और वर्ष की पहली नज़्म ---डा श्याम गुप्त--
कदम बढ़ते रहें ....
न कोइ शिकवा न शिकायत है ज़िंदगी तुझसे |
क्या मिला क्या न मिला न कोइ पूछे हमसे |
जो मिला अच्छा मिला रब की नियामत तो मिली,
बीता ये साल नए वर्ष की मंजिल तो मिली।
हम दुआ करते हैं ,सब ये दुआ करते रहें,
नई मंजिल पे सदा कदम ये बढ़ते रहें।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
श्याम' आये न मेरे देश पे संकट कोइ,
मिट ही जाए जो इसे आँख दिखाए कोइ।
और क्या मांगूं भला ज़िंदगी अब तुझसे ,
जो भी जैसा भी मिले,अच्छा मिले सब तुझसे ॥
न कोइ शिकवा न शिकायत है ज़िंदगी तुझसे |
क्या मिला क्या न मिला न कोइ पूछे हमसे |
जो मिला अच्छा मिला रब की नियामत तो मिली,
बीता ये साल नए वर्ष की मंजिल तो मिली।
हम दुआ करते हैं ,सब ये दुआ करते रहें,
नई मंजिल पे सदा कदम ये बढ़ते रहें।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
श्याम' आये न मेरे देश पे संकट कोइ,
मिट ही जाए जो इसे आँख दिखाए कोइ।
और क्या मांगूं भला ज़िंदगी अब तुझसे ,
जो भी जैसा भी मिले,अच्छा मिले सब तुझसे ॥