....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
२४-१२-१२ को
सिगीरिया फ़ोरेस्ट विलेज के रिसोर्ट में रात्रि-विश्राम के पश्चात्
२५-१२-१२ प्रातः को नाश्ते के बाद हमारा कारवां
प्री-हिस्टोरिक साइट्स एवं एक और प्राचीन राजधानी पोलोनरूवा के लिए चल दिया जहां
प्री-हिस्टोरीकल सभ्यता व नगर के अवशेष व
म्यूज़ियम हैं| रास्ते में
मिन्नेरिया फारेस्ट रेंज के वन में
जंगली हाथियों का झुण्ड चरते हुए लगभग सड़क के एक दम नज़दीक आगया था | सुन्दर व दुर्लभ नज़ारा सभी ने कमरों में कैद किया | दम्बूला रोड पर
बुटीक-कला के कारखाने में बुटीक-छपाई कला का कारीगरों ने प्रदर्शन किया एवं पब्लिक रिलेशन अधिकारी द्वारा जानकारी दी गयी, शो-रूम व विक्रय -केंद्र का भी अवलोकन किया गया | त्रिंकोमाली रोड पर दम्बूला के निकट प्रसिद्द
'गामिनी जेम एंड ज्वेलरी' के शो रूम में पब्लिक रिलेशन अधिकारी द्वारा श्रीलंका के
प्रसिद्द नगर रतनपुरा ( जिसके रत्नों के कारण श्री लंका रत्नद्वीप कहलाता था )में विभिन्न
रत्नों के खानों के निकालने के अत्यंत जोखिमपूर्ण व श्रमसाध्य कार्य एवं उनकी प्राप्ति को फिल्म द्वारा दिखाया व समझाया गया | तदुपरांत
घिसने, चमकाने, कटिंग आदि के उपकरण व कारखाना भी दिखाया गया | काफी बड़े शो-रूम में काफी मात्रा में विभिन्न प्रकार के रत्न एवं आभूषण का अच्छा भंडार था|
रीना जी एवं सुषमा जी ने कई वेराइटी के रत्न एवं आभूषण खरीद डाले | शायद कुछ बाजिव दाम लगे होंगें |
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मिनीरिया फारेस्ट में जंगली हाथियों का दल |
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सुषमा जी व रीना रतनपुरा के जेम्स खरीदते हुए |
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बुटीक शोरूम |
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बुटीक - कारखाना एवं सिंहली महिला सुपर वाइज़र..विशेष सिंहली स्टाइल की साडी में |
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विशाल पराक्रम समुद्र लेक |
दोपहर को दो बजे तक हम लोग
पोलोनरूवा गाँव पहुंचे | बहुत बड़ी अथाह सागर के समान
पराक्रम समुद्र लेक के किनारे प्री-हिस्टोरिक म्यूज़ियम है| वही नगर के लिए नालियों द्वारा शानदार प्राचीन जल सप्लाई सिस्टम भी है |
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अनंत नाग पोकुना व दीप उयाना |
म्यूज़ियम के समीप ही
किंग पराक्रम वाहू ११५३ एडी द्वारा बनवाया सभागार ,
निसान्क्मला ११९६ एडी द्वारा निर्माण कराया गया स्नान-का तालाब
'अनंत नाग पोकुना ' ' व आइस लेंड सभागार व बाग़
'दीप उयाना '( द्वीप-उद्यान) है जिसे किंग पराक्रम समुद्र ने अपनी ग्रीष्म कालीन राजधानी
'कलिंग उयाना '( कलिंग प्राचीन भारतीय सिंहल राज्य --आज का उडीसा... ) का नाम दिया था |
पोलोनारूवा म्यूज़ियम -- में
फोटोग्राफी मना है ,
टिकट २५ डालर व भारतीयों के लिए आधी १२.५ डालर है |अन्दर
प्रागेतिहासिक काल के कई चिन्ह , हरप्पा सभ्यता की भांति ...मनके ,
टेराकोटा मूर्तियां,
पके-मिट्टी के वर्तन, आभूषण, मूर्तियाँ आदि प्रदर्शित हैं|
बौद्ध कालीन अवशेष भी |
