ब्लॉग आर्काइव
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
सोमवार, 19 अप्रैल 2010
शूर्पनखा प्रसंग व सीता हरण ---एक विस्तृत दृष्टि से व्याख्या .....
---लक्षमण ने जब दंड स्वरुप शूर्पनखा की नाक काट ली , इसका अर्थ यह है कि राम-लक्षमण -सीता द्वारा किये गए प्रगति पूर्ण कार्य से स्थानीय निवासियों द्वारा आर्थिक समृद्ध , स्वतंत्र वअधिकारों के प्रति सचेष्ट और ज्ञान वान होकर शूर्पनखा व खर आदि के स्वामित्व को, रावण द्वारा विजित भारतीय दक्षिण भूभाग से नकारा दिया जाना है जिससे इस भूभाग की अधिष्ठात्री शूर्पनखा की नाक ( इज्ज़त) कट गयी। रावण ने क्रोध में आकर समस्त जनपद की उर्वर जोतने योग्य भूमि पर ( सीता =जोतने योग्य भूमि , हल से बनी लकीर आदि , सीता इसीलिये भूमि पुत्री थी) अधिकार करलिया एवं स्थानीय लोगों से भूमि का अधिकार छीन लिया ( हरण करलिया ) ताकि वे जीवन यापन से मजबूर होकर विद्रोह भूल जाएँ व राम के विरुद्ध होकर रावण की शरण में आजायं , सीता हरण का यही अर्थ है।
लेबल:
अधिकारों की जागरूकता,
राम,
शूर्पनखा,
सीता हरण
साहित्य में आलोचना --अर्थ दोष ....
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