भुला दिये सब;
भूल न पाये,
वे बह निकले,
कविता बनकर।
दर्द जो गहरे,
नहीं बह सके;
उठे भाव बन
गहराई से
वे दिल की
अनुभूति बन गये।
दर्द मेरे ,
मनमीत बन गये;
यूं मेरे नव-गीत बन गये।
भावुक मन की
विविधाओं की-
बन सुगन्ध वे,
छंद बने, फ़िर-
सुर लय बनकर,
गीत बन गये।
भूली-बिसरी,
यादों के, उन-
मन्द समीरण की
थपकी से,
ताल बने,
सन्गीत बन गये।
दर्द मेरे ,
मन मीत बन गये;
यूं मेरे नव गीत बन गये॥---क्रमशः