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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

भारतीय गणतंत्र – सफलताएं-असफलताएं ..पुनरावलोकन ...डा श्याम गुप्त...

                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



                 भारतीय गणतंत्र – सफलताएं-असफलताएं ..पुनरावलोकन ...

            प्रायः हम लोग अपने भारतीय गणतंत्र को एक सिम्बोलिक अर्थात प्रतीकात्मक गणतंत्र की भांति लेते हैं, कहते हैं व उसी प्रकार व्यवहार भी करते हैं| परन्तु हमें इस अवसर पर अपने राष्ट्र व गणतंत्र को, उसके प्राच्य-एतिहासिक स्थितियों, ब्रिटिश कलोनिस्म से स्वतन्त्रता पूर्व स्थिति एवं स्वतन्त्रता पश्चात की कठिनाइयों व उन पर विजय प्राप्ति की सफलताओं-असफलताओं व वर्तमान स्थिति एवं भविष्य की सम्भावनाओं पर व्याख्यायित रूप से दृष्टिपात करना चाहिए| 
            हम यह याद रखें कि यह देश सदा से ही एक लोकतंत्रीय व्यवस्था का सर्वधर्म समभाव भावना प्रधान राष्ट्र रहा है, चाहे वह किसी भी राजा,राज्य,गणतंत्र या राज्यतंत्र का हिस्सा रहा हो| यहाँ युद्ध भी होते रहे, स्वदेशी, विदेशी, विधर्मी ..राजा-राज्यतंत्र बदलते रहे, राज्य, नगर, उन्नत सभ्यताएं विनष्ट होती बनती रहीं, तमाम सभ्यताएं यहाँ आयीं,रहीं .., सभी ने अपने प्रभाव यहाँ छोड़े यहाँ के ग्रहण किये | अधिकांध यहीं की होकर रह गयीं| सिकंदर जैसे गए तो लुट-पिट कर परन्तु कुछ न कुछ यहाँ छोड़ गए और साथ लेकर गए |   परन्तु इसकी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व लोक-शक्ति का क्षरण नहीं हुआ | इसीलिये यह सोने की चिड़िया बना रहा| क्योंकि वे सब मूलतः राजनातिक कारणों से आये..राजनैतिक व सांस्कृतिक शक्तियां थीं, विजित प्रदेश को अपना मान लेते थे | परन्तु ब्रिटिश कोलोनिस्म के काल में वह हुआ जो कभी नहीं हुआ, देश-राष्ट्र का सम्पूर्ण क्षरण व विनाश | ब्रिटिश व्यापारी थे राजनैतिक नहीं ... विश्व इतिहास में ऐसा उदाहरण शायद ही होगा जहां व्यापारियों द्वारा धन के बल पर देश जीता गया हो अतः उनका इस देश के विकास से कोइ नाता नहीं था वे सिर्फ लुटेरे थे..लूटते रहे...| आगे हम इस विषय को बिन्दुवार निम्न प्रकार से दृष्टिगत करेंगे....
१. ब्रिटिश शासन में कैसे सोने की चिड़िया को विनष्ट किया गया |
२.स्वतन्त्रता के समय किस दशा में भारत को छोड़ा गया | क्या क्या चुनौतियां व कठिनाइयाँ थीं हमारे   सम्मुख |
३.चुनौतियों का सामना कैसे किया गया ..
४.सफलताएं-असफलताएं ..व वर्तमान स्थित .
५. भविष्य के दायित्व व संभावनाएं |
                 यहाँ हम यह नहीं कहेंगे कि ब्रिटिश कैसे भारत में आये व शासन जमा पाए, यह आलेख का विषय नहीं है| वस्तुतः उस समय विश्व समाज कृषकीय-सभ्यता से इंडस्ट्रियल-सभ्यता की और अग्रसर होरहा था | यद्यपि भारत में कृषकीय एवं औद्योगिक संस्कृति सदा से ही साथ-साथ चलती रही है, जो सदा हे जीने का श्रेष्ठ, समन्वित व संतुलित ढंग है| प्राय: यह कहा जाता है कि औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात विश्व का तेजी से उन्नति व विकास हुआ| परन्तु उन्नति संतुलित, शनैः शनैः समन्वित भाव में ही होनी चाहिए ..अत्यधिक तीब्र गति से उन्नति विसंगतियों को जन्म देती है एवं विकास, जो सदा भौतिक होता है.. उन्नति नहीं है | इतिहास गवाह है अति-तीब्र भौतिक विकास ने सदैव ही मानव अभिमान, दंभ, क्रूरता, अधिनायकवाद रूप  ..रावण, कंस व राक्षसों को जन्म दिया है |
            यह भी कहा जाता है कि इस योरोपीय विकास ने नव जागरण ...ज्ञान के प्रकाश समता-समानता भाव को दुनिया में फैलाया| जिसे भारत व विश्व में डेमोक्रेसी व आगे बढकर स्वयं ज्ञान प्राप्ति हेतु अभिज्ञान लेना, नवीनता व नवीन कार्यों के प्रति ललक उत्पन्न हुई| परन्तु वास्तव में बस यह हुआ कि ब्रिटिश कोलोनाइज़ेशन से राजनैतिक रूप से नयी सभ्यता वाले चंद योरोपीय छोटे –छोटे देशों के हाथ में प्राचीन देशों ..भारतीय प्रायद्वीप, चीनी भूभाग एवं इस्लामिक दुनिया की बागडोर आजाने से प्राच्य देशों की तथाकथित पारंपरिक असमानता आधुनिक असमानता में बदल गयी | जिसे पहले से ही भारतीय ज्ञान से प्रकाशित .भारतीय .ज्ञानियों, विद्वानों ..विवेकानंद, दयानंद आदि ने ब्रिटिश व योरोपीय कोलोनिज्म को मानव की स्वतन्त्रता हनन बताया| उद्योग की परिभाषा व राष्ट्र की अवधारणा के बारे में यहाँ पहले ही यह कहा जा चुका था ..
         “ उद्योगिनी पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी, देवेन देयमिति कापुरुष: वदन्ति|’ उद्यमेन हि सिद्यंति कार्याणि न मनोरथै ..एवं वयं राष्ट्रे जाग्रयाम पंडिता:...ब्रह्मन स्वराष्ट्र में हों ..आदि वे हमें क्या सिखाते| कम्युनिज्म जैसी अवधारणा भी इसी औद्योगीकरण व असमानता की की देन थी|

