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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

स्त्री -पुरुष सम्बंध पर विवेचना---डा श्याम गुप्त

आज कल स्त्री -पुरुष सम्बन्धों , स्त्री पर अत्याचारों,बन्धन,प्रताडना, पुरुष प्रधान समाज़, स्त्री स्वतन्त्रता , मुक्ति,बराबरी, आदि विषयों पर कुछ अधिक ही बात की जा रही है, आलेख, ब्लोग,पत्रिकायें, समाचार पत्र आदि में जहां नारी लेखिकाएं जोर शोर से अपनी बात रख रहीं है वहीं तथाकथित प्रगतिशील पुरुष भी पूरी तरह से हां में हां मिलाने में पीछे नहीं हैं कि कहीं हमें पिछडा न कह दिया जाय( चाहे घर में कुछ भी होरहा हो )।भागम-भाग, दौड-होड की बज़ाय, क्रिपया नीचे लिखे बिन्दुओं पर भी सोचें-विचारें----
१, क्या मित्रता में ( पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री या स्त्री-पुरुष कोई भी ) वास्तव में दोनों पक्षों में बरावरी रहती है ---नहीं--आप ध्यान से देखें एक प्रायः गरीब एक अमीर, एक एरोगेन्ट एक डोसाइल, एक नासमझ एक समझदार,एक कम समर्पित एक अधिक पूर्ण समर्पित --होते हैं तभी गहरी दोस्ती चल पाती है । बस बराबरी होने पर नहीं।वे समय समय पर अपनी भूमिका बदलते भी रहते हैं, आवश्यकतानुसाअर व एक दूसरे के मूड के अनुसार। ।
२, यही बात स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पति-पत्नी मित्रता पर क्यों नहीं लागू होती?----किसी एक को तो अपेक्षाक्रत झुक कर व्यवहार करना होगा, या विभिन्न देश,काल, परिस्थियों, वस्तु स्थितियों पर किसी एक को झुकना ही होगा।यथायोग्य व्यवहार करना होगा । जब मानव गुफ़ा-जन्गल से सामाज़िक प्राणी बना तो परिवार ,सन्तान आदि की सुव्यवस्था हेतु नारी ने स्वयम ही समाज़ का कम सक्रिय भाग होना स्वीकार किया( शारीरिक-सामयिक क्षमता के कारण) और पुरुष ने उसका समान अधिकार का भागी होना,व यथा-योग्य, सम्मान, सुरक्षा का दायित्व स्वीकार किया|---


---वस्तुतः आवश्यकता है , मित्रता की, सन्तुलन की , एक दूसरे को समझने की,यथा योग्य, यथा स्थिति सोच की,स्त्री-पुरुष दोनों को अच्छा, सत्यनिष्ठ, न्यायनिष्ठ इन्सान बनने की। एक दूसरे का आदर, सम्मान,करने की, विचारो की समन्वय-समानता की ताकि उनके मन-विचार एक हो सकें । रिग्वेद के अन्तिम मन्त्र (१०-१९१-२/४) में क्या सुन्दर कथन है---
"" समानी व अकूतिःसमाना ह्रदयानि वः ।
समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामतिः ॥"""---अर्थात हे मनुष्यो ( स्त्री-पुरुष, पति-पत्नी , राजा-प्रज़ा आदि ) आप मन,बुद्धि,ह्रदय से समान रहें , समान व्यवहार करें,परस्पर सहमति से रहें ताकि देश, समाज़, घर,परिवार सुखी, सम्रद्ध, शान्त जीवन जी सके ॥
कवि ने कहा है---
”’ जो हम हें तो तुम हो सारा जहां है,
जो तुम हो तो हम हैं सारा जहां है ।"" -----

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

डा श्याम गुप्त की नज़्म ----

सुरभि

तुम तो खुशबू हो फिजाओं में बिखर जाओगे ,
मैं तो वो फूल हूँ अंजाम है मुरझा जाना |

मैं तो इक प्यास हूँ तुम कैसे समझ पाओगे,
बन के अहसास मेरे सीने में समाते जाना |

तुम तो झोंका हो हवाओं में लहर जाओगे ,
टूटा पत्ता हूँ मुझे दूर है उड़कर जाना |

बनके सौंधी सी महक माटी कोभी महकाओगे,
मैं तो बरखा हूँ मुझे माटी में ही मिलते जाना |

तुम तो बादल हो ज़माने में बरस जाते हो,
मैं हूँ बिजली मेरा अंजाम तड़प गिर जाना |

तुम तो सागर हो ज़माना है तेरे कदमों में,
मैं वो सरिता हूँ मुझे दूर है बहते जाना ।

तुम तो सहरा हो ज़माना है तेरी नज़रों में,
सहरा की बदली हूँ अंजाम है उड़ते जाना |

तुमने है ठीक कहा मैं तो इक सहरा ठहरा,
शुष्क और तप्त सी रेत का दरिया ठहरा।

मैं तो सहरा हूँ मेरा अंजाम है तपते जाना,
तुम जो बदली हो तो इस दिल पे बरसके जाना।

सहरा के सीने में भी मरुद्यान बसे होते हैं,
बन के हरियाली छटा उसमें तुम बस जाना।

तुमने है ठीक कहा मैं तो हूँ सागर गहरा,
मेरा अंजाम किनारों से है बंधकर रहना।

तुम ये करना मेरे दिल से मिलते रहना,
बन के नदिया यूंही सीने में समाते जाना।

हम जो बन खुशबू फिजाओं में बिखर पायेंगे,
फूल को ही तो है मुरझा के सुरभि बन जाना॥

रविवार, 20 दिसंबर 2009

आज के दिन ---डॉ श्याम गुप्त की कविता ..

आज के दिन

तुमने कहा था-
आज के दिन ,
कितने खुश थे हम सब
सजल नयनों से |
मैंने भी सजाये थे ,
स्वप्न रंगीले ; पिछले वर्ष -
जब आया था तुम्हारा सन्देश |

तुमने कहा था ,
आज के दिन कितनी भीड़ थी घर में ;
सारा घर था गया सजाया ,
एक हुए थे हम-तुम,
थी सब ओर,
हर्ष विषाद की मिली जुली छाया |

आज के दिन ,
हम पहाड़ों पर थे ;
छुआ था तुमने पहली बार ,
हुए थे एकाकार |
आज के दिन,
आई थी प्रथम खुशी,
आनंद का पारावार |

फिर तुम कहने लगीं -
पिछले साल आज के दिन,
वे चले थे अपने पैरों पर ,
पहली बार |
आज के ही दिन ,
वे गए थे स्कूल ,और-
आज के दिन गए थे कालिज,
पहली बार |

तुम कहती रहीं ,
कैसे नाच रहे थे सब लोग,
सज रही थी बेटे की बरात ,
पिछले वर्ष
आज के दिन |
कितनी भीड़ थी घर में ,
पिछले दिसंबर में ,
आज के दिन;
थी हर्ष विषाद की ,
सम्मिलित बहार ,
बस रहा था,
बेटी का घर-संसार |

तुम कहती हो,
आज के दिन ,
वे गए थे दार्ज़िल्लिंग ,
औए आज के दिन जापान,
पिछली साल।
और आयी थी,
वह प्रथम खुशी,
आज के दिन
पिछली साल ,
खिला उठा था ,
एक नया संसार,
आनंद का पारावार ॥






गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

कल का आज, टाई वाला समाज...--

ऊपर चित्र देखिये व सोचिये --

१। क्यों न हो यह--उसे भी टाई खरीदने को एक्सट्रा पैसे चाहिए?
२.अपना काम कारने में क्या बुराई है, काम कोई या बुरा नहीं होता |
३. प्रारम्भ से चलेंगे तभी तो आगे बढ़ेंगे , जूते पालिस करके भी राष्ट्रपति बनते हैं , उचित ख्वाब दिखाइये , ऊंचे नहीं
४.आज कर्म करेंगे तभी तो कल बनेगा |

