....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
----- विचार से ही तो दृष्टिकोण बनता है यदि विचार रोचक है तो दृष्टिकोण भी वही होगा.. नए विचार तो आने व परखने ही चाहिए खासकर जब पुराने विचार साथ नहीं दे रहे हों तो.....
---राजनीति वर्षों की कड़ी मेहनत होती है, आप पुराने धुरंधर नेता से सीख सकते हैं और वह है राजनीति...
.... फिर तो वंशवाद वाली या राजतंत्र वाली प्रणाली ही उपयुक्त है शासन के लिए.... चलने दीजिये पुराने घिसे-पिटे नेता जो कर रहे हैं करने दीजिये इस सारी कहानी की क्या आवश्यकता है |
नीति, राजनीति व कूटनीति .....
देश की जनता के लिए, व्यवहार के लिए अपनी आतंरिक
व दैनिक समस्याओं, प्रगति के लिए ...नीति आवश्यक है या राजनीति अथवा कूटनीति |
एक समाचार पत्र आलेख में एक
सम्पादकीय देखिये जिसमें कुछ बिंदु इस प्रकार हैं....
१ 1. भ्रष्टाचार का सही हल शासन में सुधार करना और आम लोगों व
सरकार के बीच दूरी कम करना .....तो आम आदमी पार्टी और
क्या करना चाह रही है, अन्ना का और क्या अर्थ था...जब मौजूदा शासन स्वयं में सुधार
करने को तैयार न हो तो क्या करना चाहिए......यही तो आज की परिस्थिति है |
२ 2.. लोकतंत्र में लोकप्रिय आन्दोलनों का ईंधन विचारधारा है
आदर्शवाद नहीं ..... क्या लेखक आदर्शवादी
होना एक अनुचित तथ्य मानते हैं, क्या लोकतंत्र आदर्श को आदर्श नहीं मानता ? जो आदर्श नहीं उसे किसी भी
तंत्र में होने की क्या आवश्यकता है? विचारधारा ही
तो आदर्शवादी होनी चाहिए....सारे भ्रष्टाचार अपने आप मिट जायेंगे |
३ 3.
आपको बड़े लोकतांत्रिक और
राजनैतिक तम्बू में आना होगा और परम्परागत राजनेताओं को विचारधारा के आधारपर
पराजित करना होगा .......राजनीति समावेशी, समझौतापरक, समायोजन करने वाली
निर्दयी व निर्मम होती है .....यही तो आम आदमी पार्टी कर रही है चुनाव में भाग लेकर ..... क्या निर्मम व निर्दयी नीति को
राजनीति कहा जायगा वह कूटनीति, खलनीति होती है देश के शत्रु से अपनाने वाली बाह्य-नीति, स्वदेश वासियों के लिए
नहीं.....
४ 4. अपनी राजनीति का खंडन न करें, मेले में शामिल
होजाएं और गलत लोगों को बाहर करें ... अर्थात
भ्रष्टाचार के दल में शामिल होना होगा,
यह तो न जाने अब तक कितने पार्टियां कर चुकीं
हैं.... फिर यही तो आम आदमी पार्टी कर रही है, राजनैतिक दल बनाकर ......अपनी और पराई
राजनीति क्या होती है ...नीति..नीति होती है ..यदि गलत हैं तो खंडन अवश्य होना
चाहिए चाहे अपना करे या पराया | अन्यथा यह तो “ढाक के वही तीन पात” रहेंगे जो पिछले ६० वर्षों
से होता आया है यथास्थिति ....
.....
५ 5. उन्हें तेजी से राजनीति सीखनी होगी ...... अर्थात वही खलनीति सीखने की सलाह देरहे हैं पत्रकार महोदय ....अपने देशवासियों के हित के
लिए राजनीति क्या व क्यों सीधी सीधी नीति आदर्शनीति क्यों नहीं ....
६ 6. अन्ना का जोर था .... सिस्टम को बदलने की आवश्यकता है, गैर राजनैतिक
पृष्ठभूमि वाले लोगों को लाइए फिर फैसला वाली प्रक्रिया जनता के हाथों सौंप दीजिये
.... लोकतंत्र का ताना-बाना इससे उलटा है | बहुमत सरकार चुनता है सरकार
हर मुद्दे पर फैसला लेती है यह सोचकर कि हर पांच वर्ष बाद उसके फैसलों का हिसाब
होगा .....
----- यही तो नहीं
होरहा ...नेता सिर्फ अपने लाभ के फैसले ले रहे हैं, कौन पांच वर्ष बाद याद रखता है, सामान्यजन की स्मृति बहुत
अल्प होती है ...उसे अपने स्वयं के खाने-पीने की कठिनाइयों से फुर्सत मिले इसे
व्यवस्था राजनीति को करनी चाहिए और यह आदर्शनीति से ही हो सकता है...कथित राजनीति
से नहीं ....
7.आम आ पार्टी एक
रोचक विचार....परन्तु जैसे ही राजनीति के सन्दर्भ में अपने खास दृष्टिकोण अपनाती
प्रतीत होती है गलत दिशा में मुड जाती है..... ----- विचार से ही तो दृष्टिकोण बनता है यदि विचार रोचक है तो दृष्टिकोण भी वही होगा.. नए विचार तो आने व परखने ही चाहिए खासकर जब पुराने विचार साथ नहीं दे रहे हों तो.....
---राजनीति वर्षों की कड़ी मेहनत होती है, आप पुराने धुरंधर नेता से सीख सकते हैं और वह है राजनीति...
.... फिर तो वंशवाद वाली या राजतंत्र वाली प्रणाली ही उपयुक्त है शासन के लिए.... चलने दीजिये पुराने घिसे-पिटे नेता जो कर रहे हैं करने दीजिये इस सारी कहानी की क्या आवश्यकता है |
तथाकथित स्वनामधन्य पत्रकार, सम्पादक महोदय वास्तव में राजनीति व कूटनीति का अंतर भूल गए हैं वे यह जो सब
बता रहे हैं वह कूटनीति है एवं शत्रु-देशों से बाह्य संबंधों के लिए होनी चाहिए न
कि स्वयं अपने देश की जनता के लिए .....वोट के लिए ...उसके लिए आदर्श नीति ही
अपनाई जानी चाहिए न कि राजनीति व वोटनीति ......