....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
प्रस्तावना
‘अगीत साहित्य दर्पण’ रचनाकारों के लिए एक मानक ग्रन्थ होगा |
–डा. रंगनाथ मिश्र ’सत्य’....
( डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’...एम.ए,पी.एच.डी )
अध्यक्ष –अखिल भारतीय अगीत परिषद,
सम्प्रति— अगीतायन ई-३८८५,राजाजी पुरम, लखनऊ-१७
मो.९३३५९९०४३५ ...दूभा.०५२२-२४१४८१७
डा सत्य |
डा श्याम गुप्त |
प्रस्तावना
‘अगीत साहित्य दर्पण’ रचनाकारों के लिए एक मानक ग्रन्थ होगा |
–डा. रंगनाथ मिश्र ’सत्य’....
हिन्दी साहित्य को समर्पित, मूलतः
चिकित्सक व सर्जन महाकवि डा श्याम गुप्त द्वारा लिखित ‘अगीत साहित्य दर्पण’ प्रकाशित होकर विज्ञ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत
होने जा रहा है| इसमें लेखक ने अगीत छंद विधा व उसका साहित्यिक पक्ष विस्तार से
लिखने का समुचित प्रयास किया है| डा श्याम गुप्त ने अगीत-विधा में सृष्टि व् जीवन
की उत्पत्ति पर “सृष्टि–ईशत-इच्छा या बिगबैंग” महाकाव्य तथा रामकथा पर आधारित
नारी-विमर्श पर “शूर्पणखा” खंड काव्य का प्रणयन करके अगीत की स्थापना में अपना
अमूल्य योगदान दिया है|
सन
१९६६ ई. में मैंने अपने कुछ सहयोगियों के साथ ‘अखिल भारतीय अगीत परिषद’
साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की| एक पत्रक प्रकाशित करके सारे
देश के प्रवुद्ध रचनाकारों को भेजा, जिसमें सुझाव मांगे गए थे कि अगीत काव्य-विधा
को किस प्रकार स्थापित करके समाज को नयी दिशा प्रदान की जाय| बहुत से सुझाव आये
एवं सैकड़ों नए रचनाकारों ने इस विधा से जुडकर कार्य आरंभ कर दिया |
सन
१९६०-७० के दशक में साहित्यकार-रचनाकार यह नहीं सुनिश्चित कर पाए कि कविता को कौन
सी सही दिशा प्रदान की जाय | कविता के क्षेत्र में अकविता, ठोस-कविता, चेतन-कविता,
अचेतन-कविता, युयुत्सावादी-कविता, खबरदार-कविता, कबीरपंथी, आदि आंदोलन चले| गीत
में नयागीत, नवगीत, अनुगीत जैसे नए-नए आंदोलन आये| इन सब पर विशेष रूप से
पाश्चात्य दर्शन का प्रभाव था| फ्रांस से जो आंदोलन चले वे बंगला साहित्य में आये,
तत्पश्चात उन्हें हिन्दी में अपनाया जाने लगा | इन आन्दोलनों में अस्पष्टता व
सर्वसाधारण के लिए दुर्वोधता झलकती रही| अतः यह आवश्यक हुआ कि कविता में ‘अगीत-काव्य’
को स्वीकार किया जाय |
वैज्ञानिक अन्वेषणों से संसार में दूरी का
महत्व सिमट गया है| विश्व ने जहां इस शताव्दी के पूर्वार्ध में दो महायुद्धों के
दुष्परिणामों को नयी शक्तियों के उभरते शीत-युद्धों की सरगर्मी के रूप में देखा है
वहीं एक सर्वथा नए धरातल पर प्रतिष्ठित युवा-चेतना का उन्मेष भी विभिन्न रूपों में
सामने आया है| स्वतन्त्रता के पश्चात भारतीय समाज और साहित्य में भी इसी