वैज्ञानिक सोच नहीं , मानवीय सोच होनी चाहिए----

विज्ञान कहाँ नहीं है ? पल-पल जीवन मैं विज्ञान की ही आवश्यकता होती है , जीवन के भौतिक रूप के लिए | अतः वैज्ञानिक सोच का कोई अर्थ नहीं , वह एकांगी सोच की दिशा बताते है | वस्तुतः जब तक मानवीय सोच विक्सित नहीं होगी तब तक मानव ,व्यवहार व कृतित्व में स्पष्टता व शुचिता नहीं आयेगी जो मानव को उच्च धरातल पर उठाने के लिए अत्यावश्यक है।
-----ऊपर समाचार चित्र में एक वैज्ञानिकउन्नति पूर्ण देश की सोच ,अधुना सेलेब्रिटी ( सो कोल्ल्ड -हम तो नहीं समझते ) खिलाड़ी , पोर्न स्टार ( अब पोर्न में भी स्टार होने लगे -क्या आधुनिक वैज्ञानिक सोच है!)के कारनामों को पढ़िए,देखिये सोचिये , -कर्म करने वाले , छापने वाले संपादकों की सोच को । नाली के कीड़े नाली में ही रहेंगे |
----आख़िर क्यों हम एसे मूर्खता पूर्ण समाचारों को यहाँ छापें? छपने दें ? एसे अनावश्यक लोगों ( यह बात सभी खिलाड़ियों ,एक्टरों ,नेताओं ,खेल, सिनेमा आदि पर लागू होती है) को अनावश्यक महत्त्व देने, कम उम्र में कुछ उपलब्धियां पालेने से( जिन्होंने अभी मानवीयता का पाठ , उम्र का अनुभव आदि जाना ही नहीं ) यही होता है, अहं व अति-सुखाभिलाषा , लालच ,मोह, विषयासक्ति की उत्पत्ति।हम एकांगी व अविचारी सोच के कारण ज़रा सी उपलब्धि पर इन्हें आसमां पर उठा लेते हैं जबकि दूसरे दिन ही वे फुस्स होजाते हैं। वे हमारे आदर्श पुरूष भाव कहाँ गए, क्यों ? जो हम इन नाली के कीड़ों को देख व छाप रहे हैं

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

तारों की बरात है------

तारों के बारात

हीरों जैसे जग-मग करते ,
तारों की बारात है ।
मेवे वाली खीर से भरी,
जैसे बड़ी परात है ।

सुघड़ अंगूठी में मोती सा,
चन्दा सजा आकास है ।
चांदी के दर्पण सी झिल मिल,
यह पूनम की रात है

पपीहा भी अब पीउ न बोले,
ना बदली की आस है ।
मोर -मोरनी नृत्य न करते,
ना बरखा की रात है।

गुपचुप गुपचुप कलकल नदिया ,
बहती अब चुपचाप है।
जैसे कोई नई नवेली ,
करे सखी से बात है ।

बीत गयी पावस, सखि आई,
सुखद चांदनी रात है ।
मॉस-दिनों के बाद ,
खिलखिलाई पूनम की रात है॥


मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

कैसे कम होगा कार्बन उत्सर्जन ----


कार्बन उत्सर्जन कैसे कम होगा ,हमे इसकी चिंता तो हैक्योंकि ये सब विकाश शील देशों के लिए हैं , पर कैसे रुके , इसका क्या ?क्या विक्सित देश अपनी सुख -सुविधा बंद करने को राजी हैं या होंगे ? जो दुनिया का अधिकतम मात्रा में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं |
ऊपर के समाचार में आप कार्बन कम करने के विभिन्न उपाय देख रहे हैं , अब हम इन उपायों पर अलग-अलग चर्चा करें---
१. व २.सौर ऊर्जा। --- पवन चक्किय्याँ ---अच्छी बात है , परन्तु ये आधिनिक पवन चक्कियां ,सोलर पेनल , बैटरियां , बनाने के लिए भी तो वही सब साजो-सामान -आयातित -आवश्यक होगा जो स्वयं प्रदूषण उत्पन्न करता है व हमारा मुद्रा भण्डार का दोहन करता है|यदि सामान्य (बगैर इलेक्ट्रोनिक /मेकेनिकल ) चक्कियां आदि प्रयोग हों तो बात बने |
३.पन बिजली योजनाओं के लिए भी हमें विदेशी तकनीक, व तमाम गेजेट्स चाहिए ,जो हम नहीं बनाते , यदि स्वदेशी सामान से छोटे-छोटे पन बिजली घर-बाँध आदि बनें तब यह उद्देश्य पूरा हो|
४। बायोमास ---सदियों से हिन्दुस्तान में घर-घर में कागज़ का कूड़ा, मूंगफली छिलके, भूसा, गन्ने की खोई,गोबर के कंडेऊर्जा के रोप में स्तेमाल होरहे हैं ( आज भी ) | पहले तो इन्हें धुंआ से प्रदूषण कारक कहकर नकारा गया ,कि नए-नए हीटर-गीज़र खरीदो( जब हम इन्हें नहीं बनाते थे ) |जबकि सदियों से कोई प्रदूषण नहीं हुआ| अब पावर-प्लांट लगाकर क्या कुछ मशीनी करण नही चाहिए होगा ( शायद वह भी बाहर से आयेंगे -जैसे गेंहू -दाल )|
५.परमाणु ऊर्जा--क्या उसके संयंत्रों के लिए वही सब नहीं करना होगा जो प्रदूषण कारक क्रियाएं व साजो-सामान हैं परमाणु -प्रदूषण की घटनाएं आए रोज़ होरहीं हैं ,उनका क्या रोक-थाम-निराकरण है|
६। अन्य--सी ऍफ़ एल -एलईडी-आदि बनाने के लिए क्या वही तकनीक नहीं स्तेमाल होंगीं जो प्रदूषण करतीं हैं?
----मूलतः भारत तो यह करने को तैयार है ही,पर क्या हमें/दुनिया को यह नहीं सोचना है कि यदि विक्सित देश अपनी विलासिता ,आसमान में उड़ने की भ्रमित इच्छा छोड़ा दें तो यह स्थिति उत्पन्न ही न हो |
----इसे कहते हैं पहले कुआ खोदो फ़िर उसे पार करने को पुल बनाओ और फ़िर...... शुरू दुश्चक्र |

राजधानी की पहचान-सत्य से या सिर्फ़ सुन्दरता से ---

राकेश कुमार यादव जी के इस आलेख से लगता है कि हमें व सरकार को जनता के सुख-सुविधाओं को द्वितीय स्थान पर (या बिल्कुल नहीं ) रखना चाहिए |भारतीय शास्त्रों में प्रत्येक कार्य के लिए एक विशिष्ट संदेश है , जो दूर दर्शन ने भी अपना लोगो बनाया है --सत्यं शिवं सुन्दरं --अर्थात सत्य सबसे पहले व सुंदर सबसे बाद में | क्या आलेख लेखक व सरकार को यह सत्य नहीं दिखाई देता कि नगर की अधिकाँश सड़कें, गलियाँ,नालियां टूटी पडीं हैं; सडकों -गलियों में सीवर का पानी बह कर जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है, करप्सन हर जगह खुले आम हो रहा है, रोजाना लूट, ह्त्या, की वारदातें होरही हैं| कोई नगर या राजधानी , नागरिक सुविधाओं से नगर कहलाने योग्य,मुस्कुराने योग्य होता है यूंही नहीं | पहले वह कर दिखाइये ,फ़िर सौन्दर्यीकरण हो ,किसे आपत्ति होगी ? कूड़े के ढेर पर बैठे शहर को कौन प्रशंसा करे , कुछ स्वार्थी तत्व?
----" सुबरन कलश सुरा भरा, साधू निंदा सोय"
आज आगरा,हेदराबाद , दिल्ली --ताज , क़ुतुब व चार मीनार से नहीं -गन्दगी, जल की कमी ,अपराधों के कारण नामी हैं | ताज, मीनार। क़ुतुब तो बस कमाई व विदेशी लोगों को बहलाने के साधन हैं |

