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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 16 मार्च 2011

नील कन्ठ महादेव और टपकेश्वर महादेव...

                                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
         शिव, भोले, शंकर के नाम से अखिल ब्रह्माण्ड में प्रसिद्द, असंख्य नाम वाले , सृष्टि के आदि-देव , सृष्टि के जनक व लिंग रूप में पूजित देवाधिदेव महादेव के द्वादश ज्योतिर्लिंग तो जग-प्रसिद्ध हैं ही , उनके असंख्य मंदिर भारत व विश्व के कोने कोने में स्थित हैं | इसे ही दो महत्वपूर्ण स्थल  यहाँ वर्णित हैं --नीलकंठ महादेव एवं टपकेश्वर महादेव |               
                                         -----नीचे नीलकंठ महादेव मंदिर मुख्य द्वार  और विष पान  करते हुए शिव का चित्र .......................
            नीलकंठ महादेव --प्रसिद्द तीर्थ , दक्ष प्रजापति के महान यज्ञ स्थल व  सती आत्म-दाह स्थल, भगवान शिव के धाम की प्रथम पौड़ी व द्वार -- हरिद्वार, मुनि की रेती  से लगभग २२ किमी दूर गंगा के ऊपर की ओर दायीं ओर स्थित पर्वत पर स्थित है | यही वह स्थान है जहां समुद्र मंथन के समय निकला   महा-कालकूट विष भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था और नीलकंठ कहलाये | हरिद्वार, राम झूला या लक्षमण झूला से  टेक्सी द्वारा १ से डेड़ घंटे में वहां पहुंचा जा सकता है | रास्ते में आधे मार्ग तक गंगा की मनोहर धारा व मनोरम पहाडी मार्ग पर साथ साथ चलती है, जो आगे पर्वत से दूर व दूसरी ओर मार्ग बदल कर चली जाती है|  टेक्सी ठीक मंदिर के निकट तक जाती है और मंदिर के लिए सिर्फ कुछ सीडियां उतरनी पड़ती हैं | मंदिर प्राचीन काल की पहाडी कला व चित्रकारी का बनाहुआ है| यद्यपि पोलीथीन का प्रयोग स्ट्रिक्टली वर्जित लिखा हुआ है परन्तु सब कुछ पोलीथीन की थेलियों में मिलता है | सभी तीर्थ स्थलों का लगभग यही हाल है ।आस-पास का पहाडी दृश्य मनोरम है |
             टपकेश्वर महादेव --- देहरादून से लगभग १० कि मी की दूरी पर , टोंस या तमसा नदी के उद्गम स्थल पर यह अति प्राचीन मंदिर स्थित है | चूने की चट्टानों के पहाड़ के नीचे प्रागेतिहासिक काल की अति संकरी गुफाओं में स्थित इस मंदिर में शिव लिंग के ऊपर सदा पानी टपकता रहता है | सारे मंदिर परिसर में भी इन चूने की चट्टानों से जल टपकता रहता है अतः यह टपकेश्वर महादेव कहलाये|  वर्षा व धाराओं का व एकत्रित जल कभी कभी चूने के साथ मिलकर एकदम सफ़ेद दूध की धारा की भाँति भी निकलता है जिसे संभवतः शिव पर दूध चढना भी मान लिया जाता है | लगातार जल टपकने से इस अति-प्राचीन शिवलिंग में जल एकत्रित होने का स्थान भी बन गया है | किम्ब्दंती है कि रात में यहाँ नागराज इस लिंग पर एकत्रित जल व दूध को पीने के लिए आते है |कुछ लोग देखने का भी दावा करते हैं |