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सरस्वती नदी रहस्य
किसी भी देश,संस्कृति व सभ्यता की संरचना, पुरातनता,उसकी महत्ता,विशिष्टता आदि के ज्ञान हेतु उसके एवं उसके सन्दर्भ में अन्य सभ्यताओं, देशों, संस्कृतियों के साहित्यिक, एतिहासिक विवरणों, तथ्यों एवं प्रागैतिहासिक संरचनाओं व परिवर्तनों व विकास का ज्ञान आवश्यक व महत्वपूर्ण होता अपेक्षाकृत वैज्ञानिक खोजों के क्योंकि पुरातनता के भौतिक साक्ष्य प्रायः नष्टप्राय होते हैं| भारत जैसे विश्व के प्राचीनतम राष्ट्र एवं मानव-सभ्यता के पालने के सन्दर्भ में यह और भी सत्य है, जिसकी सभ्यता, संस्कृति का प्राच्य विज्ञानवेत्ता, विद्वान्, खोजी किसी भी एतिहासिक ज्ञान, विवरण, व्याख्या के समय शायद ही स्मरण करते हैं|
स्वयं भारतीय विद्वान् जो प्राच्य द्वारा प्रस्तुत ज्ञान से रोमांचित हैं इसी भ्रम के शिकार हैं कि गुलामी के काल से पहले भारत का कोई इतिहास व सांस्कृतिक मूल्य था ही नहीं| इसी भ्रम के कारण विश्व के कुछ भ्रामक अनसुलझे तथ्य विश्व-पटल पर उदित हुए यथा-
भारत में आर्य विदेशी आक्रमणकारी के रूप में आये, हरप्पा सभ्यता, सरस्वती-सिन्धु नदी के अनसुलझे तथ्य, आर्य-अनार्य, सुर-असुर संबंधी भ्रामक तथ्य आदि| अंग्रेज़ी काल की राजनैतिक दृष्टि व आकांक्षा, हिन्दू-सनातन धर्म विरोधी धुरी के प्रभाव व वर्चस्व के कारण ये तथ्य और भी भ्रामक बना दिए गए|
किसी देश या भौगोलिक क्षेत्र के आदि, प्रागैतिहासिक, एतिहासिक ज्ञान व स्थिति एवं सांस्कृतिक संरचना के ज्ञान हेतु उस क्षेत्र की नदियों का इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण है| भारत के सन्दर्भ में भारत की मूल प्रागैतिहासिक नदियाँ -सरस्वती, सिन्धु, यमुना, गोमती, ब्रह्मपुत्र, गंगा एवं नर्मदा के उद्गम, प्रवाह व विलय के इतिहास इनके कालानुसार प्रवाह परिवर्तन एवं वर्तमान स्थिति इनके वैज्ञानिक, भौगोलिक, एतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक व दार्शनिक, साहित्यिक विवरणों पर गहन दृष्टिपात एवं उनके परस्पर समन्वित अध्ययन से भारतीय उपमहाद्वीप की वास्तविक स्थिति का ज्ञान एवं विभिन्न विवादित बिन्दुओं पर विचार किया जा एकता है|
इन नदियों से सम्बंधित कुछ अनसुलझे प्रश्न व विवरण, कथाएं आदि इस प्रकार हैं ---
१.सरस्वती नदी के किनारे आदि सभ्यता का विकास व उसकी विलुप्ति, क्या वास्तव में यह कोई नदी थी या कल्पना, सिन्धु व सरस्वती का अंतर्संबंध, क्या सरस्वती ही सिन्धु का पूर्व रूप है, मानसरोवर क्षेत्र एवं सप्त-सिन्धु क्षेत्र में प्रथम मानव व प्रथम मानव-सभ्यता की उत्पत्ति...
२, यमुना की प्राचीनता व गंगा से पूर्व उपस्थिति, वर्तमान में बंगाल में ब्रह्मपुत्र का यमुना के नाम से प्रवाह एवं संगम–प्रयाग में सरस्वती की उपस्थिति..
3. ब्रह्मपुत्र नदी के विभिन्न काल में विपरीत दिशाओं में प्रवाह व मार्ग परिवर्तन..
४.
गोमती नदी को आदि-गंगा नाम से पुकारा जाना..
५.
नर्मदा का आदि नदी एवं नर्मदा घाटी में प्रथम जीव व आदि मानव की उत्पत्ति..
६.
सिन्धु घाटी सभ्यता (या हरप्पा या सरस्वती घाटी सभ्यता या सिन्धु-सरस्वती सभ्यता)..
इन प्रश्नों के अनसुलझे उत्तरों को हम ढूँढने का प्रयत्न करेंगे
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ऋग्वेद में - नदियाँ –
--- मंडल -१ सू १६४/१७५२-सरस्वती -वाणी विद्या कला की देवी है, नदी नहीं..