रविवार, 6 दिसंबर 2009

काली आंधी के दिन-गंगा जमुनी तेहज़ीब और ६ दिसंबर ----विश्लेषण

आप ही देखिये सबसे नीचे के चित्र में , अखबार केसम्पादकीय को -किसने महज़ एक सम्पादक को हक़ दिया की ६ दिसंबर को देश भर से एकत्र, प्रजातंत्र देश की जनता को काली आंधी कहे , एक अदना व्यक्ति इस तरह स्वयंभू विद्वान् बन कर देश की जनता का अपमान करे औरस्वयं ही अपनी बढ़ाई करे ,गुण गाये | आपरेशन ब्ल्यू स्टार व ६ दिसंबर को एक अनैतिक क्रान्ति , फ्रांस की क्रान्ति से जोड़े | और ये गंगा -जमुना तहजीव क्या चीज़ है ? जो हर स्वयंभू सम्पादक, पत्रकार, छद्म सेक्यूलर , विद्वान् गाता फिरता है |क्या सिर्फ़ हिन्दू-मुस्लिम तहजीव ही गंगा-जमुनी है ,क्या यह तहजीव सिर्फ़ मुस्लिमों के भारत आने पर बनी ? यह तहजीव तो जब से गंगा-जमुना भारत में हें तभी से मौजूद है , यह मनुष्य-मनुष्य की , तहजीबहै , भारतीय तहजीव है ,आपको जीनासिखाती है , मानवता सिखाती है |इसका सम्मिलित तहजीव से क्या सम्बन्ध, हिन्दू-मुस्लिम से क्या सम्बन्ध |६ दिसंबर से क्या सम्बन्ध ?
और इन संपादकों को अपने ही अखबार में छपे अन्य लेख -' योद्दा बनें हर दलित ' जैसे भड़काऊ ,समाज विरोधी लेख या प्रतिदिन के काली आंधी वाले समाचार -ह्त्या, लूट,अपहरण, या क़ानून तोड़ने वाले 'मेरी मर्जी' नहीं दिखाई देते , मंथन या समीक्षा के लिए | वे ये सब भूले रहते हैं , क्यों ,कैसे , किसके लिए , कब तक ? आप ही सोचिये , समझिये , कहिये , बताइये।आख़िर क्यों आवश्यकता पड़ीं इसी समाचार व घटना के मंथन के लिए।



गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

देखिये ज्योतिषियों का अस्त्रोलोजीकल झमेला ----

---देखिये आज कल के पढ़े लिखे ज्योतिषियों को , सो काल्ड एडवांस देशों के --कैसे -कैसे विज्ञापन से ग्राहकों को रिझाया जाता है । पहले एक ई मेल आता है फ्री रीडिंग के लिए फ़िर---। इसे क्या कहें , अंधविश्वास , बढ़ावा देना या विज्ञान या खेल।






Shyam, this is the Free Personal Astrological Reading



Hello Shyam,

Thank you for the information which you sent me on the 11 November 2009. Now that I have finished your astrological reading I felt I had to write to you straight away. Indeed I have just discovered that not only you were soon to live through an event of great astrological importance but also that you were going to blessed with a period of chance and opportunities.

I have worked in my chosen professional field for a very long time now and it is rare that I feel such a powerful jolt (as I felt for you Shyam) when consulting an individual's details for the first time. I only can explain it by the creation of a strong connection between us when we first entered into contact. This bond has an enormous advantage for me as I am able to discern exactly what you are feeling at this time. Then I can compare and contrast this very personal information to your astrological configuration.

Shyam, I am now going to tell you what I have discovered about you. What I am now going to tell you is very important and of course I have checked and double-checked everything before telling you. So here is what is is all about: a Transit period is on the way and you are perfectly positioned to get the very best out of the opportunities it is set to bring . Indeed, in a very short time you will find yourself in the glare of several powerful astrological influences. These influences will place you in a rare astrological Transit which will not occur again in your skies before a very long time. This is a period of 88 days during which a great number of opportunities are going to be offered to you. These opportunities are going to have a great impact on your life and here is what comes out of my analysis:

You can also expect some very positive financial changes in your life during this important period. It seems that one very important opportunity will be made to you and this opportunity is linked to an unexpected sum of money. As a matter of fact your astral configuration shows me that this sum of money should allow you to finish a project which you have been thinking about for a long time. 3 main points stand out clearly:

- first of all, you must realize why this period is so important for you and this is simply because these 88 days are linked to a large sum of money
- it seems that this sum of money will help you with your projects, ambitions and investments
- at this stage of my analysis it is difficult to say exactly how you can get hold of this sum of money but it seems that it is linked to a notion of games or lottery. You will certainly gain this sum when you least expect it and this will also be a moment when your natural chance and good luck are boosted to their maximum. This does indicate a win through a game of some sort.


During this period you can expect some very positive financial changes in your life. It seems that one very important opportunity will be made to you and this opportunity is linked to an unexpected sum of money. As a matter of fact your astral configuration shows me that this sum of money should allow you to finish a project which you have been thinking about for a long time. 3 main points stand out clearly:

- first of all, you must realize why this period is so important for you and this is simply because these 88 days are linked to a large sum of money
- it seems that this sum of money will help you with your projects, ambitions and investments
- at this stage of my analysis it is difficult to say exactly how you can get hold of this sum of money but it seems that it is linked to a notion of games or lottery. You will certainly gain this sum when you least expect it and this will also be a moment when your natural chance and good luck are boosted to their maximum. This does indicate a win through a game of some sort.


Shyam, I must insist on the fact that this Transit is going to have an enormous influence and a great importance in your life. You need to be ready to seize all of the opportunities which are going to be open to you during this period as it represents a real chance in your life. For this you need to have some complementary information (where, how, what, when, with who...). This is why I have put a page online especially for you, Shyam, where you can ask me to research this information.

http://aboutastro.com/j.php?p=request.cgi&r=6&c=sfgmt&f=fulnz

However before you go to this page I invite you to continue reading this first reading as I have some more important information to tell you about.

Firstly you may be wondering at this point how I can be so passionate about your particular case. Well let me explain a little more about what I felt about you when we first entered into contact and how this has allowed me to know you even better, Shyam.

You are aware that you are entering into a different and interesting period in your life, in which certain values will affirm themselves,notably a notion of revitialisation which appears strongly around you even if you often think about the past, as you have done recently. I can also see that you feel more confortable associating with people your own age or younger. I can also see that you seem to appreciate and be happiest when you are near the water and you have a deep affinity for nature and the outdoors. To get back to this notion of revitilisation I can see a connection coming through with Europe or something European and this is most likely concerning a voyage which you must do. I can see a great deal of things in your life which are set to change and a lot of very positive events are going to occur for you.

I know that you have a great deal of qualities and you now have the power now to acccomplish whatever you want to in life. You need only set your goals and aim for what you want. Your unique perspective in life, has been forged from the school of hard knocks and you know deep down inside that you are better for having gone through what you have endured. There is a very strong aura around you and an energy that is truly powerful. I am sensing vibrations from you much more intense than those I experience with most clients. I am even getting a powerful impression now.... you have what might be described almost as a sixth sense, the ability to sense things are about to happen. At times, you have wondered if you might be extremely intuitive.

As far as other aspects of your life are concerned, I am getting the distinct sense that you are street smart and you value this ability much more than the classroom smarts that others have. You are a person with fresh and innovative ideas and are not willing to settle for what others tell you. you have to see things for yourself and if you don't like what you see then you will change it. In your relationships with others, you need those around you to be happy and even if these people don't always say it out loud, they see you as something of a wise man, someone who has all the answers. This suits you as although you don't always consciously admit this, deep down inside you need the respect and admiration of others.

Lets get back to this period Shyam as I should warn you about one particular point. If you do not act in a very decisive manner concerning this period then it is extremely likely that all of these important opportunities will simply pass you by.

I must remind you that this Transit is a very rare event which will not come around again for a very long time to come and it will allow you to complete a project which you care a lot about by using a sum of money which you did not expect to have seize some very important financial opportunities. To achieve this it is important that you find yourself in the right place and at the right time to take the right decisions and this is what I want to help you to do.

I also need to warn you about something which I have already seen with certain other people who simply wait for events to occur.

