....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आज कल घर घर में एम् बी ए के स्कूल खुल रहे हैं और हर व्यक्ति मेनेजर बनने का ख्वाव देखता है .... सफाई प्रवंधन मेनेजर ही क्यों न हो .... मेनेजमेंट का ज़माना है ...छोले-पकौड़ी या कपडे , जूते, कुर्सी-मेज बेचने वाला हो या घर-घर पर साबुन-सर्फ़ ...सब मेनेजर हैं | यह मेनेजमेंट है क्या .... किसी भी भांति से अपना सामान बेचना......देखिये ...चित्र में...
१---कीमत --४००००/-( और बेईमानी की इंतिहा है कीमत ..३९९९९ /- लिखना ..क्या हम इतने मूर्ख हैं ?) जिसकी कीमत १०००० /- से अधिक् नहीं होगी ....फ्री में १४००० के आइटम ..जिनकी कीमत ४००० /- से अधिक नहीं होगी .....अर्थात १४००० का माल ४००००/- में |
२-- कीमत --३२०००/-( ३१९९९/-/) जो १००००/- से अधिक की नहीं है ...फ्री में २१०००/- का आइटम जो ६००० /- से अधिक का नहीं होगा ....अर्थात ....आप ही सोचें ...क्यों बिजेंनेस-में वारे-न्यारे होते हैं.... कहाँ से , कैसे कालाधन पैदा होता है ......यह बाजारवाद है...बाज़ार का धर्म....
--- क्या सिखा रहे हैं हम अपने नौनिहालों को ..शुरू से ही .झूठ, बेईमानी , टेक्स चोरी ..स्कूल-कालेजों से ही ...वे बड़े होकर क्या करेंगे .....
---- ऐसे समाज, सरकार, वर्ग से हम क्या आशा करें .....और क्यों करें ....
.................................................................. मस्त राम मस्ती में , आग लगे बस्ती में ...........
झूठा विज्ञापन करें , सबसे अच्छा माल |
देकर गिफ्ट, इनाम बस, ग्राहक करें हलाल |
झूठ काम की लूट है, लूट सके तो लूट |
तू पीछे रह जाय क्यों, सभी पड़े हैं टूट |
तेल-पाउडर बेचते, झूठ बोल इतरायं |
बड़े महानायक बने, मिलें लोग हरषायं |
साबुन क्रीम औ तेल को, बेच रहीं इतराय |
झूठे विज्ञापन करें , हीरोइन कहलायं |
आज कल घर घर में एम् बी ए के स्कूल खुल रहे हैं और हर व्यक्ति मेनेजर बनने का ख्वाव देखता है .... सफाई प्रवंधन मेनेजर ही क्यों न हो .... मेनेजमेंट का ज़माना है ...छोले-पकौड़ी या कपडे , जूते, कुर्सी-मेज बेचने वाला हो या घर-घर पर साबुन-सर्फ़ ...सब मेनेजर हैं | यह मेनेजमेंट है क्या .... किसी भी भांति से अपना सामान बेचना......देखिये ...चित्र में...
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२-- कीमत --३२०००/-( ३१९९९/-/) जो १००००/- से अधिक की नहीं है ...फ्री में २१०००/- का आइटम जो ६००० /- से अधिक का नहीं होगा ....अर्थात ....आप ही सोचें ...क्यों बिजेंनेस-में वारे-न्यारे होते हैं.... कहाँ से , कैसे कालाधन पैदा होता है ......यह बाजारवाद है...बाज़ार का धर्म....
--- क्या सिखा रहे हैं हम अपने नौनिहालों को ..शुरू से ही .झूठ, बेईमानी , टेक्स चोरी ..स्कूल-कालेजों से ही ...वे बड़े होकर क्या करेंगे .....
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