---मंडल-३सू-३०-विपाशा, सिन्धु, सरयू नदियाँ का वर्णन
-----३३८५–उतत्या सद्य आर्या सरयोरिन्द्र पारतः| अर्णो चित्ररथ बधी:|| -सरयू किनारे बसे अर्ण व चित्ररथ नामक आर्य शासकों को इंद्र ने तत्काल मार दिया |
----३३७९-उत सिन्धु विवात्यं वितस्थानामधिक्षामि |परिष्ठा इंद्र मायया |-आपने समस्त जल को तथा परिपूर्ण रूप से भरी हुई बेग से प्रवाहित सिन्धु को अपनी माया
( बुद्धि-कौशल)
से धरती पर सब जगह स्थापित किया | -यहाँ पर सिधु नदी नहीं अपितु समस्त जल धाराओं का सन्दर्भ है
--मं.५, सू-५२-४०९४ -यमुना
-गाय, घोड़ों का शोधन–निराधो
=निश्चिंतता से आराधना..
--मं ५-सू.५३—४१०३ –सरयू, रसा, अनितभा, कुभा, सिन्धु
–हमें न देखें
..
२.
--मं-५, सू-६१-गोमती के किनारे रथवीति का निवास --
मंडल-६-सू-४५-४८०२
–गंगा अधि, वृबु:
पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्तस्थात| उरु कक्षो न:
गांड्.गय:||
- ---वृबु ने पणियों (व्यापारियों,असुरों ) के बीच ऊंचा स्थान प्राप्त किया| वे गंगा के ऊंचे तटों के समान महान हुए |
मं-६ सू-६१-- सरस्वती नदी के किनारे दिवोदास द्वारा सभ्यता की स्थापना ---
“ उत न: प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्य | सरस्वती स्तोम्या भूत ||------प्रियजनों में अतिप्रिय सात बहनों (धाराओं या सहायक नदियों–वाणी के सप्त स्वरों सरगम) से युक्त, सरस्वती स्तुत्य हैं|
----स्वर्ग व पृथ्वी को अपने तेज से भरने वाली - अर्थात सरस्वती स्वर्ग में भी थी |
---ऋग्वेद मन्त्र ६:६१:१०,१२; ७:३६:६ में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है।
--- नदीतमा सरस्वती –-
आ यत्साकं यशसो वावशाना : सरस्वती सप्ताथी सिन्धुमाता |
या:
सुश्वयंत
सुदुधा
सुधारा
अभि
स्वेन
पयसा
पीप्याना
| ७:३६:६
उत न: प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा |सरस्वती सतोम्या भूत | ६:६१:१०
त्रिषधस्था सप्तधातु:पंच जाता वर्धयन्ती |वाजे वाजे हव्याभूत |६:६१: १२
विलुप्त सरस्वती की जीवनगाथा में अंतर्निहित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उदय की गाथा निहित है | उपरोक्त ऋग्वेद मन्त्र ६:६१:१०,१२; ७:३६:६ में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है। इन मंत्रो से प्रकट होता है कि ऋग्वेदिक काल में सरस्वती सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय की हिमाच्छादित शिखाओं से अवतरित होकर आज के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सिंध प्रदेश व गुजरात क्षेत्र को सिंचित कर शस्य-श्यामला बनाती थी।
इस सन्दर्भ में ऋग्वेद मन्त्र १०:७५:५ एवं ३:२३:४ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शतुद्री (सतलज), परुशणी (रावी), असिक्नी (चेनाब), वितस्ता, आर्जीकीया (व्यास) एवं सिन्धु, पंजाब की ये सभी नदियाँ सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं।
पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से लिए गए चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगा लिया है जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी। उपग्रह से लिए गए चित्र दर्शाते हैं कि कुछ स्थानों पर यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी और कि यह चार हज़ार वर्ष पूर्व सूख गई थी।
किसी प्रमुख नदी के किनारे पर रहने वाली एक विशाल प्रागैतिहासिक सभ्यता की खोज ने इस प्रबल होते आधुनिक विश्वास को और पुख़्ता कर दिया है कि सरस्वती नदी वास्तविक नदी थी | इस नदी के प्रवाह-मार्ग पर एक हज़ार से भी अधिक पुरातात्त्विक महत्व के स्थल मिले हैं और वे ईसा पूर्व तीन हज़ार वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक स्थल उत्तरी राजस्थान में प्रागैतिहासिक शहर कालीबंगन है। इस स्थल से कांस्य-युग के उन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का ख़ज़ाना मिला है जो वास्तव में सरस्वती नदी के किनारों पर रहते थे।
पुरातत्त्वविदों ने पाया है कि इस इलाक़े में पुरोहित, किसान, व्यापारी तथा कुशल कारीगर रहा करते थे। इस क्षेत्र में पुरातत्त्वविदों को बेहतरीन क़िस्म की मोहरें भी मिली हैं जिन पर लिखाई के प्रमाण से यह संकेत मिलता है कि ये लोग साक्षर थे। यद्यपि इन मोहरों की गूढ़-लिपि ( चित्र लिपि )का अर्थ अभी तक नहीं निकाला जा सका है।
आज सिंधुघाटी की सभ्यता (हरप्पा या अब सरस्वती घाटी सभ्यता ) प्राचीनतम सभ्यता जानी जाती है। वास्तव में यह सभ्यता एक बहुत बड़ी सभ्यता का अंश है, जिसके अवशिष्ट चिन्ह उत्तर में हिमालय की तलहटी (मांडा) से