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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

रस, काम, उद्दीपन एवं बलात्कार ... डा श्याम गुप्त ...

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                       

अंग-प्रदर्शन


शराब-पार्टी

                               जीवन का मूल उद्देश्य आनंद प्राप्ति है|  रस आनंदानुभूति के श्रोत हैं |  प्रत्येक रस एक स्थायी भाव से ह्रदय में रहता है, उसकी उत्पत्ति विभाव ---आलंबन-उद्दीपन  से होती है तब उसका अनुभव मन में होकर समस्त शरीर में संचारित होता है एवं क्रिया-प्रतिक्रया  रूप में परिणत होता है |
                     रसराज श्रृंगार-रस उभय-पक्षीय प्रभावकारी होने से एक विशिष्ट रस है|  श्रृंगार का स्थायी भाव प्रेम है जो उद्दीपन के तदुपरांत रति व काम में परिवर्तित होता है | प्रत्येक वस्तु-भाव के त्रिगुण-भाव के अनुसार यह भी सत, रज और तम....भावों में विक्सित होता है| सत अवस्था में यह सिर्फ प्रेम-भाव होता है  प्रेम में संयोग व वियोग दोनों होते हैं, दोनों अवस्थाओं में उच्च आदर्श के तत्व निहित रहते है | रज व्यवहारिक सांसारिक अवस्था है इसमें रति-भाव( संयोग से सम्भोग तक-मानसिक से शारीरिक तक  ) प्रधान होजाता है व तम-अवस्था में सिर्फ काम-भाव रहता है किसी भी भांति सम्भोग,  जो आलंबन-आश्रय ( मूलतः पुरुष ) के विकृत असंस्कारित मानस के  तामसिक भाव के कारण उद्दीपन के प्रभाववश ... बलात्कार  तक में परिणत होने की संभावना रहती  है उद्दीपन -प्रभाव तात्कालिक भी होता है और पूर्व प्रभाव वश भी |
क्यों
क्यों
                      किसी भी रस की उत्पत्ति व संचार, प्रभाव और क्रियात्मक विकास ..विभाव अर्थात आलंबन व उद्दीपन के बिना नहीं होती |   श्रृंगार के तामसिक भाव, काम के, वलात्कार जैसे अति-तामसिक कृत्य के संचरण हेतु  आलंबन –आश्रय, पुरुष ( या स्त्री)-- आलंबन-विषय (कारण ) कुसंगति, -कुविचार, तुच्छ-मानसिकता, घर-परिवार-समाज-राष्ट्र में मानसिकता, विचारशीलता, संस्कार व चरित्र, आदरभाव, सुसंस्कार युक्त उदाहरण, व्यवहार व कार्य की कमी या अनुपस्थिति तथा अनाचरण, दुराचरण, कुसंस्कार युक्त भावों, विचारों व कृत्यों की उपस्थिति |   उद्दीपन–सुन्दर स्त्री (या पुरुष ), श्रृंगार, भड़कीले वस्त्र, कम कपड़ों में अनावरण देह, एकांत, अकेला होना, अवसर, परिस्थिति, स्थिति, स्थान, नशे में होना, कुसंग.... | आलंबन व उद्दीपन जैसे होंगे वैसे ही अनुभाव-प्रभाव व संचारी-क्रियात्मक-परिणामी भाव होंगे| यह समाज में प्रचलित संस्कृति, अनुशासन व आदर्श के अनुरूप होगा | भारतीय कृतित्व व कर्म--व्यवहार के मूल मन्त्र 'सत्यम, शिवम् सुन्दरम ' के अनुसार प्रत्येक कार्य को करने से पहले इस कसौटी पर कसा जाना चाहिए | क्या यह कार्य वस्तुतः करने योग्य है, क्या कार्य कल्याणकारी है अंत में ही उसका सौन्दर्य भाव --उसमें निहित स्व आनंद ,रसानुभूति आदि देखनी चाहिए | प्रेम, काम व रति भाव में भी यदि यही सोचा जाय तो व्यक्ति कभी बलात्कार की और प्रवृत्त नहीं होगा |
           
