वह दिन रात ,जी तोड़कर ,
सुख चैन छोड़कर ,
सुख साधन के ,
उपकरण बनाने मैं जुटा है ;
ताकि जी सके सुख चैन से।
वह कमाता था ,चार पैसे ,
खाने को दो रोटी ।
अब वह कमाता है ,
चार सौ रुपये ,
पर खा पाटा है ,
वही दो रोटी।
वह दिन रात खटती थी ,
पति /पुरुषः की गुलामी मैं।
आज वह मुक्त है ,
सिनेमा /टी.वीआर्टिस्ट है ;
दिन देखती है न रात ,
हाड तोड़ श्रम करती है ,
अंग प्रदर्शन करती है ,
पैसे की / पुरूष की गुलामी मैं।
वह बंधन मैं थी ,
बंटकर,
माँ ,पुत्री ,पत्नी के रिश्तों मैं ।
अब वह मुक्त है ,बटने के लिए
किश्तों मैं ।
वे चलते थे ,
पिता के ,अग्रजों के पदचिन्हों पर ,
ससम्मान ,सादर ,सानंद ,
आग्यानत होकर ,
देश, राष्ट्र ,समाज उन्नति हित ;
सुपुत्र कहलाते थे ।
आज वे पिता को ,अग्रजों को ,
मनमर्जी से चलाते हैं ;
एन्जॉय करने के लिए ,
अवग्यानत होकर ,
स्वयं को अडवांस बताते हैं ,
'सन्नी ' कहलाते हैं।
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009
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