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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 24 जनवरी 2011

..दशावतार. व बुद्ध अवतार....बलराम या बुद्ध...एक स्प्ष्टीकरण---- डा श्याम गुप्त....


--अभी हाल में ही एक ब्लोग पर दशावतार के बारे में लिखे जाने पर --बुद्ध अवतार पर काफ़ी चर्चा हुई ,अपितु कुछ लोग तो, बलराम अवतार नहीं, बुद्ध को  भागवत में पापावतार क्यों लिखा गया,आदि के प्रश्नों के ही पीछे पडे रहे...अतः इस बारे मे कुछ तथ्य रखना आवश्यक होगया...... ----------निश्चय ही भागवत से पहले दशावतार में बलराम का नाम था।...  ये अवतार सदा सन्ख्या में बदलते रहे हैं जो १ से लेकर २-३-४-२४-२२-९-१० माने जाते रहे है( यहविस्तृत वर्णन विष्णु-पुराण में है) क्रमशः इतिहास व मानव प्रगति के साथ सामाजिक/ सांस्कृतिक समन्वय व  गतिमयता हेतु--- सबसे पहला अवतार  पुरुष अवतार था एकाकी...ईश्वर का व्यक्त भाव---  तत्पश्चात २-४-२२-२४ होते गए , बाद में समन्वयात्मकतानुसार  मूल दशावतार स्वीकारे गए | युगों पश्चात बुद्ध के आविर्भाव से पहले  -कालान्तर में--- हिन्दू धर्म में कालक्रम प्रभाव व भौतिकता बढने के कारण वैदिक विग्यान/ ग्यान की कमी से कर्मकान्डों की अतिरेकता होचली थी,अतः वैदिक नीति--अति-सर्वत्र वर्ज्ययेत -के पालन  अनुसार क्रम में  ---- १- बुद्ध की कर्मकान्ड विरोधी बातें सामयिक रूप से उचित थीं अतः उन्हें भागवतकार ने बुद्ध को विष्णु का एक अवतार का रूप मानकर राष्ट्रीय, सामाजिक व सान्स्क्रितिक समन्वय के भारतीय स्वरूप का प्रतिपादन किया। बाद में कुछ अन्य पुराणों में भी बुद्ध को अवतार स्वीकार किया गया | यद्यपि अन्य पुराण व शास्त्र बलराम को ही अवतार मानते रहे | २- क्योंकि उनका दर्शन अनीश्वरवादी था अतः उन्हें रिणात्मक अवतार ( वास्तव में स्पष्टतः कहीं उन्हे पाप अवतार नहीं कहा गया है) कहागया कि, स्वयम विष्णु  अतिरेकता समाप्ति के लिए अवतरित हुए । ३- भागवत धर्म की एक शाखा कृष्ण  को पूर्ण भगवान मानकर सिर्फ़ ९ अवतार ही मानती थी, अतः कहीं बलराम+=१०, कहीं बाद में बुद्ध+= १० कहीं क्रष्ण+बुद्ध= १० माना जाने लगा । ४-वास्तव में भागवतकार ने अत्यन्त चतुरता का परिचय दिया, विद्रोही को अपना बनालो, विद्रोह समाप्त--निंदक नियरे राखिये...-बुद्ध धर्म के( अनीश्वरीय व अति-वैराग्य  दर्शन अंततः पतन को प्राप्त होता है)  प्रभाव को कम करने व बुद्ध-दर्शन से भारतीय-वैदिक धर्म की शुद्धि्करण करने हेतु बुद्ध को भगवान की अपेक्षा विष्णु का अवतार स्वीकृति  से बौद्ध धर्म का फ़ैलाव कम हुआ। और अंतत वह महत्वहीन होकर रहगया | ----वास्तव में बौद्ध लोगों ने उन्हें कभी भी विष्णु अवतार स्वीकार नहीं किया ।और कुछ शास्त्र व पुराण भी बलराम को ही अवतार मानते रहे |
-यदि  ध्यान से देखा जाय  तो हिन्दू/वैदिक धर्म में अवतारों का वास्तविक अभिप्रायः ही--बोधिसत्व भाव, बुद्ध भावना रही है,जो बुद्ध के जन्म से बहुत पहले ही से उपस्थित है अर्थात समय समय पर धर्म का बोध कराना---"यदा यदा हि..".आदि। अतः इस सर्वग्राही कल्चर, संस्क्रिति, धर्म, जीवन शैली को- समाज, देश, राष्ट्र ,संस्कृति व मानवता   की भलाई हेतु बुद्ध को भी स्वीकार करने में उन्हें कोई परेशानी नही हुई।