Indeed, I know through my experience that people who are aware that such a Transit will soon occur yet who sit by and do nothing about it (because they consider that they can guess which actions are needed and when), inevitably miss out on the full impact of the period. Only a professional astrologer can read your Skies correctly to bring you the informations you truly need concerning your Transit of 88.Shyam, You need precise and deep knowledge of all of the implications of this Transit in order to get the very best out of it's chances and opportunities.

Shyam, I warn you in this way because the stakes concerning this period are too high. You need a professional to help you through this vitally important time in your life. This Transit is too significant and too important not to try and get all chances over on your side.

I must mention that I am not the only professional who could help you. You may of course consult with someone a little closer to your home or with an astrologer you are already familiar with. This person should be able to help you in exactly the same manner as I would be able to.

Of course as far as I am concerned I am also 100% ready to help you Shyam. I have a wealth of important and exciting information to share with and I can give you full details on the following points:

I will determine for you all of the information which you will need concerning the financial developments which you can expect during this Transit and how this sum of money will change your life. I will tell you:

- why this period is more important than any other period
- what financial changes you can really expect
- how this sum of money will come to you
- how you can grab hold and keep it
- and I will also give you a lot of other information which will help you to get all the chance over on your side so that you can make the most of this valuable opportunity


I will determine for you all of the information which you will need concerning the financial developments which you can expect during this Transit and how this sum of money will change your life. I will tell you:

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- and I will also give you a lot of other information which will help you to get all the chance over on your side so that you can make the most of this valuable opportunity


Here is again the web page where you can request my help, Shyam. As soon as I receive your confirmation that you want me to work on your reading I can get straight to work on your complete analysis. On this same page I have also given you a link to some testimonials from other customers that I have also helped through my clairvoyance and astrology.

Here is the link: http://aboutastro.com/j.php?p=request.cgi&r=6&c=sfgmt&f=fulnz

Have a good day and speak to you soon,

Your friend and astrologer,

Jenna


If, however you no longer wish to receive any messages from me, please let me know at : http://aboutastro.com/removemail.php?c=sfgmt&r=6




shyam really very happy that we have been able to get in contact together. I know that you have understood the importance of the coming Transit period and the necessity of having all the information you need to get the very best out of this exceptinnal event. I have already told you that this period will be very tense and it will allow you to reach a new turning point in your life. This is why I have set this web-page up for you Shyam and here you can ask me to work on the full Reading which you will need during this Transit. I want to make it very clear that I will bring you absolutely all of the information which you require to make the most of this Transit and to make sure that this Transit helps you to make the changes you need in the romantic, professional and financial aspects of your life. I have summed up in a few major the points the information which I will give you in this Reading, so please read on below.



* A complete Personal Astrological Forecast reading, detailing exactly what you can expect day-by-day over the Transit period in all the areas of your life Shyam. This Forecast will help and guide you, allowing you to avoid the inevitable pitfalls ahead and to make the most out of all of the chances and opportunities that this period is set to bring you. Using detailed astrological information based on your personal data I will ensure that you know exactly how to tackle the coming months, when you should act and which moments are most favorable for your success. Shyam this Reading will tell you how to get in just the right place and at the right time to seize all of the opportunities which will be available to you.


*



I will determine for you all of the information which you will need concerning the financial developments which you can expect during this Transit and how this sum of money will change your life. I will tell you:

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- how you can grab hold and keep it
- and I will also give you a lot of other information which will help you to get all the chance over on your side so that you can make the most of this valuable opportunity


* You will also be given a personal Character Analysis, a complete study of your behavoir and your character to allow you to get to know yourself, your drives and ambitions even better. This is an important tool and you will need to refer to it often during the Transit period as it provides vital clues to your personality and how you can react to seize this period's important opportunities and reach this new turning point in your life. Amongst other things this Analysis will explain:

- Your fundamental needs, values and orientation towards life
- The principal aspects of your personality
- Your lesser known character traits
- How you approach life, your basic stance towards life
- How you appear to others and the way others see you
- The way you come across and the face you show to the world
- The Inner You and your real motivation
- The kind of person you are at heart and where your true priorities lie
- How you can generally boost your capacities
- The costume you wear but also the real person inside the costume
- Your real role in life
- What are your mental interests and abilities
- How to get over your deeply hidden fears
- What are your emotions, moods and feelings
- How you are romantically
- How you achieve your goals, what your drives and ambitions are
- Growth and expansion: the areas that you enjoy
- What are the domains in which you could excel and find satisfaction
- The areas that challenge you or are difficult for you
- What makes you so original and how strong is your imagination
- In which areas you are creative, unique, unstable or compulsive


* You will also receive two very complete Ebooks, written by myself, copyrighted by me, and which are entirely unavailable elsewhere on the internet, or elsewhere as a matter of fact. These are complete guides of over 30 pages each and have very little in common with the more generalized ebooks which you may find on other websites. Shyam I should mention that these ebooks took me quite a few months to write and they contain information which you will not be able to find in this same context elsewhere on the internet. Within their pages I reveal a lot of detailed information and professional secrets which you will be able to use in many different areas of your life during this Transit period and for the rest of your Future.

The first Ebook is all about clairvoyancy and the different techniques which exist, so that you may understand my work a little better. The Ebook includes the following topics:

- The historical background
- How clairvoyancy can be scientifically explained
- Which scientific studies have been performed
- Why we all have this skill and what it can be used to do
- How to learn to develop this skill
- How to use the supports for clairvoyancy: the crystal ball, tarot cards...
- Should we believe in synchronicity? With precise examples.
- How to test one's own clairvoyancy
- Examples of exercises to build up this skill
- How to intensify this skill with certain secret techniques
- How clairvoyancy should generally be used
- How to use this capacity to predict one's own future

The second Ebook is about Radiesthesia, a technique to advance your power and self-discovery. This is a facinating area of esotheric research and you Ebook will tell you:

- What Radiesthesia really is
- How to use it in all areas of one's life and how best to learn
- How to use the pendulum which is used as part of Radiesthesia
- Why the pendulum could be so useful in your life
- Advanced level practices for the pendulum, with precise examples
- What Radiothesia and the pendulum really allows you to do
- How to analyse your mind with Radiesthesia
- What are the practical applications, some of which will amaze you!
- Using Radiesthesia to investigate the Past
- and finally other Radiesthesia devices


* All this work is entirely personal, Shyam. I will produce your complete reading for you in 2-3 days time, once I receive your confirmation (to confirm that you want me to do all of this work for you all you need to do is fill in the form below). As soon as my work is finished I will contact you directly by email and will give you the URL of a webpage where you can see your full Reading, containing all of the elements which I have detailed above (the complete Forecast for the entire Transit period containing important information about your work, financial and love lives; a complete Character Analysis all about you and your personality and the two Ebooks about Clairvoyancy and Radiesthesia ) and on this page you will be able to print these documents and/or select a downloaded version to save all this work on your computer. Shyam, I want to insist on the fact that I will apply myself to the fullest to complete all this work for you, I will use all of my skill and experience to analyse your situation precisely. You will find that once you receive all of this information you will be armed with hundreds of pages of detailed astrological guidance to help you best seize all of the chances and opportunities which this exceptionally intense Transit period is going to bring you. You will be able to reach a real turning point in your life and you will change your Future for the better.

All I need to get started is your confirmation and the form below filled in with your details.

To start your order please fill in the short form below. I need this information to work on your Astrological Reading. Once you submit this form you will be directed to a SSL Secure Page where you can safely enter your Credit Card information to settle the one time only fee of $60 US for your Reading.
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अंधविश्वास व विज्ञान क्या हैं ......

