नित नए रूप रख आती है।
उस परम- तत्त्व की इच्छा बन,
यह सारा साज सजाती है।
वह लक्ष्मी है, वह सरस्वती ,
वह माँ काली ,वह पार्वती ।
वह महा शक्ति है अणु- कण की
वह स्वयं शक्ति है कण- कण की
वह ऊर्जा बनी मशीनों की ,
विज्ञान ज्ञान- धन कहलाई ।
वह आत्म शक्ति ,मानव मन मैं ,
संकल्प शक्ति बनकर छाई।
वह प्यार बनी तो दुनिया को ,
कैसे जियें , यह सिखलाया।
नारी बनकर कोमलता का ,
सौरभ- घट उसने छलकाया।
--आदि-शक्ति परमेश्वरी ( काव्य- दूत से )
__सीता का निर्वासन ?-----
अहल्या व शबरी ,
सारे समाज की आशंकाएं हैं ;जबकि-
सीता , राम की व्यक्तिगत शंका है।
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है ,
इसीलिये तो,
सीता का निर्वासन होता है।
स्वयं पुरूष का निर्वासन ,
कर्तव्य-विमुखता व कायरता कहाता है ,
अतः , कायर की पत्नी ,
कहलाने की बजाय ,
सीता को निर्वासन ही भाता है। --(काव्य-मुक्तामृत से)
---डॉ श्याम गुप्ता