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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

लघु कथा ----समस्या का हल और लोकपाल....

                                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...      

              सुबह ही सुबह हमारे एक चिकित्सक मित्र घर पधारे और बोले...यार एक केंडीडेट  को पास कराना है, अपने  अच्छे  मित्र का लड़का है |  कल तुम्हारा टर्न है और अगर तुमने कुछ  उलटा -सीधा रिकार्ड कर  दिया तो फिर कुछ नहीं होपायगा, अतः सोचा सुबह ही सुबह  मुलाक़ात कर ली जाय |
      ' पर इतनी चिंता क्यों ठीक होगा तो पास हो ही जायगा |' मैंने कहा |
     ' नहीं', वे बोले, 'थोड़ी  सी विज़न में कमी है | और पैसे ले लिए गए  हैं |'
     ' तो क्या हुआ', मैंने कहा, 'लौटा देना कि काम नहीं होसकता |'
      अरे यार ! लिए हुए पैसे तो काम में भी  लग गए | खर्च भी होगये | अब घर से पैसे देने में तो बुरा लगता है, कि आई हुई लक्ष्मी क्यों लौटाई जाय |  बड़ा धर्म संकट होजाता है |
        मैं जब तक कुछ सोच पाता, वे बोले,  यार ! अब अधिक न सोचो, कभी तुम्हारा काम भी पडेगा तो मैं भी टांग नहीं अडाऊंगा | यह काम तो करना ही पडेगा, तुम्हारा हिस्सा पहुँच जायगा | और मुझे न चाहते हुए भी उनका काम करना पडा |
         मैं सोचने लगा, क्या लोकपाल इस समस्या का कोई हल निकाल पायगा ?