आजकल कुछ स्वयंभू ब्लॉग, सम्पादक व विद्वान् - अंधविश्वास को हटाने व वैज्ञानिक सोच का प्रसार करने का तमगा लगाए हुए हैं व छोटी-छोटी बातों को लिख कर विज्ञान-विज्ञान चिल्ला रहे हैं | वस्तुतः अंधविश्वास है क्या ---
---अंधविश्वास कोई वस्तुनिष्ठ या तथ्य निष्ठ बात नहीं है जिसे आप हटायेंगे ; अंधविश्वास --अंधे होकर अर्थात विना सोचे समझे किसी बात या तथ्य , घटना पर विश्वास कर लेना । यह एक व्यक्तिनिष्ठ तथ्य है ,मानव के अज्ञान- पर आधारित। कहावत है की अन्धेरा-अन्धेरा चिल्लाने व वर्णन करने से अन्धकार दूर नहीं होता |इसलिए शास्त्र ज्ञान की बातें , रीति-रिवाजों की भर्तसना नही करनी चाहिए , कुरीतिओं का वर्णन नही करें इससे जिन कुरीत्यों को लोग भूलते जा रहे हैं (आज कल अधिकतर कुरीतियों को पढ़े likhe log naheen maanate -jaanate )ve punah jaagrat ho jaateen hain । अतः एक दीपक जलाइये , इतना उजाला कर दीजिये , अन्धेरा स्वयं ही दूर होजायेगा। क्योंकि अन्धेरा कभी सदैव को नष्ट नहीं होता ( क्योंकि वह भी एक सृष्टि है ताकि मानव सदैव सृष्टि कर्ता को, संयम सदाचरण को सदगुणों को न भूले व कर्म में प्रवृत्त रहे ) अतः लगातार दीप जलाए रखना आवश्यक है, चाहे प्रकाश का,ज्ञान का,शास्त्र, संयम ,विवेक का ,विज्ञान का |
----अब विज्ञान क्या है ?---एक होता है ज्ञान , अर्थात विवेक, प्रज्ञा बुद्धि की उत्पत्ति ( अनुभव, प्रमाण , शास्त्र ज्ञान द्वारा उत्पन्न ) जिससे व्यक्ति प्रत्येक वस्तु, तथ्य व घटना आदि के पीछे की वास्तविकता को जान सकता है ,जिसे आँखें खुलना,अन्तर्विश्वास , अंतर्बुद्धि, अंतर्ज्ञान,अतीन्द्रिय ज्ञान,तृतीय - नेत्र, सिक्स्थ सेन्स कहा जासकता है, त्रिकाल दर्शिता,ईश्वर, सत्य, न्याय, संयम,सदाचरण व ईश्वरीय ज्ञान इसकी पराकाष्ठा है |
दूसरा होता है विज्ञान -अर्थात विशिष्ट ज्ञान; प्रत्येक वस्तु व भाव आदि के बारे में भौतिक जानकारी , उसके भौतिक जीवन में उपयोग के बारे में जानकारी ---जीवन में प्रत्येक क्षेत्र स्तर पर विज्ञान है , रसायन, जीव , चिकित्सा, धातु ,कला-विज्ञान , साहित्य का विज्ञान, शिल्प-विज्ञान ,समाज, मनो विज्ञान आदि-आदि --जिसे दर्शन में -अज्ञान- कहा गया है -क्योंकि ये शाश्वत व ईश्वरीय ज्ञान नहीं हें लौकिक हें,भाव समन्वयता का इसमें स्थान नहीं होता ,यह अन्तिम ज्ञान नहीं है ; अतः ज्ञान का ज्ञान होने पर ही अज्ञान- को जानना चाहिए ,ताकि मानव को ज्ञान का दंभ , कर्ता पन का दंभ न उत्पन्नं हो व दोनों में समन्वय रहे , यही मानव जीवन की सफलता है | तभी ईशोपनिषद में कहा गया है --
"""विद्या अविद्या यस्तद वेदोभय सहअविद्यया मृत्युम तीर्त्वा विद्यया अमृतं अनुश्ते ॥ """
अर्थात शास्त्र, ईश्वरीय ज्ञान व विज्ञान का साथ-साथ ज्ञान होना चाहिए अविद्या (विज्ञान-सांसारिक ज्ञान-) से संसार अर्थात मृत्यु को जीत कर(सफल जीवन जी कर ) ,विद्या ( ज्ञान) से अमृतत्व (मानसिक शान्ति , वास्तविक शान्ति,मुक्ति,कैवल्य ,परम धाम, ईश्वर प्राप्ति आदि ) प्राप्त करना चाहिए | आँखें खुलने पर मानव अंधविश्वास से स्वतः ही दूर रहेगा |

शनिवार, 28 नवंबर 2009

स्वयम्भू विद्वान---ब्लोग मालिक, सम्पादक.....

कुछ समय पहले एक सो काल्ड विग्यान के ब्लोग पर महान उपन्यास कार "मुन्शी प्रेम चन्द ’ पर छींटा कसी की गई थी कि उनकी ’मन्त्र’ कथा बडी अन्धविश्वास का परिचायक है और सांपो के काट्ने से झाड-फ़ूंक से ( कथा के कारण) आज भी लोगों की म्रित्यु हो रही है।
----मैने टिप्पणी में सलाह दी थी कि पहले लेखक कथा को अच्छी तरह पढे ,अर्थ समझे ; कथा में प्रेम चन्द ने रूढियों को नकारा है, नकि मन्त्र की प्रशन्सा की है, कहां -छुटभैया यह ब्लोग लेखक और कहां प्रेम चन्द---राई व पहाड का अन्तर है।
----और सदा की भांति स्वयम घोषित ,स्वयम्भू विद्वान, ब्लोग के मालिक ने वह टिप्पणी छापी ही नहीं; और उस पर तुर्रा यह कि हम वैग्यानिक-सोच को बढावा दे रहे हैं। सार्थक,युक्ति-युक्त सोच को ही बढावा नहीं तो विग्यान कैसा, कहां, साहित्य में यह गुट बाज़ी कहां तक...? हमारी जैसी नहीं कहेंगे तो हम छापेंगे ही नहीं....वही पुराना तेरा बहाना...
------आप ही सोचिये, समझिये ,बताइये..

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

कुछ दोहे--डा. श्याम गुप्त के.....

---दोहा हिन्दी साहित्य का एक अति प्रचलित छंद है जिसे गागर में सागर भरने वाला कहा जाता है, प्राकृत में इसे दूहा कहा जाता था| यह मात्रिक छंद है जिसमें १३-११ /१३-११ मात्राओं के दो चरण होते हैं | यह छंद साहित्य के प्रत्येक रस-विधा में प्रयोग होता है। नीति विषयक व श्रृंगार में इसकी विशेष छटा दिखाई देती है...
नीति दोहा-एकादश
परम्पराओं में निहित,सदा तार्किक अर्थ |
गहराई से परखिये,तजकर व्यर्थ कुतर्क |।

सम-सामयिक अर्थ में,परखें विधि प्राचीन ।
दोष जानिये बदलिए,रखिये सदा नवीन ।

वैज्ञानिक आधार पर,जन हितकारी कर्म ।
रीति रिवाज बनें यथा, कालान्तर में धर्म ।।

यम औ नियम शरीर हित,सदाचार व्यवहार ।
रहे चिकित्सा ज्ञान ही,इन सबका आधार ॥

जन समाज जनश्रुति बसी,लोकनीति की बात।
जन दर्शन,जन धर्म हैं ,समय तपाये, तात !

लोक गीत में रम रहे, रीति नीति व्यवहार।
लोक कथाएं कर रहीं, घर-घर ज्ञान प्रसार॥

निजहित धनहित चतुर-जन, सबसे मिलें सप्रेम ।
रहा जगत में 'श्याम अब , कहाँ परस्पर प्रेम ॥

दानवता से लड़ रहे, सज्जन अजहुं अनाम।
श्याम, आज भी चलरहा, देवासुर संग्राम ॥

धन जो प्राप्त अधर्म से, इक पीढी फल-पाय।
बाढ़ खाय फ़िर खेत को,उपवन जाय सुखाय ॥

देव सदा देते रहें,मानव दे और लेय ।
श्याम वही तो असुर है,जो बस सबसे लेय ॥

ज्ञानी-अज्ञानी यथा,साधू और असाधु ।
छोट-बढे पहचानिए, जब हो बाद-विवाद ॥

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

सखि कैसे !!---डा श्याम गुप्त की कविता-----

सखि री तेरी कटि छीन ,पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?
बोली सखी मुसुकाइ, हिये, उर भार तिहारो धरतीं हैं जैसे |

भोंहें बनाई कमान भला , हैं तीर कहाँ पै ,निशाना हो कैसे ?
नैनन के तूरीण में बाण , धरे उर ,पैनी कटार के जैसे |

कौन यहाँ मृग-बाघ धरे , कहो बाणन वार शिकार हो कैसे ?
तुम्हरो हियो मृग भांति पिया,जब मारै कुलांच,शिकार हो जैसे |

प्रीति तेरी मनमीत प्रिया ,उलझाए ये मन उलझी लट,जैसे |
लट सुलझाय तौ तुम ही गए,प्रिय मन उलझाय गए कहो कैसे ?