सूर्य देव की मूर्ति -दो पत्नियां ऊषा-प्रत्यूषा के साथ प्रथम बार देखने को मिली ,
गज-लक्ष्मी -- जिसमें लक्ष्मी पर दोनों ओरसे हाथी जल सिंचन करके अभिषेक करते हुए....,
विष्णु, शिव का
नंदी बुल ,
शिव-लिंग,
कार्तिकेय व गणेश ,
गन्धर्वों, यक्षों की मूर्तियाँ ,
चौमुखा दीप , शिव-भक्त सुन्दर स्त्री
प्रगीतावती का कुरूप होकर काली-कोविल बन जाने पर पति व समाज द्ववारा परित्याग एवं
शिव के तांडव नृत्य से ठीक होने की कथा सहित प्रतिमा हिन्दू-धर्म के प्रतीक एवं शिव-पूजा के होने के प्रमाण है जो
यक्ष-कुबेर व रक्ष-रावण के काल का स्मरण करा सकते हैं मूर्तियाँ चाहे बाद के काल में निर्मित की गई हों |
मानव कंकाल के अधूरे अवशेष भी प्री-एतिहासिक काल की सभ्यता का भान कराते हैं|
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जंगल में प्री-हिस्टोरिक सरीसृप -इगुआना |
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सतमहला भवन |
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गज लक्ष्मी |
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बौद्ध स्तूप पर रीना आराध्य व सुषमा जी |
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बौद्ध मंदिर में पुष्पों से पूजा |
पोलोनारूवा प्री -हिस्टोरिक नगर साईट पर .. पराक्रम बाहू का निर्मित
सतमहला भवन , जिसमें अब भी सात मंजिले मौजूद हैं ...प्लास्तर उखड गया है परन्तु दूसरी मंजिल पर किसी पुरुष की मूर्ति व छटी मंजिल पर स्त्री मूर्ति नज़र आती है| नज़दीक ही एक बहुत बडी शिला पर जो सतमहला व समीप के ही बौद्ध मंदिर की बगल में है, किंग निसंकमला के वंश एवं वीरता के किस्से लिखे गये हैं , यह भी कि यह शिला १०० मील दूर मिहिंताले से यहाँ लाई गयी थी | इस शिला पर
गज-लक्ष्मी की मूर्ति है जो आम भारतीय मूर्तियों व चित्रों में देखी जाती है |समीप ही
बौद्ध मंदिर है जिसे मूल टूथ टेम्पल कहा जाता है , केंडी स्थित टूथ टेम्पल से पहले महात्मा बुद्ध के दांत के अवशेष यहीं रखे गए थे |
११ एडी का बौद्ध स्तूप है जिसमें स्तूप के चारों ओर प्रत्येक दिशा में एक बुद्ध मूर्ति है, स्तूप परकोटे से घिरा है |जिसकी सीढ़ियों पर गन्धर्व की भाँति मानवाकृति व तथाकथित
मून स्टोन एवं
गार्ड-स्टोन हैं जो
हिन्दू व गन्धर्व कला के कुम्भ हस्त द्वारपाल लगते है
शेष फण से नाग कालीन प्रतीत होते हैं|
जंगल क्षेत्र में प्राचीन दुर्लभ सरीसृप , बड़ी छिपकली जैसे जंतु इगुआना के दर्शन भी हुए |
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सुनसान व उपेक्षित -प्री-हिस्टोरिक शिव मंदिर पर निर्विकार एवं रीना अन्दर प्रांगण में शिव-लिंग |
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काले कान व लाल मुख बन्दर |
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थूपारामा |
शिव-मंदिर .. जहां बौद्ध मंदिर में जूते उतारने का बोर्ड लगा है व पूजा भी होती है वही दूसरी ओर
शिव-लिंग सहित शिवमंदिर बिना किसी देख रेख के ,
जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है जूते पहन कर या चाहे जैसे जाएँ | मंदिर अति-प्राचीन ..
