ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 19 मई 2010

डा श्याम गुप्त की कविता ---भरम....

भरम

जहां पर शब्द रुक जाए , अशब्द स्वर भाष होता है।
मूक जब वाच्य होजाए,जन्म अभिनय का होता है।
नहीं होती जहां भाषा, मुखर तब मौन होजाता,
जहां आलेख चुक जाए, वहां संकेत होता है ॥

प्रेम में भाव धारण हो, भक्ति आकार लेती है।
भक्ति से, प्रेम तप से , साधना साकार होती है
नहीं होती कोइ भाषा, ईश के कार्य कारण की ,
भक्त तन्मय हो तन-मन से,कामना पूर्ण होती है


गर्व जब प्रेम-भक्ति का, ज्ञान- अध्यात्म का होता।
वहां सब कुछ सभी हो पर, वहां ईश्वर नहीं होता।
एक तिनका बनाने की , तुझे हिम्मत नहीं रे नर !
बता किस बात का तुझको, तू सब कुछ है भरम होता ॥