        ब्रिटिश कोलोनिज्म में आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक ...तीनों प्रकार से हमें ..हमारे देश को विनष्ट किया....|  राजनीतिक रूप से उन्होंने कैसे –कैसे देश को कब्जे में किया व अत्याचार आदि किसी से छुपे हुए नहीं हैं| उन्होंने हमारे देश को आधुनिक बनाया..बिना किसी विकास के | पहले यहाँ सब कुछ निर्यात होता था ..परन्तु अंग्रेजों ने यहाँ की सभी प्राचीन मिलों, घरेलू उद्योगों, कारीगरों को समाप्त करके कच्चा माल लूट कर बिना मूल्य चुकाए अपने देश भेज कर, बना हुआ माल देश में खपाना प्रारम्भ किया | विकास के नाम पर विशेष करों व लूट द्वारा इसकी आर्थिक-शक्ति को विनष्ट किया गया | भारत ( अन्य गुलाम देश भी) उत्तरोत्तर अविकसित होता गया|
        अँगरेज़, मुस्लिम आक्रमणकारियों से अधिक क्रूर व चालाक थे|  मुस्लिम प्रायः शासकों का तलवार के बल पर धर्मांतरण करते थे जो विरोध व प्रतिक्रया उत्पन्न करता था लेकिन प्रायः जन सामान्य के कार्य ,मदरसे व विद्यालय साथ-साथ चलते रहे |..परन्तु अंग्रेजों ने मैकाले की नीति अपनाई ...संस्कृति के मूल के विनाश की जिसके बिना, मैकाले के अनुसार इस देश को गुलाम नहीं बनाया जा सकता था | उन्होंने भारतीय विद्यापद्दतियाँ, पाठशालाएं बंद कीं व नष्ट कीं, राज्य व क़ानून की भाषा अंग्रेज़ी बनायी... तथाकथित आधुनिक अंग्रेज़ी स्कूल-कालेज खोले बाबूगीरी की शिक्षा हेतु..ताकि पढ़े-लिखे भारतीय की भाषा अंग्रेज़ी हो| सामान्य जन भी उनकी नक़ल करे, भारतीय कृषि तंत्र को नष्ट किया गया..राजाओं-जमीदारों व जमींदारी प्रथा को बढ़ावा देकर, उनके वारिसों को इंग्लेंड में शिक्षा देने के बहाने उन्हें अय्यास बनाकर..  तथा करों का बोझा लादकर| हिन्दू व मुस्लिम जनता में भिन्न भिन्न सुविधाओं व इतिहास के नाम पर फूट डाली गयी  भारतीय संस्कृति के तत्वों को अपने ही अनुसार तोड़-मरोड़ कर पेश किया ताकि समस्त मौलिकता व देशी तंत्र नष्ट-भ्रष्ट होजाए एवंभारत का युवा व शिक्षित जन अपने ही पुरा ज्ञान के बारे में भ्रमित रहे और इस सब के लिए विविध भ्रष्ट तरीके भी प्रयोग किये गये | पढ़े-लिखे भारतीय की बहुत कुछ यही स्थित आज भी है | 