शायद सबसे प्राचीन इमारत है| समीप ही
कुबेर की मूर्ति व
किसी
प्रागैतिहासिक विश्वविद्यालय के भांति किसी संस्थान के अवशेष हैं |जिसे बौद्ध विहार बताया जाता है |
लंकातिलक मंदिर का
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यक्ष -कुबेर की मूर्ति
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नवीनीकरण किया जारहा है यह काफी ऊंचा व दोमहला इमारत लगती है | दरवाजे, छतें, खिड़कियों व खम्भों की कारीगरी, नक्काशी काफी सुन्दर है व प्राचीन भारतीय घरों से मिलती-जुलती है| अन्य
निवास-स्थानों ,
मंदिरों ,
सभामंडप आदि के अवशेष हैं जिनमें बीच में
शिव-लिंग एवं डिजायनदार खम्भे हैं |
काले कान व लाल मुख व सुनहरे शरीर वाले पूंछ वाले व पूंछहींन बंदर हर ओर दिखाई पड़ते हैं परन्तु अपेक्षाकृत शान्ति-प्रकृति के, वे उदंड नहीं हैं |
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सिंहल सभाभवन पर निर्विकार |
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सतमंजिला राज भवन के खंडहर में -निर्विकार व रीना , आराध्य |
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प्राचीन मंदिर --मध्य में शिव-लिंग ..डिजायन दार खम्भे |
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सभाभवन की दीवार -हाथी, सिंह व बौने मानव विभिन्न मुद्राओं में |
सिंहल सभा-भवन व स्नान- तालाब व सत मंजिला राज-महल -- आगे अन्दर कुछ
घना वन प्रदेश है कच्चे -पक्के प्राचीन रास्ते के दोनों ओर
क्रमबद्ध दुकानों व बाज़ार के अवशेष है जिससे प्रतीत होता है कि यह नगर का प्रमुख व अच्छा बाज़ार था एवं
नगर समृद्धिपूर्ण रहा होगा ...
सिंहल सभाभवन विशाल सभाभवन का अवशेष है जिसमें
हाथियों, सिंहों व बौने मानवों के विभिन्न भाव-भंगिमाओं सहित भित्ति-मूर्तियाँ है | द्वार पर
सिन्हलों का प्रतीक चिन्ह सिंह हैं|लगभग चार -पांच फीट मोटाई की दीवारों से बने
सत मंजिला राज-महल व कमरों के अवशेष जिनमें सिर्फ दो मंजिलें ही शेष हैं |
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क्रमबद्ध दुकानें व बाजार में सुषमा जी व आराध्य |
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प्राचीन नगर के ध्वन्शावशेष --रीना व आराध्य |
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लेटे हुए बुद्ध की विशाल मूर्ति |
लेटे हुए बुद्ध व
पुलस्त्य मुनि की मूर्ति व
पुलस्त्यपुरा ---पराक्रम समुद्र लेक के दूसरी ओर पहाडी के समीप छोटी सी झील के किनारे
विशाल आकार की लेटे-बुद्ध की मूर्ति है समीप ही
ध्यान में बैठे बुद्ध भी हैं | साथ में ही बहुत बड़ी शिला मूर्ति एक व्यक्ति की है जो दोनों हाथ में पुस्तक लिए हुए है| इसे
पराक्रम बाहू की मूर्ति बताया जाता है ..हाथ में ओला-लीफ लिए हुए, उन्हें खेती का महान वैज्ञानिक कहा जाता है |
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महर्षि पुलस्त्य |
परन्तु
वास्तव में यह रावण के पितामह ( दादा या बाबा ), पिता विश्रवा मुनि के पिता महामुनि व प्रारंभिक मानव एवं ब्रह्मा के पुत्र सप्तर्षियों में से एक ऋषि पुलस्त्य की मूर्ति है , जो एक ब्राह्मण थे एवं स्वयं
महान वैज्ञानिक , कृषि वैज्ञानिक , महान विचारक-दार्शनिक थे एवं हाथ में प्राचीन लिखने के पत्र ,अरक-पत्र की( ताड़ पत्र या भोजपत्र ) पुस्तक है |
वस्तुतः
पोलोनरूवा का वास्तविक नाम पुलस्त्यपुरा....पुलस्त्यनगर था जो बौद्ध काल में पोलोनरूवा कर दिया गया|