरम धारन-धारन |
क्या है कसौटी प्रेम की ,युग युग हुआ मंथन-मनन |
है कसौटी की कसौटी हो ,स्वर्ण का प्रतिशत चयन ||