                      सौन्दर्य सदा से ही मानव मन को अकर्षित करता रहा है | यूं बलात्कार या शील-हरण कोइ नयी बात नहीं है|  बलात्कार पुरा व प्राचीन युग में भी हुए हैं, परन्तु समाज में स्थित आदर्शों, अनुशासन व संस्कृति के कारण आज की भांति अत्यधिक्, हर गली मोहल्ले में प्रायोजित नहीं अपितु गिने-चुने | जिन्हें आलोचित तो किया गया परन्तु समाज द्वारा बलात्कार नहीं कहा गया|  भारतीय इतिहास में पहला उदाहरण विष्णु जी द्वारा तुलसी से छल द्वारा उसका पतिब्रत-भंग ताकि जालंधर नामक दैत्य का संहार किया जा सके | वह सकारण था समाज के व्यापक हितार्थ | यदि स्त्री छल को नहीं समझ पाती तो उसकी आंशिक सहमति ही मानी जायगी | उस युग में स्त्रियाँ स्वतंत्र थीं किसी के भी साथ स्वेच्छा से सम्बन्ध बनाने हेतु एवं बंधन इतने कठोर नहीं थे आज भी भारतीय  काम-शास्त्र में व्याख्यायित विवरण के अनुसार विशिष्ट तात्पर्य हेतु अन्य विशिष्ट स्त्रियों-पुरुषों  से संपर्क बनाना विशिष्ट परिस्थितियों में मान्य है | अतः विष्णु का दोष कोई दोष नहीं माना गया | देवराज इंद्र द्वारा अहल्या से छल द्वारा उसका शील-हरण में भी अहल्या को श्राप दिया गया कि वह छल को क्यों नहीं पहचान पाई अर्थात उसकी भी आंशिक सहमति थी | अतः इंद्र को व्यक्तिगत श्राप का दंड तो दिया गया परन्तु सामाजिक-कानूनन दंड नहीं|  चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण भी बलात्कार नहीं था बाद में दोनों पक्षों में सहमति होगई  | रावण द्वारा भी वेदवती से दुराचार के प्रयत्न की  कथा सुनने को मिलती हैं | इसीलिये उसे आसुरी –भाव का व्यक्ति कहा गया परन्तु रावण होते हुए भी उसने आदर्श रखा एवं दूसरे की असहाय पत्नी सीता के साथ बलात्कार का प्रमाण नहीं मिलता |
                 इसी प्रकार महिलाओं द्वारा किये गए ऐसे  कृत्यों में सरस्वती  द्वारा देवताओं  से अपने बदले गन्धर्वों से अमृत प्राप्ति एवं तदुपरांत पुनः देवों के साथ लौट आनामेनका द्वारा विश्वामित्र का तप भंगउषा द्वारा अनिरुद्ध का अपहरण आदि |   
                पाश्चात्य जगत में तो सदा से ही उच्छ्रन्खल-संस्कृति रही है | मध्यकालीन इतिहास में विजयी सेनापतियों द्वारा खुले आम सभी की उपथिति में विजित रानियों, स्त्रियों से सम्भोग/ बलात्कार किये जाने की घटनाएँ आम सुनी जाती हैं|  भारत में मध्यकाल में जो बुराइयां सुनी जाती हैं वे मुस्लिम आक्रान्ताओं व अंग्रेजों की पाश्चात्य संस्कृति के फ़ैलने/ अपनाने से आयी और उसका प्रभाव आज भी है |

खेल -क्रिकेट या अंग प्रदर्शन  ? --सब पैसे के लिए ..