ओठ तेरे विम्बा फल भांति, किये रचि लाल , अंगार के जैसे |
नैन तेरे प्रिय प्रेमी चकोर ,रखें मन जोरि अंगार से जैसे |

अनहद नाद को गीत बजै,संगीत प्रिया अंगडाई लिए से |
कंचन काया के ताल-मृदंग पै, थाप तिहारी कलाई दिए ते |

प्रीति भरे रस-बैन तेरे,कहो कोकिल कंठ भरे रस कैसे ?
प्रीति की बंसी तेरे उर की ,पिय देती सुनाई मेरे उर में से |

पंकज नाल सी बाहें प्रिया ,उर बीच धरे क्यों, अँखियाँ मीचे ?
मत्त-मतंग की नाल सी बाहें ,भरें उर बीच रखें मन सींचे ||

सोमवार, 23 नवंबर 2009

समर्पित जीवन --डा श्याम गुप्त की -कविता

समर्पित जीवन

कलकल मलमल बहती नदिया,
अविरल गति से बहती है ।
करते रहो निरंतर श्रम, तप ,
बहते -बहते कहती है ।

जब हो यौवन औरलड़कपन ,
चट्टानों से टकरा जाओ |
अनथक करो परिश्रम , चिंतन,
पाषाणों में राह बनाओ |

प्रौढ़ और ज्ञानी-ध्यानी बन ,
मंद- मंद बहना सीखो |
मंथर मंथर बहते जग के,
सुख दुःख में रहना सीखो |

मंथर मंथर बहती नदिया ,
जब समतल में बहती है |
सब कुछ अपने अन्तर में भर,
सुख दुःख सहती रहती है |

सागर तीरे जब आती है,
जीवन जग का भार लिए |
सब कुछ उसे सौंप देती है,
परम समर्पण भाव किए |

श्रम तप ज्ञान सत्य से जग में ,
निधियां जो अर्पित कर पाओं |
जग के हित में प्रभु चरणों में ,
अर्पित सब करते जाओ |

जीवन सारा बहती नदिया ,
सागर में मिल खो जाए |
जैसे कोई परम- आत्मा,
स्वयं ब्रह्म ही हो जाए ||

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

शर्म आती है पर नहीं आती ----हमारी मानसिक गुलामी |

चित्र १.---वर्णन ---(बी)-पर देखें --
(ऐ)बेंगलूर में एक बड़े माल में एक रेस्तरां है--साहिब, सिंध, सुलता --एक रेल के कोच एवं रेल के ही विभिन्न फीचर्स --बेरे ,टी टी ई , गार्ड, आदि का रूप लिए हुए , सीटें -अंग्रेजों के ज़माने की साहिबों ( अँगरेज़ साहिबों ) के सलून की भांति , भोजन मेन्यू --लार्ड साहिब का मुर्ग जोश, नाना साहब की पसंद रायता, लक्ष्मी बाई की कढ़ी, आदि-आदि ,उस रेल कार में सीटी भी बजाती है , अनाउंस भी होता है | १९५३ में भारत की प्रथम ट्रेन की नक़ल -स्वरुप पर यह दस्तर खान बनाया गया है , अंग्रेज़ी हर प्रकार की शराब आदि भी उपलब्ध है , अर्थात सभी प्रकार से अंग्रेज़ी राज की यादें ताज़ा करें | साथ ही हमारी सबसे बड़ी शर्म का वाक्य भी भोजन मेन्यू में लिखा है ,जो अँगरेज़ व यूरोपियन बड़े फख्र से कहते थे--"दे केम दे शौ दे कोंकर्ड" (वे आए उनहोंने देखा , उन्होंने जीत लिया )| खाना बहुत महँगा है , हाँ क्वालिटी साधारण - लोग बड़े फख्र से बहुत देर इंतज़ार करके , बहाँखाने में बड़ा गर्व महसूस करते हैं | क्या ये हमारी हीन भावना की ग्रंथि नही है, कि चलोहमने भी साहबी मज़ा लिया -थे साहबों की नकल कर ली, साहबी नक़ल की पुरानी दमित इच्छा की पूर्ति | कब तक हम सिर्फ़ धंधे की खातिर अपनी शर्म, ईमान को बेचते रहेंगे ---सोचें --सरकार, धंधे बाज़, जनता, बेंगलूर के नव-धनाड्य अंग्रेज़ी दां इन्फो-टेकी और हम सब | कब तक मानसिक गुलाम रहेंगे आख़िर ??????????

(बी)--उधर हमारे समाचार पत्र- बड़े दो-टूक आदि की बड़ी -बड़ी बातें बघारते रहते हैं, पर उपदेश कुशल बहुतेरे , स्वयं क्या कर रहे हैं , अन्धाविश्वाशों को बढ़ावा , देखें आज का हैडर---चित्र १। ऊपर । सभी समस्याओं का समाधान , विना काम-धाम किए , सिर्फ़ पैसे खर्च करके | वाह !!!!!!!!!!!!!!!! क्या बात है , हम आधुनिक युगी होरहे हैं ।
---हमतो बस यही कहेंगे ---"शर्म आती है पर नहीं आती "

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

आधुनिक मनु-स्मृति (श्याम -स्मृति-)----

१.

बह रही है नदिया, अब-
धीरे धीरे धीरे,
सहमी-सहमी, सूखी-सूखी सी-
रूठी-रूठी सी;
किसी सपोले की भांति रेंगती हुई,
नाले की तरह ।
कहां गई वो अजस्र-प्रवाह नीर-धारा,
सहस्फ़ण की भांति फ़ुफ़कारती हुई,
अज़गर की भांति विशाल;
बाढ के द्रश्य और जल प्लावन;
होते थे तैराकी के मेले ॥

२.

कम सन्साधन,
अधिक दोहन;
न नदिया में जल,
न बाग-बगीचों के नगर।
न कोकिल की कूक,न मयूर की नृत्य -सुषमा;
कहीं अना बृष्टि , कहीं अति बृष्टि ;
किसने भ्रष्ट किया-
प्रकृति -सुन्दरी का यौवन॥

रविवार, 8 नवंबर 2009

अंग्रेजी कुप्रचार और उसमें कुछ अंग्रेजी दाँभटके हिन्दुस्तानियों का सहयोग ----

Loard Buddhas Interpretation of atheism:

Loard Buddha simply denied to have discussion and debate on the question of existance of supernatural power .He was silent on this point it doesnt mean that he had faith in the philosohpy of existance of supernatural power and the god his sileance certifies that he was certain and specific that there was no supernatural power and the god. Loard Buddha was interested to liberate common man and all human being from all types of exploitation and humialation.

1.

