....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
महा शिव-रात्रि
चित का घड़ा बनाय के, देंय भक्ति-रस डाल।
महा शिव-रात्रि
अन्धकार को चीरकर, ज्ञानालोक बहांय ।
निर्गुण शिव जब सगुन हों,महारात्रि कहलाय ।
चित का घड़ा बनाय के, देंय भक्ति-रस डाल।
मन-वृत्ति के छिद्र सों, जल की धारा ढाल ॥
कम क्रोध से क्षत नहीं, मन अक्षत कहलाय |
चरणों में शिव-शंभु के, निज मन देंय चढाय ||
व्यसनों का अर्पण करें, भोले मुक्ति दिलायं |
भांग -धतूरे रूप में, शिव पर देंय चढाय ||
अन्धकार-अज्ञान को, मन से देंय भगाय |
महाकाल आराधना, तब सार्थक हो जाय ||