....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आभार
" तत्सवितुर्वरेण्यं " उस तेजपुन्ज परब्रह्म की प्रेरणा एवं माँ वाग्देवी की कृपा-भिक्षा के आभार से कृत-कृत्य मैं सर्वप्रथम लखनऊ नगर व देश-विदेश बसे अगीत-विधा के समर्थक, सहिष्णु, सद्भावी, तटस्थ, आलोचक, प्रतिद्वंद्वी एवं अगीत की प्रतिष्ठा व प्रगति के द्वारा हिन्दी भाषा व साहित्य की सेवा व उन्नति के आकांक्षी व सहयोगी कवियों, साहित्यकारों, साहित्याचार्यों, समीक्षकों, विद्वानों व प्रवुद्ध पाठकों का आभारी हूँ जो अपनी खट्टी, मीठी, तिक्त उक्तियों, कथनों, वचनों, संवादों, आक्षेपों, आलेखों व टिप्पणियों रूपी सुप्रेरणा द्वारा इस रचना की परिकल्पना व कृतित्व में सहायक हुए ।
अगीत के संस्थापक, प्रवर्तक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के सद्भावनापूर्ण सत्परामर्श व विषय वैविध्य पर विवेचनात्मक व तथ्यपूर्ण जानकारी प्रदायक सहयोग के बिना अगीत कविता-विधा के छंद-विधान पर यह प्रथम कृति " अगीत साहित्य दर्पण " कब आकार ले पाती । कृति के लिए श्रमसाध्य प्रस्तावना लिखने के लिए भी मैं उनका आभारी हूँ ।
लखनऊ विश्व विद्यालय, लखनऊ के “ हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग” की विभागाध्यक्ष प्रोफ. कैलाश देवी सिंह पी.एच.डी., डी.लिट. द्वारा अगीत काव्यान्दोलन पर एतिहासिक दृष्टि व उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिखी गयी विद्वतापूर्ण ”शुभाशंसा” के लिए मैं उनका आभारी हूँ | उन्होंने अपने अति व्यस्त समय में से कुछ समय का दान देकर मुझे कृत-कृत्य किया |
मैं अपने गुरुवासरीय गोष्ठी के कवि संगी व समर्थ कवि, साहित्यकार एवं कविता की छंद-विधा पर ’छंद-विधान’ के लेखक श्री राम देव लाल 'विभोर' द्वारा इस कृति के लिए विद्वतापूर्ण व विवेचनात्मक भूमिका " दो शब्द " लिखने के लिए उनका आभारी हूँ । मैं अपने गुरुवासरीय गोष्ठी, प्रतिष्ठा, प्राची , चेतना, अखिल भारत विचार क्रान्ति मंच, बिसरिया शिक्षा संस्थान व सृजन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं की गोष्ठियों के कवि मित्रों का भी आभारी हूँ जिनके विभिन्न अमूल्य विचार इस कृति की रचना में सहायक हुए ।
डा .रंगनाथ मिश्र 'सत्य', श्री सोहन लाल 'सुबुद्ध', अनिल किशोर 'निडर', विनय सक्सेना, तेज नारायण 'राही' सुभाष 'हुड़दंगी', श्रीमती सुषमा गुप्ता, अगीत गोष्ठी के संयोजक व समीक्षक श्री पार्थो सेन, युवाओं की साहित्यिक संस्था 'सृजन' के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त, महाकवि पंडित जगत नारायण पाण्डेय एवं श्री सुरेन्द्र कुमार वर्मा का विशेष आभारी हूँ जिनके आलेख, कृतियाँ व रचनाएँ इस कृति की रचना में सहायक हुईं । साथ ही साथ मैं अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ के सभी कवि, कवयित्रियों व मित्रों एवं 'अगीतायन' पत्र के सम्पादक श्री अनुराग मिश्र का भी आभारी हूँ जिनकी रचनाओं व प्रकाशनों का उदाहरण स्वरुप इस कृति में उल्लेख किया गया है ।
मैं सभी पुरा, पूर्व व वर्तमान कवियों, आचार्यों, साहित्याचार्यों, काव्याचार्यों, विद्वानों व रचनाकारों का आभारी हूँ ..मेरे अंतस में भावित, जिनके विचारों व भावों ने इस कृति में समाहित होकर मुझे कृत-कृत्य किया तथा जिनके विचार, आलेख, कथन, शोधपत्र आदि का इस कृति " अगीत साहित्य दर्पण " में उल्लेख किया गया है ।