Nasteekta sirf adhunik bharat ki paschatya sauch matr nahi hai,aur Bharat main matr Upanishad o ke Nirgun Brahm..ya Budhhism ki concept matr nahi haiNasteekta ya Atheism ka prachalan Pracheen bharat main bhi tha..Unhe Nastibad bhi kaha jata tha. and there are many bits and pieces of rational thought scattered in ancient India. It was developed as a philosophy by Dishan who existed before Buddha. Buddha is believed to have lived in the 6-5th century B.C. He said that death was the end and perception was the only reality. (In truth it is the only reality we have.) .
The major atheist school of India was the Charvaka or Lokayat Darshan (Darshan = philosophy). Brihospoti who wrote a major part of the Rig Veda, probably the world's first rational Nastik, is considered the spiritual Guru of the school. The school developed around the 6th century B.C. The Brahmins could not defeat the logic of the Charvaka school and ended with personal attacks. They demonized the rationalists in their at ...more
Nasteekta sirf adhunik bharat ki paschatya sauch matr nahi hai,aur Bharat main matr Upanishad o ke Nirgun Brahm..ya Budhhism ki concept matr nahi haiNasteekta ya Atheism ka prachalan Pracheen bharat main bhi tha..Unhe Nastibad bhi kaha jata tha. and there are many bits and pieces of rational thought scattered in ancient India. It was developed as a philosophy by Dishan who existed before Buddha. Buddha is believed to have lived in the 6-5th century B.C. He said that death was the end and perception was the only reality. (In truth it is the only reality we have.) .
The major atheist school of India was the Charvaka or Lokayat Darshan (Darshan = philosophy). Brihospoti who wrote a major part of the Rig Veda, probably the world's first rational Nastik, is considered the spiritual Guru of the school. The school developed around the 6th century B.C. The Brahmins could not defeat the logic of the Charvaka school and ended with personal attacks. They demonized the rationalists in their attempt to contain the free-thinking which was becoming popular among the common people. The Brahmins even gave the name of the school (Charvaka) from an immoral monster called Charvaka in the Mahabharat hoping that the common people would come to hate it
And just like some modern western schemes, the Vishnu Puran and Moitri Upanishad said that the "monstrous" ideology was spread "intentionally" among the Asurs (to delude them and lower their moral character so that it would be easy for the Gods to defeat them in war. The much celebrated Shankaracharya and some other known ideologists were not above such petty mentality. They said that the philosophy was called Lokayat (folk) since it was of the Itor Lok (vulgar people). Other ideologists like Krishnamisra, Kumaril Vatta, Haribhadran Suri, Gunaratna, Jayrashi Vatta, Madhabacharja, Patanjali, Arjadeva, Vashakaracharja, Chandrakirti all attacked the Charbakas. They were, however, unable to refute the logic and also ended up with name calling. Manu, the strict conservative authoritarian, and often very cruel, hated these rationals (despicable Haitukas) said that those who reject the Vedas and Smriti for logic (Hetu Shastra) would be driven out and banned believers from speaking to them.
Brahmin Pandyas incensed by the popularity of the Lokayat eventually destroyed their books. However, their influence could not be wiped out. Some believe that their influence exists in different sects. Rational thought existed in Bengal and a sect which calls themselves Vaissnavas (they do not worship Vishnu or his incarnations) believe that the body is all that should be taken care of and are concerned with the union of a man and a woman. They are also called Sahajia ,which is the name of a sect of Buddhism which developed in the last four centuries of their existence in India.Nasteekta ka yeh ek matr arth nahi neekala jana chaheeye ki "ANESHWARWAD" lekin ush main neerakar upashna bhi jodi jani chahiye..... closWe know that the Lokayata was the most consistent materialist system of thought in India and came to acquire much influence among the people. So it met the most systematic cruel treatment from the Indian idealists. Undoubtedly the Lokayata Darshan had original texts and commentaries on them. Several idealist thinkers are also found to have quoted extensively from them in their attempt to refute them. But in the name of refutation what they have mostly done is to pour ridicule upon them. [end of p. 18] Often they have been also depicted as asuras and daityas. Brihaspati, the proverbial father of the Lokayata School, was depicted as an imposter. Moreover, not a single book of this great school of thought could be traced as yet, and scholars are of opinion that its texts and commentaries were all destroyed by the followers of the Vedas. It is also feared that some of the prominent spokesmen of the Lokayata darshan were liquidated by their opponents. In the Santiparva of the Mahabharata, Charvaka, the most outstanding spokesman of the Lokayata thought, was described as a Rakshasa and was murdered by the Brahmins present at the court of Yudhistira because of his raising conscientious objection to the latter’s accession to the throne after killing so many of his kinsmen. As admitted by one of such opponents, Madhavacharya, in his Sarva‑darshana‑sangraha, such harsh treatment was meted out to the materialists because it was difficult to contradict their contentions।

-----अब आप स्वयं ही देखें, पढ़ें , समझें की किस प्रकार उदाहरण रहित , ऊळ-जुलूल बातें, ब्रहस्पति को असुर, नास्तिक आदि कहाया जाने वाला बताना , जो सब के जाने हुए देव-गुरु हैं और उन्हें ऋग्वेद का लेखक कहलवाना , आदि -शंकराचार्य को छुद्र मानसिकता वाला कहलवाना ,लोर्ड बुद्धा की चुप्पी का अतार्किक अर्थ ठहराना ;----क्याआपको लेखक के ज्ञान तर्क मूर्खता , नीचता पर दया -मिश्रित क्रोध नहीं आता


शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

बालू में डूबा नगर -----तलाकाडा -कर्णाटक -भारत

अभी हाल में ही एक पोस्ट में जमैका में ४०० वर्ष पहले बालू में डूबे किसी नगर का वर्णन देकर बड़ा आर्श्चय व्यक्त किया गयाथा | वस्तुतः हम हर बात , ख़बर, घटना के लिए विदेशों की तरफ़ देखते हैं , अपना घर कभी नहीं |
----कर्णाटक (भारत -बंगलूर से १५० किलो.दूर-कावेरी नदी के किनारे -जिला मैसूर ) के गंगा -साम्राज्य ( लगभग३००-११०० डी; चोल साम्राज्य से पहले ) में उसकी राजधानी ' तलाकाडा' देखते ही देखते पूरी की पूरी बालू के ढेर में डूबगयी थी( सामान्य भारतीय कथ्यों की भांति -किसी आर्त नारी के श्राप के कारण ), आज कल उसे पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाईकरके पुनः निकाला जारहा है और यह एक अच्छे पर्यटन स्थल का रूप ले रहा है |

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

अँगरेज़ व मुग़ल आक्रान्ताओं में अन्तर ---

-----मुग़ल सारे हिन्दुस्तान को मुसलमान नहीं बना सके परन्तु आज सारा हिन्दुस्तान अंगरेज़ दिखाई देता है , क्यों ? आज सारे भारत में फ़ैली हुई अंग्रेजीयत को देख कर मेरे मन में यह सवाल सहज ही उठा | कारणों पर विचार करने से मुझे यह समझ में आया कि---
--मुग़ल या अन्य मुस्लिम आक्रान्ता इतने चालाक धूर्त नहीं थे , अतः उन्होंने तलवार के जोर पर भारतीय जनता कोमुसलमान बनाने पर जोर दिया , उन्होंने अपनी इमे दुनिया की चिंता नहीं की , हिन्दुओं के नीति-नियमों की बुराईविरुद्ध प्रचार , शास्त्रों -ग्रंथों को झूठा हिन्दुओं को असभ्य घोषित करने का अभियान नहींं चलाया , हिन्दुओं की सभ्यता-नीति-नियम-व्यवहार-आचार ,दिनचर्या आदि पर रोक नहीं लगाई बस जबरदस्ती इस्लाम कुबूल करके मुस्लिम बनाने परजोर दिया , जजिया लगाने का भी उद्द्देश्य कोई हिन्दुओं की सभ्यता से छेड़छाड़ नहीं था बस राजनैतिक धनलाभ हिन्दुओं को नीचा दिखाना ही था |उन्होंने कोई अर्ध -हिन्दू , मुसल-हिन्दू जाति की स्थापना नहीं की |
-----अँगरेज़ कौम बहुत चालाक धूर्त थी , साथ में ही चतुर , उन्होंने हिन्दुओं को बलात ,जोर जबरदस्ती से ईसाईअँगरेज़ नही बनाया अपितु कामिनी-कंचन के लालच सेअपना अर्थ साधा एंग्लो-इंडियन जाति स्थापित की जो भारत मेंअंग्रेजों की सहायक थी , बड़ी चतुरता से हिन्दुओं के इतिहास, धर्म, शास्त्र ,विज्ञान ,सभ्यता के विरुद्ध सुनियोजित ढंग सेअनर्गल प्रचार किया कराया ,उन्होंने हिन्दुओं के रीति-रिवाजों , धार्मिक कलापों को रोका , संस्थाओं को नष्ट किया एवं
हिन्दू ज्ञान को पुरातन-पंथी, अवैज्ञानिक करार देकर उसी ज्ञान को अंग्रेजी के माध्यम से अपना ज्ञान कहकर प्रचारित कियाइस तरह सारे भारत को अंगरेज़ बनाने की नींव रखी , वे कहलायेंगे हिन्दुस्तानी परन्तु व्यवहार, आचार, विचार ,क्रियाकलाप से अँगरेज़ होंगे | जो आपके सामने है |

