....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मितवा ! तुमसे मिल जियरा हरषाए ।।
सुख -दुःख में जो धीर बंधाये ।
मन का मीत वही बन पाए,
जियरा से जियरा जुड़ जाए ।
भीड़ पड़े विपदा की भारी,
सूखे संबंधों की क्यारी ।
रिश्ते-नाते काम न आयें ,
मीत सदा ही साथ निभाये ।
मितवा तुम से मिल जियरा हरषाए ।।
पांडव घिरे कष्ट में भारी,
द्रुपुद-सुता बन आर्त पुकारी ।
मीत बने जो कृष्ण मुरारी,
लाज बचाने दौड़े आये ।
ऐसी अनुपम प्रीती-रीति थी ।
सब विधि उनके काम बनाए,
गीता के प्रिय बचन सुनाये ।
मितवा ! तुम से मिल जियरा हरषाए ।।
कृष्ण-सुदामा सखा प्रेम को,
कौन जगत में जो नहिं जाने ।
तीन लोक श्रीनाथ बिहारी ,
दो दो लोक सखा बलिहारी ।
राम सखा केवट की प्रीती,
अमर राम-सुग्रीव प्रतीती ।
राज्य नारि पद भुवन दिलाये,
सारे बिगड़े काम बनाए ।
मितवा ! तुमसे मिल जियरा हरषाए ।।
ऊधो, कृष्ण सखा सुखकारी ,
ज्ञान अहं मन में अति भारी ।
सख्य-प्रेम ब्रजपुरी पठाए,
सारा ज्ञान अहं मिट जाए ।
एक घूँट लोटे का पानी,
पगड़ी बदल मित्र बन जाए ।
घूँट घूँट का क़र्ज़ सखा ही ,
देकर अपने प्राण चुकाए ।
मितवा! तुम से मिल जियरा हरषाए ।।
मीत वही जो मन को धीर बंधाये ।
सुख में दुःख में काम सखा के आये ।
मितवा ! तुमसे मिल जियरा हरषाए ।।