               आज हमारे समाज में --दृश्य-श्रव्य माध्यम...टीवी , सिनेमा, के साथ साथ इंटरनेट, पत्र-पत्रिकाएं, मंच, सामाजिक-मंच, हीरो-हीरोइन द्वारा अधनंगे पोज में एड व फिल्म करना, उन्हें सेलेब्रिटी मान कर हर जगह महत्त्व देना ताकि वे युवक-युवतियों के रोल माडल बन सकें और खूब धन कमाया जा सके , अत्यधिक मनोरंजन के माध्यमों-खेलों का विज्ञापन, गेजेट्स पर अत्यधिक आधारित जीवनचर्या  आदि सभी जगह अकर्म, उच्छ्रन्खलता, अश्लीलता परोसी जा रही है जिससे बाल-युवा व किशोर पीढी में अनुशासनहीनता, विचारहीनता, असाहित्यिकता, चरित्रहीनता को  प्रश्रय मिल रहा है | अति-भौतिकता की दौड़ में, अधिक कमाने की इच्छा व आशा; पाश्चात्य नक़ल व चलन के कारण बच्चों- युवाओं- युवतियों  में सांस्कृतिक व वैचारिक अकाल होता जा रहा है | जो युवाओं को प्रेम, आदर्श की वजाय सेक्स, मौज-मस्ती की तरफ लिए जा रहे हैं | यही आलंबन विषय (कारण) है जिससे  युवा व पुरुष बलात्कार कैसे कर्म के लिए आलंबन-आश्रय बनते जा रहे हैं |               
डॉग-शो  या अंग प्रदर्शन
क्यों मुंह छिपाना पड़े , पहनावा व रेव-पार्टी
फर्क क्यों
पूल-पार्टी..किसलिए
         बचपन से ही लड़कियों-बच्चियों को चोलीनुमा टॉप व कच्छानुमा अधोवस्त्र पहनाये जा रहे हैं.. क्यों.?.यदि लड़के पेंट, हाफपेंट , शर्ट , कोट व युवा मर्द फुल-शर्ट व पेंट पहन सकते हैं तो लड़कियाँ-युवतियां कच्छा-चोलीनुमा, अंग-प्रदर्शक  वस्त्र क्यों पहनें, क्या कोई उचित कारण बताया जा सकता है ...सिर्फ फैशन हेतु ..?  स्त्रियों का घर से बाहर जाकर पराई चाकरी करना क्या वास्तव मेंआवश्यक है, फिर देर रात से घर लौटना| लड़कियों का बॉय-फ्रेंड्स के साथ अकेले रहना, घूमना-फिरना, हर प्रकार के बातें करना, देर रात तक पार्टीबाजी, डांस-पार्टियां, रेव पार्टियां  आदि क्या आवश्यक हैं ? यही सब बलात्कार जैसे कृत्य हेतु उद्दीपन का कार्य करते हैं |
               

                         यदि हम इन दो तथ्यों का समाज में नियमन कर सकें तो बलात्कार जैसे कर्म बहुत कुछ कम किये जा सकते है |
     

श्याम स्मृति तरंग.....डा श्याम गुप्त....

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...'


१ .राम-सीता –नर-नारी...

 राम, राम है; सीता, सीता ,
कृष्ण, कृष्ण है; राधा, राधा|
सबका अपना स्वयं-भाव है ,
सभी पूर्ण हैं कोई न आधा ||

ब्रह्म पूर्ण है,प्रकृति पूर्ण है ,
पूर्ण से घटकर यथा पूर्ण है |
पूर्ण, पूर्ण में जुड़े पूर्ण है ,
सदा पूर्ण वह कभी न आधा ||

वही है सीता, वही है राधा ,
विविधि रूप प्रकृति मर्यादा |
नर – नारी के कर्म हों  एसे,
बनें राम-सीता, कनु-राधा |


२ .जग-जीवन सत्व...

नदिया सागर लय हुई खोकर निज अस्तित्व |
नदिया से सागर हुई, जग-जीवन का सत्व  ||

 कबिरा तो कबिरा भया, रोक सका ना कोय |
जल में घट, घट नीर में, जीव ब्रह्म लय होय ||


  

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

मोमबत्ती जलाने से क्या होगा ...डा श्याम गुप्त ...

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...





          

                  मोमबत्ती जलाने से क्या होगा ...

             हर जगह मोमबत्ती लेकर पहुँच जाते हैं ..गोया कि प्रकाश करके जता रहे हैं संसार को, अपने आप को कि हमको  वहुत दुःख है  बाकी सब भी दुखी हों .... .पर यह क्यों होता है, क्या करें हमें पता ही नहीं है कोई तो हमारे साथ मोमबत्ती जलाए, हमें बताये कि हम क्या करें .......

        ६१ बार होचुका अब तक, हम हर बार मोमबत्ती जलाते हैं पर कुछ कर नहीं पाते हैं .... हाँ बच्चों को सांत्वना का नाटक करना अवश्य सिखाते हैं ... फिर फिर वही बच्चे गोलीबारी करके हमारा दिल दुखाते हैं |

        कुछ संस्कृति, सभ्यता, आचरण, अनुशासन, सात्विक ज्ञान की बातें स्वयं सीखें ..बच्चों को भी सिखायें ..... ज्ञान का प्रकाश करें ...मोमबत्तियां जलाने से क्या होगा ..??? 
 