प्रकार अपनी पूर्व-परम्परा से हटकर अधिक चैतन्य व स्वाभाविक होने लगा | हम जानते
हैं कि भारत को भी कई महायुद्धों का सामना करना पडा | इस संक्रांति काल में
युवक-युवतियों में पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने की होड लगी हुई थी| एसी स्थिति में
मैंने २०-२५ सहयोगियों के साथ ‘हिन्दी कविता में अगीत-आंदोलन’ की शुरूआत
की जो युवा चेतना के उन्मेष का दृष्टा था | तब से १९९२ तक पच्चीस वर्षों में अगीत
विधा पर कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए| तदुपरांत हिन्दी के विद्वान समीक्षक डा
विश्वंभर नाथ उपाध्याय, कुलपति कानपुर वि.वि., अ.भा. अगीत परिषद की संरक्षक डा उषा
गुप्ता, पद्मश्री प.बचनेश त्रिपाठी, संगमलाल मालवीय (मास्को), डा लक्ष्मी नारायण
लाल दुबे ( सागर वि.वि.), सुबोध मिश्र,संपादक सफरनामा आदि की प्रेरणा से अखिल
भारतीय अगीत परिषद की की रजत जयन्ती वर्ष पर परिचयात्मक ग्रन्थ “अगीत काव्य
के चौदह रत्न” प्रकाशित कराया
गया| जिसमें चौदह अगीत कवियों १०-१० अगीत प्रकाशित किये गए|
सन १९६६-६७ में जो अगीत का
मेनीफेस्टो प्रकाशित हुआ उसमें यह स्पष्ट कर दिया गया था कि अगीत खोज की और
अग्रसर है उसमें नए रचनाकार बराबर जुडते रहेंगे क्योंकि खोज कभी रूढिगत नहीं होती|
अगीत विधा के रचनाकार किसी ‘वाद’ में विश्वास नहीं रखते किन्तु कोई भी आंदोलन अधिक
दिनों तक चलता है तो वह वाद का रूप ले लेता है | अतः आज ४५-४६ वर्षों बाद हम इसे ‘अगीतवाद’
के नाम से भी पुकार सकते हैं | अगीत विधा का आकाशवाणी , दूरदर्शन, देश-विदेश की
पत्र-पत्रिकाओं द्वारा, शोध-प्रबंधों व कानपुर व लखनऊ के विश्व-विद्यालयों में
परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाने से व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है| साथ ही इस
विधा का विकास कई कोटियों के माध्यम से हुआ है यथा कविता के....शिल्प, मात्रा,
गुणवत्ता, विविध-साहित्य, विषय, भाषा, उपादान व भाव की कोटि |
अगीत काव्य पर दूसरा परिचयात्मक
काव्य-संग्रह १९९३ में “ अगीत काव्य के इक्कीस स्तंभ”. तृतीय संग्रह
अगीतोत्सव -९५ के अवसर पर ”अगीत काव्य के अष्ठादस पथी” एवं चौथा संकलन आजादी के स्वर्ण-जयन्ती वर्ष
१९९७ को गांधी-शास्त्री जन्म-दिवस पर “अगीत-काव्य के सोलह महारथी” के
नाम से प्रकाशित हुआ| अगीत का पांचवा संकलन “ अगीत काव्य के पैंतालीस सशक्त
हस्ताक्षर “ के नाम से प्रकाशित होकर शीघ्र प्रस्तुत किया जाएगा|
‘अगीत काव्य के चौदह रत्न’.. व ‘अगीत
काव्य के इक्कीस स्तंभ’ एवं ‘अगीत काव्य के अष्ठादस पथी’ का संपादन मेरे द्वारा
किया गया जो अ.भा.अगीत परिषद की संरक्षक डा ऊषा गुप्ता, ब्रज-विभूति चौ.नबाव सिंह
यादव,भू.पू. मंत्री उ.प्र व प.रामचंद्र शुक्ल पूर्व न्यायाधीश को समर्पित किये गए|