           १९४७ में स्वाधीनता के समय अंग्रेजों ने जो भारत छोड़ा वह रक्त-विहीन, जीर्ण-शीर्ण, गरीब, अशिक्षित, भुखमरी, अकाल पीड़ित, स्वास्थ्य, ज्ञान व विद्या व आर्थिक दृष्टि से दीन-हीन  भारत था| जहां औसत जीवन दर 3० वर्ष एवं साक्षरता दर १६% थी|  अंग्रेज़ी ज्ञान व साहित्य व विचार रूपी कूड़ा-करकट सर्वत्र देश में फैला हुआ था | समस्त देश टुकड़ों में राज्यों-शासकों में बंटा हुआ था जो अंग्रेजों द्वारा फूट डालो और राज्य करो की नीति से गठित किये गए थे| इन बहुत सारी चुनौतियों पर हमें विजय प्राप्त करनी थी.....हमने सफलता पूर्वक सामना किया भी और विजय भी प्राप्त की...देश को ब्रिटिश कोलोनिज्म शासन से  से भारतीय गणतंत्र की स्थापना की ओर सफलता पूर्वक ले जाया गया ... और सबसे बड़ी बात यह कि यह परिवर्तन, यह क्रान्ति बिना किसी आतंरिक या बाह्य संघर्ष...खून खराबा व युद्ध के.... शांतिपूर्ण ढंग से हुआ जो विश्व-इतिहास  में एक अतुलनीय उदाहरण है | इन चुनौतियों को मूलतः निम्न प्रयासों द्वारा विजित किया गया...

        राजनैतिक स्वाधीनता ....महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमने बिना शस्त्र सफल अहिंसक-आन्दोलन द्वारा विश्व के संबसे बड़े साम्राज्य व कोलोनिज्म के विरुद्ध विजय पायी, जो मानव इतिहास में प्रथमबार हुआ|

       बिखरे हुए राज्यों को का पुनर्गठन अंग्रेजों ने दोहरा शासन प्रबंध अपनाया हुआ था लगभग आधा  भारत सीधे-सीधे ब्रिटिश राज्य के अंतर्गत था तथा शेष को वे छोटे-छोटे नबावों, राजाओं, शासकों, राज्यों , स्टेट्स आदि के द्वारा शासित करते थे एवं भारी कर बसूलते थे, ताकि अराजकता व बद-इन्तजामी देशी शासकों के नाम आये ..विकास व सफलताएँ अंग्रेजों के नाम| शासकों को हिन्दू व मुस्लिम शासकों में विशेष दर्ज़ा देकर बांटा हुआ था ताकि १९५७ की भाँति वे एक न हो पायें | यह एक दुष्कर कार्य था परन्तु सरदार पटेल की नीतियों द्वारा, विविध नवाबों ..राजाओं द्वारा भारतीय गणतंत्र से अपना स्वतंत्र राज्य बनाए रखने की जद्दो-जहद करने पर भी अंतत: सभी बिखरे राज्यों को भारतीय गणतंत्र में मिला कर एक भारत का लक्ष्य पूरा किया गया|

