....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
माँ चन्द्रिका देवी धाम-लखनऊ
लखनऊ-नई दिल्ली नेशनल हाईवे-24-सीतापुर रोड स्थित बख्शी का तालाब कस्बे से 11 किमी आगे सड़क पर चन्द्रिका देवी तीर्थधाम है। गोमती नदी के समीप स्थित महीसागर संगम तीर्थ के तट पर एक पुरातन नीम के वृक्ष के कोटर में माँ दुर्गा के नौ रूपों के साथ उनकी वेदियाँ चिरकाल से सुरक्षित रखी हुई हैं। जो पत्थर की पिंडियों के रूप में स्थित हैं|
अठारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध से यहाँ माँ चन्द्रिका देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है। अमीर हो अथवा गरीब, अगड़ा हो अथवा पिछड़ा, माँ चन्द्रिका देवी के दरबार में सभी को समान अधिकार है। मेले आदि के व्यवस्थापक कठवारा गाँव के प्रधान होते हैं। महीसागर संगम तीर्थ के पुरोहित और यज्ञशाला के आचार्य ब्राह्मण। माँ के मंदिर में पूजा-अर्चना पिछड़ा वर्ग के मालियों द्वारा तथा पछुआ देव के स्थान (भैरवनाथ) पर आराधना अनुसूचित जाति के पासियों द्वारा कराई जाती है। यह समभाव का एक समेकित उदाहरण है।
चन्द्रिका देवी धाम की तीन दिशाओं उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में गोमती नदी की जलधारा प्रवाहित होती है तथा पूर्व दिशा में महीसागर संगम तीर्थ स्थित है। जनश्रुति है कि महीसागर संगम तीर्थ में कभी भी जल का अभाव नहीं होता और इसका सीधा संबंध पाताल से है।
मान्यताओं के अनुसार – मूलतः कूर्म पुराण एवं स्कन्द पुराण में इनका वर्णन है |
-----सतयुग में दक्ष प्रजापति के श्राप से प्रभावित चन्द्रमा को श्राप मुक्ति हेतु इसी महीसागर संगम तीर्थ के जल में स्नान करने के लिए चन्द्रिका देवी धाम में आना पड़ा था।
-------त्रेता युग में लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के अधिपति लक्ष्मण-उर्मिला पुत्र चन्द्रकेतु को चन्द्रिका देवी धाम के तत्कालीन इस वन क्षेत्र में अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के साथ गोमती पार करते हुए अमावस्या की अर्धरात्रि में जब भय व्याप्त होने लगा तो उन्होंने अपनी माता द्वारा बताई गई नवदुर्गाओं का स्मरण किया और उनकी आराधना की। तब चन्द्रिका देवी की चन्द्रिका ( उजली चांदनी रात ) के आभास से उनका सारा भय दूर हो गया था।
------उन्होंने एक भव्य मंदिर की स्थापना की जो १२वी सदी में विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था |
द्वापर में महाभारतकाल में पाँचों पाण्डु पुत्र द्रोपदी के साथ अपने वनवास के समय इस तीर्थ पर आए थे। महाराजा युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ कराया जिसका घोड़ा चन्द्रिका देवी धाम के निकट राज्य के तत्कालीन राजा हंसध्वज द्वारा रोके जाने पर युधिष्ठिर की सेना से उन्हें युद्ध करना पड़ा, जिसमें उनका पुत्र सुरथ सम्मिलित हुआ था| महाराजा युधिष्ठिर की सेना अर्थात कटक ने यहाँ वास किया तो यह गाँव कटकवासा कहलाया। आज इसी को कठवारा कहा जाता है।
------स्कन्द पुराण के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण के परामर्श पर घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपार शक्ति प्राप्त हेतु माँ चन्द्रिका देवी धाम स्थित महीसागर संगम में तप किया था।
-------आज से लगभग २५० वर्ष पहले यह एक घना वन था | यहाँ के कठवारा गाँव के जमींदार को स्वप्न में चंद्रिका देवी के दर्शन हुए | उन्होंने वर्त्तमान मंदिर की स्थापना की एवं अमावस्या के दिन मेले की व्यवस्था प्रारम्भ की जो आज तक चली आरही है |
इस सिद्धपीठ धाम में बर्बरीक द्वार, सुधन्वा कुण्ड, महीसागर संगम तीर्थ के घाट आदि आज भी दर्शनीय हैं।
-------- वस्तुतः यह प्रागैतिहासिक युग की सप्तमातृकाओं का मंदिर –चंडिका देवी मंदिर है | बृक्ष के कोटर में ध्यान से देखने पर सात पिंडियाँ दिखाई देती हैं, शेष रूप नव-निर्मित हैं | ये चंडी या चंडिका ( नारसिंही ) के नाम से प्रसिद्ध आदिशक्ति अम्बिका दुर्गा ने --रक्तबीज के विरुद्ध सप्त-मातृकाओं के रूप के साथ युद्ध किया था जो वैष्णवी, कुमारी, महेश्वरी, ब्रह्माणी, वाराही, एन्द्री (महेंद्री या शची, वज्री ), चामुन्डा ( चर्चिका या काली ) हैं|
------मही सागर तीर्थ --एक पाताल तोड़ कुआँ -- आर्टीजीयन कुआं है ..जिसका आतंरिक जुड़ाव गौमती से हो सकता है ...
---------गौमती नदी स्वयं भारत की एकमात्र नदी है जो हिमालय की बजाय स्वयं एक पातालतोड कुए से उद्भूत होती है --आदि-गंगा है |
चित्र-१.चंद्रिका देवी मुख्य दर्शन ...२.बाहरी द्वार --मुख्य सीतापुर हाईवे , बक्शी का तालाब पर ...मही सागर तीर्थ में भगवान शिव ...४. मही सागर तीर्थ ...५. मंदिर का द्वार