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

श्याम स्मृति तरंग ..... डा श्याम गुप्त

                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



                                 श्याम स्मृति तरंग .....

     १.पापा व कन्या भ्रूण हत्या ...
आया पर यह कहां से,  पापा नामक कीट,
नाना कर देता अगर उसकी मां को शहीद।
उसकी मां को शहीद,कहां फ़िर मामा होता ,
जग के रिश्ते, ताम-झाम भी कुछ ना होता।
चलती कैसे श्याम भला यह जग की माया,
सोचे मन में पापा,  स्वयं  कहां से आया |

 २ . कन्या-पुत्र न कोई  अंतर......                               

                       चौपाई....
जिसका जैसा भाग्य लिखा है, वही कर्म का लेख दिखाहै|
कन्या-पुत्र न कोई अंतर,  झाडू हो या कलम तदन्तर |

                 कवित्त छंद...
"तेरे करने से कुछ होता नहीं कार्य यहाँ,
आप शुभ कर्म न्याय रीति-नीति कीजिये |
होता जिस जातक का जैसा भाग्येश यथा,
होता वही, आप झाडू या कलम दीजिए |
पर होता माता-पिता का भी कुछ धर्म'श्याम,
आप भी  संतान हित, निज कर्म कीजिये |
कन्या और पुत्र में न कीजै कोई भेद-भाव,
दोनों को समान-भाव पाल-पोस  लीजिए ||

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

सृष्टि महाकाव्य ---सप्तम सर्ग --ब्रह्मा प्रादुर्भाव एवं स्मरण खंड ......

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



सृष्टि महाकाव्य ---सप्तम सर्ग --ब्रह्मा प्रादुर्भाव एवं स्मरण खंड ......




सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है,यह एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-(एकोहं बहुस्याम ... इच्छा) सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती हैप्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव ) की और प्रतिपल उन्मुख है
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचितमहाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा मेंव्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्धषटपदी अगीत छंद' -में
निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है... ... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...
)    
  
                      पिछले सर्ग में मूल तत्व पंचौदन अजः से मूल अंड , ब्रह्मांड (असंख्य ब्रह्मांडों) के बनने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया था| प्रस्तुत सप्तम सर्ग में -- उस अंड से आगे सृष्टि कैसे होगी यह ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ एवं उस ज्ञान प्राप्ति तक सृष्टि -रचाने की प्रक्रिया क्यों व कैसे, कबतक बंद रही , फिर कैसे प्रारम्भ हुई इस पर वैदिक व आधुनिक मत की व्याख्या प्रस्तुत की जारही है-----कुल ११ छंद ...
१-
रहा साल भर अंड में, ब्रह्मा,
ऊपर नीचे आदि मध्य में ;
बिखरे तत्व मिला,रचने के-
सृष्टि,यत्न थे सारे निष्फल |
आदि-शक्ति की सु प्रेरणा से,
तपः किया,प्रार्थना विष्णु की ||
२-
महाउदधि, जलरूप अयन में,
सृष्टि की इच्छा में रत जो;
विष्णु नाम से रहा शयन रत,
शेष ब्रह्म पर वह नारायण |
नाभि-केंद्र से नारायण के,
स्वर्ण-नाल पर खिला जलज-दल||
३-
ब्रह्मा, धर कर रूप चतुर्मुख ,
काल-स्वरुप उस महा विष्णु का;
स्वर्ण कमल पर हुआ अवतरित |
और तभी से ब्रह्मा का दिन,
हुआ प्रभावी और समय की,
नियमन-गणना हुई तभी से ||
४-
आदि रचयिता, काल नियंता,
सृजन हेतु उस स्वर्ण-नाल पर;
रहा घूमता, ऊपर-नीचे -
कई युगों तक५ , यही सोचता;
कैसे रचूँ सृष्टि यह सारी,
नहीं स्मरण था कुछ भी तो ||
५-
नव विज्ञान है यह समझाता,
हाइड्रोजन-हीलियम बनने की;
प्रक्रिया के बाद, सृष्टि-क्रम ,
स्थिर रहा था कई युगों तक |
और युगों के बाद ही पुनः ,
सृष्टि-सृजन प्रारम्भ हुआ था ||
६-
यह ब्रह्माण्ड बस फ़ैल रहा था,
और पुनः जब शीतल होकर ;
इलेक्ट्रोन एवं केन्द्रक के,
मध्य हुआ क्षीण प्रतिकर्षण |
आपस में जुड़कर फिर ये कण ,
रचने लगे विविध कण-प्रतिकण||
७-
वैदिक दर्शन यह कहता है,
ब्रह्मा को विस्मृत था सब कुछ |
तप, प्रभु-इच्छा,आद्य-शक्ति के,
कृपा-भाव से ही ब्रह्मा को;
हुआ स्मरण ,पुरा सृष्टि-क्रम;
सृष्टि पुनः आरम्भ हुई तब ||
८-
तप, आराधना-महा-विष्णु की,
ब्रह्मा ने की, आर्त भाव से |
वह प्रसविनी-शक्तिविष्णु की-
सरस्वती, वीणा-ध्वनि करती,
प्रकट हुई, स्वर-स्फुरणा१० से,
सृष्टि-ज्ञान ब्रहमा ने पाया ||
९-
प्रभ-इच्छा, माँ की स्फुरणा,
और शब्द के ज्ञान के बिना;
भला एक कण भर भी जग में,
ज्ञान किसे और कब होता है|
बिना ज्ञान ब्रह्मा भी कैसे,
कहाँ एक कण भी रच सकता ||
१०-
स्तुति,अर्चन और वन्दना ,
माँ वाणी की,की ब्रह्मा ने |
आदि वेद-माँ , गायत्री का-
धरकर रूप, सरस्वती माता-
समा गईं वे ज्ञान रूप में,
ब्रह्मा के मुख रूप ,ह्रदय में ||
११-
वाणी के उन ज्ञान स्वरों से,
विद्या रासायनिक संयोग की;
बिखरे कण नियमित करने की;
सृष्टि-सृजन की पुरा प्रक्रिया११
का स्मरण हुआ ब्रह्मा को,
रचने लगे सृष्टि हर्षित मन || --------क्रमश:--आगे -अष्ठम सर्ग......