------डा श्याम गुप्त
आभार
" तत्सवितुर्वरेण्यं " उस तेजपुन्ज परब्रह्म की प्रेरणा एवं माँ वाग्देवी की कृपा-भिक्षा के आभार से कृत-कृत्य मैं सर्वप्रथम लखनऊ नगर व देश-विदेश बसे अगीत-विधा के समर्थक, सहिष्णु, सद्भावी, तटस्थ, आलोचक, प्रतिद्वंद्वी एवं अगीत की प्रतिष्ठा व प्रगति के द्वारा हिन्दी भाषा व साहित्य की सेवा व उन्नति के आकांक्षी व सहयोगी कवियों, साहित्यकारों, साहित्याचार्यों, समीक्षकों, विद्वानों व प्रवुद्ध पाठकों का आभारी हूँ जो अपनी खट्टी, मीठी, तिक्त उक्तियों, कथनों, वचनों, संवादों, आक्षेपों, आलेखों व टिप्पणियों रूपी सुप्रेरणा द्वारा इस रचना की परिकल्पना व कृतित्व में सहायक हुए ।
अगीत के संस्थापक, प्रवर्तक डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के सद्भावनापूर्ण सत्परामर्श व विषय वैविध्य पर विवेचनात्मक व तथ्यपूर्ण जानकारी प्रदायक सहयोग के बिना अगीत कविता-विधा के छंद-विधान पर यह प्रथम कृति " अगीत साहित्य दर्पण " कब आकार ले पाती । कृति के लिए श्रमसाध्य प्रस्तावना लिखने के लिए भी मैं उनका आभारी हूँ ।
लखनऊ विश्व विद्यालय, लखनऊ के “ हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग” की विभागाध्यक्ष प्रोफ. कैलाश देवी सिंह पी.एच.डी., डी.लिट. द्वारा अगीत काव्यान्दोलन पर एतिहासिक दृष्टि व उसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिखी गयी विद्वतापूर्ण ”शुभाशंसा” के लिए मैं उनका आभारी हूँ | उन्होंने अपने अति व्यस्त समय में से कुछ समय का दान देकर मुझे कृत-कृत्य किया |
मैं अपने गुरुवासरीय गोष्ठी के कवि संगी व समर्थ कवि, साहित्यकार एवं कविता की छंद-विधा पर ’छंद-विधान’ के लेखक श्री राम देव लाल 'विभोर' द्वारा इस कृति के लिए विद्वतापूर्ण व विवेचनात्मक भूमिका " दो शब्द " लिखने के लिए उनका आभारी हूँ । मैं अपने गुरुवासरीय गोष्ठी, प्रतिष्ठा, प्राची , चेतना, अखिल भारत विचार क्रान्ति मंच, बिसरिया शिक्षा संस्थान व सृजन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं की गोष्ठियों के कवि मित्रों का भी आभारी हूँ जिनके विभिन्न अमूल्य विचार इस कृति की रचना में सहायक हुए ।
डा .रंगनाथ मिश्र 'सत्य', श्री सोहन लाल 'सुबुद्ध', अनिल किशोर 'निडर', विनय सक्सेना, तेज नारायण 'राही' सुभाष 'हुड़दंगी', श्रीमती सुषमा गुप्ता, अगीत गोष्ठी के संयोजक व समीक्षक श्री पार्थो सेन, युवाओं की साहित्यिक संस्था 'सृजन' के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त, महाकवि पंडित जगत नारायण पाण्डेय एवं श्री सुरेन्द्र कुमार वर्मा का विशेष आभारी हूँ जिनके आलेख, कृतियाँ व रचनाएँ इस कृति की रचना में सहायक हुईं । साथ ही साथ मैं अखिल भारतीय अगीत परिषद्, लखनऊ के सभी कवि, कवयित्रियों व मित्रों एवं 'अगीतायन' पत्र के सम्पादक श्री अनुराग मिश्र का भी आभारी हूँ जिनकी रचनाओं व प्रकाशनों का उदाहरण स्वरुप इस कृति में उल्लेख किया गया है ।
मैं सभी पुरा, पूर्व व वर्तमान कवियों, आचार्यों, साहित्याचार्यों, काव्याचार्यों, विद्वानों व रचनाकारों का आभारी हूँ ..मेरे अंतस में भावित, जिनके विचारों व भावों ने इस कृति में समाहित होकर मुझे कृत-कृत्य किया तथा जिनके विचार, आलेख, कथन, शोधपत्र आदि का इस कृति " अगीत साहित्य दर्पण " में उल्लेख किया गया है ।
------डा श्याम गुप्त