....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्या आयेगा फ़िर,
क्या आयेगा फ़िर,
कोई कृष्ण ;
आस्था रूपी द्रोपदी की
अनावृत्त देह को ढकने,
चीरहरण को रोकने,
दुःशासन को टोकने, का--
दिखायेगा साहस
भरी सभा में ।
नैन झरोखे....
कब तक बंद रखेंगे,
अखियों के झरोखों को ||
अखियों के झरोखों को ||
इन नैन झरोखों से ,
जो छन कर आती है ;
वो हवा सभी के मन को -
तन को भरमाती है ।।
जो छन कर आती है ;
वो हवा सभी के मन को -
तन को भरमाती है ।।
वह हवा सदा ही से है,
तन की मन की हमजोली |
कब तक मन से तन से ,
खेलेंगे आँख-मिचौली|
कब तक मन से तन से ,
खेलेंगे आँख-मिचौली|
फिर सम्मुख खुली पवन हो,
रोकें क्यों झोंकों को॥
रोकें क्यों झोंकों को॥