{कुंजिका--- १=ब्रह्मा एक वर्ष ( ब्रह्मा का --युगों मानव वर्ष तक - अंड के परि-पक्व होने का समय ) अंड में घूमता रहा और अपना उत्पत्ति का अभिप्रायः नहीं पता था |; २= नार -जल, अयन-निवास---जल (अंतरिक्ष ) में स्थित नारायण विष्णु ; ३= सृष्टि के मूल अंड रचना के पश्चात शेष ऊर्जा , जिसे शेषनाग , शेष-ब्रह्म कहा गया है जो नारायण के साथ सदैव उपस्थित है ; ४= चार-मुखों( चतुर्दिक ज्ञान सहित ) वाला ब्रह्मा का सृष्टा रूप में आविर्भाव ; ५ व ६ = ब्रह्मा को युगों तक अपने अन्दर स्थित सृष्टि ज्ञान का स्मरण नहीं होरहा था अतः सृष्टि-रचना प्रक्रिया युगों तक रुकी रही--- आधुनिक विज्ञान के अनुसार एनीहिलेशन अवस्था के पश्चात ( बिगबेंग के प्रथम तीन मिनट पश्चात) अति-प्रवल ताप पर हीलियम-हाइड्रोजन बनकर सारे इलेक्ट्रोंस समाप्त होगये थे अतः परमाणु व परमाणु-पूर्व कणों के न्यूक्लियस से परमाणु नहीं बन पारहे थे अतः युगों तक सृष्टि प्रक्रिया रुकी रही थी |; =आधुनिक विज्ञान के अनुसार युगों बाद अति-शीतल ताप होने पर नवीन इलेक्ट्रोंस बनना प्रारम्भ हुआ वे केन्द्रक (प्रोटोन+न्यूत्रों ) के चारों और घूमने लगे व पदार्थ बनने की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हुई |; ८ व ११ =प्रत्येक कल्प में महाप्रलय के बाद पुनः पुनः सृष्टि -सृजन की क्रमिक प्रक्रिया ; ९=आदि-ब्रह्म , विष्णु की  आदि कार्यकारी शक्ति , योगमाया, मूल ऊर्जा का उत्प्रेरक रूप ; १०= आदि-नाद स्वर-आदि-वाणी-वीणा स्वर द्वारा सृष्टि ज्ञान का पुनः स्मरण तत्पश्चात ब्रह्मा सृष्टि सृजन कर्म में रत हुए }