      किसानों को भूमि का स्वामित्व...पुराने भारत में किसान अपनी भूमि का स्वामी होता था परन्तु कोलोनियल व्यवस्था द्वारा ब्रिटिश शासन ने जमींदारी व्यवस्था को प्रश्रय दिया ताकि वे यहाँ के अँगरेज़ परस्त प्रभावशाली लोगों के माध्यम से अधिकाधिक लगान बसूलते रहें| इस प्रकार किसान अपनी ही भूमि का स्वामी की अपेक्षा मज़दूर, कर्मचारी होगया | उसके श्रम का लाभ सरकार व उसके बिचौलिए जमींदार आदि लुटे रहते थे...देश कंगाल होता गया| स्वतंत्र भारत की सरकार ने किसानों को पुनः भूमि का स्वामित्व दिलाया|

      भारतीय संविधान की रचना . अपनी स्वयं की नीति-नियम निर्धारण एवं प्रगति के लिए देश का संविधान एक मूल दस्तावेज़ होता है अतः..१९५० में ब्रिटिश शासन के स्थान पर भारतीय संविधान तैयार किया गया जो जन प्रतिनिधियों एवं संविधान के विशेषज्ञों द्वारा मिलकर तैयार किया गया लिखित दस्तावे है और २६ जनवरी १९५० को भारत विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र बना|

     चुनावीय संशोधन व प्रथम चुनाव... स्वतन्त्रता के समय विश्व भर के राजनैतिज्ञों, विशेषज्ञों, पढ़े-लिखे लोगों, विद्वानों आदि  का मानना था कि भारत में लोकतंत्र नहीं चल सकता, भारतीय जनता लोकतंत्र के लायक परिपक्व नहीं है| परन्तु १९५२ के प्रथम चुनाव में ही भारत-सरकार एवं भारतीय जनता ने पूरे मनोयोग, शक्ति, जोर-शोर से दुनिया के सबसे बड़े चुनाव-प्रक्रिया को शांतिपूर्ण मतदान द्वारा पूर्ण करके दुनिया को दिखा दिया वे कितने समर्थ, समझदार व परिपक्व हैं और दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र का खिताब प्राप्त किया| परन्तु सफलताओं के साथ कुछ असफलताएं भी होती है हमें उन पर भी दृष्टि डालनी चाहिए ताकि वर्तमान के परिदृश्य को स्पष्ट देखा जा सके एवं भविष्य की संभावनाओं व योजनाओं पर उचित विचार किया जा सके |

