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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

आशा, सुख -चैन की.

सुख -चैन की आशा मैं ।
नित नए साधनों की अभिलाषा मैं ,
कितने साधन -प्रसाधन ,उत्पादित हुए ;और-
कितनों के सुख- चैन ,
बाधित हुए।
------ श्याम स्मृति से।

भूलते पदचिन्ह

वे चलते थे ,पिता के अग्रजों के पदचिन्हों पर
ससम्मान , सादर , सानंद,
आग्यानत होकर ,
देश ,समाज , राष्ट्र उन्नतिहित ;
सुपुत्र कहलाते थे ।
आज वे पिता को अग्रजों को ,
मनमर्जी से चलाते हैं ,एन्जॉय करने के लिए ,
अवग्यानत होकर ,
स्वयं को एडवांस बताते हैं ,
सनी , कहलाते हैं। -------श्याम स्मृति से।

किताबों मैं ढूदते हैं जिंदगी का मंत्रा.

मंत्रा अर्थात , अंग्रेजी मैं मन्त्र । यही तो आज के नौजवानों की ज़िंदगी ,प्रत्येक वस्तुको अंग्रेजी मस्तिष्क, व दृष्टि से ही देखना व देखपाना।
युवाओं के फेवरिट -फाइव --चेतन भगत'फाइव पॉइंट समवन '; अबदुलकलाम --'यूआर बोर्न टू ब्लोस्सम ';
शिवखेडा --'यू कैन विन'; अमिताव घोष ---द ग्लास पेलेस ; रोबिन शर्मा ---डिस्कवर यौर डेस्टिनी आदि -आदि ।
अर्थात सिर्फ़ अंग्रेजी की तथा मनुष्य को व्यक्तिपरक व अपने पर गर्व ,हम सब कुछ कर सकते हैं की मानसिकता बेचकर ,झूठे अहम् व सपनों मैं बहकाकर गुमराह करके अपनी पुस्तकें बेचना । हिन्दी ,हिन्दुस्तानी ,साहित्य व संस्कृति मैं वास्तविक समाजपरक,आदर्श्स्थिति को युवाओं से दूर रखना ।
क्या कोई हिन्दी की पुस्तक युवाओं को नहीं आकर्षित करती? बाजारवाद व धंधे बाजों से सावधान ऐ हिन्दी -वालो,और देश के कर्णधारो अब तो जागो ।