‘अगीत काव्य के सोलह महारथी’ का संपादन मेरे व डा नीरज कुमार द्वारा किया ग्याजो
मेरे भतीजे युवा साहित्यकार यशशेष अरुणकुमार मिश्र उर्फ श्रीधर को समर्पित किया
गया|
वर्त्तमान दो दशकों में अगीत-विधा में महाकाव्य
व खंड-काव्य भी लिखे गए हैं| ‘मोह और पश्चाताप’, सृष्टि, शूर्पणखा
व ‘सौमित्र गुणाकर’ आदि महाकाव्य एवं खंड-काव्य प्रकाशित हुए जो अगीतवाद की स्थापना में
मील-स्तंभ का कार्य कर रहे हैं |
मैं यह जानता हूँ कि परम्परागत काव्य में
शिल्पगत विशेषताओं के अंतर्गत छंद-विधान योजना, पद्यात्मक भाषाशैली व अलंकार सौष्ठव आदि का महत्वपूर्ण स्थान है |
अगीत काव्य के कवियों ने इन परम्पराओं का त्याग किया है | तथापि काव्य-भाव होने से
काव्य-सौन्द्र्यानुसार अलंकार व रस-भाव तो प्रत्येक प्रकार की कविता में स्वतः ही
आजाते हैं| अगीत काव्य में परम्परागत छंदों के स्थान पर मुक्त-छंद व गद्यात्मक
शैली को अपनाया है| भाषा पर भी नए प्रयोग किये हैं| अगीत-काव्य में यह स्वीकारा
गया है कि संक्षिप्तता के माध्यम से कवि अपनी बात कहे| अगीत कवियों में निराशा,
कुंठा, घुटन, आस्था-अनास्था, समष्टि-कल्याण की भावना व लघु-मानव की प्रतिष्ठा हेतु
विद्रोह के स्वर भी अभिव्यक्त हुए हैं|
महाकवि डा श्याम गुप्त द्वारा लिखित यह “
अगीत साहित्य दर्पण” अगीत विधा के रचनाकारों व सभी साहित्यकारों के लिए वरदान
सिद्ध होगा | महाकवि ने कठिन श्रम और अध्ययन करके इसे तैयार किया है जिसमें
अगीत-काव्य के सभी मानदंडों को स्थापित करने में अपनी लेखनी का प्रयोग करते हुए
गतिमय सप्तपदी, लयबद्ध षट्पदी अगीत, नव-अगीत, त्रिपदा अगीत, त्रिपदा अगीत हज़ल आदि
अगीत की विभिन्न विधाओं का भी उल्लेख किया है| उनके द्वारा आगे भी अगीतवाद की
स्थापना में अन्य ग्रन्थ भी लिखे जायेंगे और उनके अन्य अगीत संग्रह, महाकाव्य व
खंडकाव्य आदि आगे भी प्रकाशित होंगे, ऐसी मेरी आशा ही नहीं विश्वास है | मैं
महाकवि डा श्याम गुप्त की लेखनी का वंदन-अभिनन्दन करता हूँ और कामना करता हूँ कि
कि यह ग्रन्थ ‘अगीत साहित्य दर्पण’ अगीत विधा के रचनाकारों को अपना अमूल्य योगदान
दे | मंगल कामनाओं के साथ |....मेरे दो अगीत प्रस्तुत हैं....
परिवर्तन, हिन्दी
के प्रति रहो समर्पित ...|
जीवन का मूल मन्त्र; हिन्दी ही भारत की
आशा ,
जैसा कल बीता होगी यही
राष्ट्र की भाषा ;
जो आज जी रहे देवनागरी को
अपनाएं ,
आगे जो आएगा , प्रगति पथ पर
,
उसमें भी होंगे – बढ़ाते जाएँ |
उत्थान-पतन |
( डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’...एम.ए,पी.एच.डी )
अध्यक्ष –अखिल भारतीय अगीत परिषद,
सम्प्रति— अगीतायन ई-३८८५,राजाजी पुरम, लखनऊ-१७
मो.९३३५९९०४३५ ...दूभा.०५२२-२४१४८१७