       सर्व प्रथम सर्वाधिक तो हम शिक्षा के बिंदु पर चूक गए | साक्षरता शिक्षा नहीं होती | यूंतो आजादी के समय भी, पहले भी, आज भी भारत का प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित है अपने अपने कार्य में यदि व्यक्ति कुशल है तो वह साक्षर हो या न हो उसे अपना नाम लिखना आता हो या न आता हो क्या अंतर पड़ता है | हाँ सरकार व शासन को ईमानदार अवश्य होना चाहिए एवं कागजी कार्यवाही कम से कम होनी चाहिए | अतः साक्षरता दर १६% एक भ्रामक स्थिति थी जिसे हमने अंग्रेज़ी ज्ञान-बद्धता के कारण मान लिया और अंग्रेज़ी ज्ञान को शिक्षा समझने की भ्रान्ति ने अंग्रेज़ी स्कूलों, शिक्षासंस्थानों को बंद करने की अपेक्षा प्रश्रय दिया अंग्रेज़ी व पाश्चात्य माडल के प्राइमरी नर्सरी आदि स्कूलों एवं बच्चे को स्कूल भेजने की उम्र भी योरोपीय ज्ञान पर आधारित रही | अंग्रेज़ी का ज्ञान प्रथम कक्षा से ही होने के कारण शिशु अवस्था से ही बच्चे अपनी मातृभाषा, अपनी संस्कृति, सभ्यता, देश से अनभिज्ञ होता गया|  इसी के हेतु व्यवसायिक व तकनीकी शिक्षा को अत्यधिक बढ़ावा एवं अपनी संस्कृति, साहित्य, धर्म, दर्शन, पुरा-ज्ञान आदि को अधिक महत्त्व नहीं दिया | अंग्रेज़ी भाषा एवं ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित लिखित-कागजी-तंत्र को सरकारी कार्य व न्यायालयों के कार्य से न हटाकर राष्ट्र-भाषा हिन्दी एवं स्थानीय –प्रांतीय भाषाओं एवं सामान्य जनता के विकास का मार्ग अवरुद्ध किया गया जिससे समस्त जानकारी, साक्षरता, शिक्षा व राजनैतिक शक्ति चंद अन्ग्रेजी पढ़े लिखे लोगों के हाथों में केन्द्रित होती गयी और भारतीय बचे, किशोर व युवा अपनी ही भाषा, ज्ञान-विज्ञान, सभ्यता, संस्कृति व देश से दूर होते गए एवं योरोपीय मुखापेक्षी तदनंतर अमरीकी मुखापेक्षी होते गए ..जो आज की स्थिति है|

           रही सही कसर एक भयानक भूल .. मीडिया, बाज़ार व कला के  उदारीकरण व वैश्वीकरण ने पूरी करदी | विदेशों का सारा कूड़ा-कचरा सभ्यता ..जुआ व वेश्यालयों. न्यूड-क्लबों की संस्कृति व धन ...सांस्कृतिकता व कला के नाम पर देश को प्रदूषित करने लगी| बहुउद्देशीय कंपनियों का प्रदूषित धन भारतीय युवा को नव-युग की क्लर्की ..आईटी कम्पनियों का कार्य हेतु .. मोटी-मोटी पे व पर्क्स के रूप में देकर पुनः अपनी ही विदेशी कंपनियों के तथाकथित ब्रांडेड माल को ऊंची कीमतों में खरीद्वाकर..पिज़्ज़ा-बर्गर खिलाकर वापस लेलेने का दुश्चक्र भारतीय पीढी के मानस व सन्स्कृति को प्रदूषित कर रहा है|  विदेशी संस्कारहीन मीडिया भारतीय प्राच्य संस्कृति को मॉडर्न तत्व के सम्मिश्रण से बने सीरियलों...बाल-मनोरंजन सीरियलों आदि से भारतीय सांस्कृतिक तथ्यों को विनष्ट कर रहा है | यही भारतीय गणतंत्र  का वर्तमान परिदृश्य है |

भविष्य की सम्भावना--- हमारी इन भयानक त्रुटियों से के कारण आज का युवा तेजी से होती हुई ललचाती हुई योरोप व अमेरिकी भौतिक-प्रगति से अचंभित, प्रभावित, आनंदित हैं व बौखलाए हुए हैं | पाश्चात्य रंग में रँगे हुए अमरीका परस्त, अमरीका रिटर्न, देश को धीमी गति से प्रगति के कारण गाली देते हुए युवा क्या वास्तविकता ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक व सभ्यता -सांस्कृतिक वस्तुस्थिति पहचानकर अपने देश के प्रति अपना दायित्व पहचानेंगे एवं अपनी सभ्यता व पुरातनतम संस्कृति से तादाम्य करते हुए देश को आगे प्रगति के पथ पर लेजाने का दायित्व संभालेंगे | आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमारा विचार है कि एसा होगा एवं आशा व विश्वास भी है.....
             ‘दुनिया फिर चलेगी तेरे नक़्शे कदम पे श्याम
             तुझे देश की मिट्टी पे मिटने की बुरी आदत है|