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

नीरवता की धड़कन ---डा श्याम गुप्ता की कविता -----

जग की भीड़-भाड़ से होकर,
दूर अगर तू शान्ति चाहता |
जग की भीड़-भाड़ से होकर ,
त्रस्त अगर विश्रांति चाहता |

आजाओ इस निर्जन वन में ,
नदी किनारे खुले गगन में |
नीरवता के मौन -मुखर में ,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |

चुप-चुप इस निश्शब्द सघन में,
तन-मन की विश्रांति मिलेगी ||

चुप-चुप चन्दा चले ताल में,
नीरवमय आलोक बहाए |
चुप चुप चपल चांदनी चम-चम,
नदिया के जल को चमकाए |

पादप गण निस्तब्ध खड़े हैं ,
नीरवता हो स्वयं सोरही |
रह रह पवन बहे चुप सर सर,
नीरवता हो साँस ले रही |

किसी रात्रिचर के चलने से,
पत्ता जब चुप चाप खड़कता |
'मुझ में भी जीवन है ',कहने,
नीरवता का ह्रदय धड़कता |

सारस और वकों के जोड़े ,
एक टांग पर खडे सोरहे |
जैसे ध्यान धरे योगीजन ,
आत्म ज्ञान में लीन होरहे |

इस नीरव निश्शब्द विजन में,
अपने अन्तर में खोजायें |
आत्म लीन जब चित हो जाए,
मन के मौन मुखर होजायें |

अनहद का संगीत बजे जब,
कानों में बन कर शहनाई |
परम शान्ति का अनुभव होगा ,
जैसे मिले मोक्ष सुखदाई |

नीरवता के मौन मुखर में ,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |
चुप चुप इस निस्तब्ध विजन में ,
तन मन की विश्रांति मिलेगी ||



रविवार, 25 अक्तूबर 2009

वही सब कुछ ---

वही सब कुछ सब जगह है,
वही मैं , तू और वह है ।

वही मिट्टी,वही पानी,
वो हवा की रीति पुरानी।

पंछी और बसंत बहारें,
भंवरे गुनु-गुनु बचन उचारें।

वही कृष्ण हैं, राम वही हैं,
राधा और घनस्याम वही हैं।

पर्वत पर चन्दा है वो ही,
दुनिया का धंधा है वो ही।

मस्जिद भी है,मन्दिर भी है,
तुलसी भी है शंकर भी हैं।

वही अखवार हैं, उनमें-
ख़बर भी वो ही छपतीं हैं।

वही सड़कें जहाँ पर रोज़-
मोटर-कार लड़ती हैं।

वही हैं भीड़ से लथ-पथ,
ये सारे रास्ते सब पथ।

वही हैं खोमचे रेहडी ,
वही होटल वही हल चल।

वही आना वही जाना,
लोग दुःख दर्द के मारे |

पथों पर घूमती गायें,
वही इंसान हैं सारे।

भला बंगलौर या लखनऊ,
रहें मद्रास या दिल्ली |

सभी कुछ एक सा ही है,
नहीं कुछ और न्यारा है।

वो रहता है जो कण-कण में ,
जो रहता है सभी जन में।

सभी दर हैं उसी के प्रिय,
वही दुनिया से न्यारा है।

जहाँ पर वक्त के झोंके,
पढाते शान्ति की भाषा |

झरोखे प्रगतिं के जहाँ पर,
कर्म के कहते परिभाषा |

सिखाता धर्म अनुशासन ,
रहें हिल मिल जहाँ सब जन |

हमें अपना वतन सारा ही,
हिन्दुस्तान प्यारा है ||

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

कहानी की कहानी ---डॉ श्याम गुप्ता ----

सत्य ,सत्य-कथा, कथा, कल्पित -कथा ,गल्प,व असत्य कथा-कहानी
अब बताइये , आपके टी वी पर धारावाहिक कथा आरही है साथ ही एक सूचना भी-'इस धारावाहिक में दिखाई गयी घटनाएँ व पात्र आदि ,किसी भी देश,काल,पात्र,प्रदेश, समाज,वर्ग, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं '-
अब कहानी की कहानी यूँ बनती है, पहले वेद-उपनिषद् आदि में घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था ;पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथा रूप में लिखा जाने लगा ,ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके | फ़िर आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म हुआ जो सत्य-व्वास्ताविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि ,जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं | बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प , फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति -वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
परन्तु आज हमें क्या दिखाया जारहा है,पूर्ण असत्य-कथा -कहानी ,अर्थात - 'इस सीरियल के पात्र, घटनाएँ ,किसी भी देश,काल,समाज,जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते ' अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी ; ऊपर से तुर्रा यह कि हम समाज सेवा कर रहे हैं ,नारी शोषण -उत्प्रीणन के विरोधी स्वर उठा रहे हैं | वाह जी वाह ! ,जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है तो आप विरोध अथवा सेवा किस की कर रहे हैं ? पहले हवाई किले बनाना ,फ़िर तोड़ना और बीर-बहूटी का खिताब ! या बस अपने देश समाज की बुराई ........| क्या-क्या मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम और हमारी पीढी |

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

डा श्याम गुप्त का एक पद---मन के भरम परे .

( पद हिन्दी साहित्य ,विशेष कर भक्ति साहित्य का एक विशिष्ट छंद है , जो मूलतः भक्ति -गीत के ताल-लय पर आधारित होता है ,भक्त शिरोमणि सूरदास, तुलसीदास आदि भक्त कवियों ने इसे बहुत मनोयोग से इसे प्रयोग किया है , देखिये डा श्यामगुप्त का एक पद ---)

सुअना मन के भरम परे |
जैसा अन्न हो जैसी संगति, सोई धर्म धरे |
संतन डेरा बास करें जे, राम नाम सुमिरे |

अन्न भखै गणिका के घर ते, दुष्ट बचन उचरे |
परि भुजंग मुख बने गरल,और मोती सीप परे |
परै केर के पात स्वाति जल,बनि कपूर निखरे |
दीपक गुन बनि करै उजेरो , चरखा सूत बुने |
सो कपास,संग अनल-अनिल के,घर को भसम करे|
काम क्रोध मद मोह लोभ ,अति बैरी राह खड़े |
ये सारे मन के गुन सुअना ! तिरगुन भरम भरे |
चित चितवन चातुर्य विषय वश ,कर्म-कुकर्म करे|
माया मन की सहज वृत्ति ,मन सुगम राह पकरे |
काल उरग साए में सब जग,भ्रम वश प्रभु बिसरे |
एक धर्म रघुनाथ नाम धारे भव- सिन्धु तरे ||



गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

दीपावली , विज्ञान व वैज्ञानिकता ---

विज्ञान, अर्थशास्त्र,सामाजिकता, मानवता,सत्व-आचरण व्यवहार का समन्वय है , दीपावली का पर्व |
घरों की सफाई,घूरा-पूज़न,कूड़ा- करकट जलाना, धन्वन्तरी पूजन , यम् पूजन आदि स्वास्थ्य-शुचिता , रोगों की रोकथाम , सामाजिक व रोकथाम चिकित्सा केवैज्ञानिक तथ्य हैं |
धनतेरस पर स्वर्ण आदि खरीदना -बचत का प्रावधान , एक आर्थिक सुरक्षा दृष्टि है |दीपदान,भैया दूज ,उत्सव मनाना ,मेले , नरक चतुर्दसी , दानवीर बलि- वामन सन्दर्भ आदि सामाजिकता,मानवता, आचरण -शास्त्र एवं सिर्फ़ स्वयं के बजाय परार्थ भाव व कर्म के प्रेरक हैं |
आख़िर वैज्ञानिकता व विज्ञान है क्या ? कुछ लोग समझते हैं कि नयी-नयी खोजें, उनका वर्णन ,खोजी लोगों के जीवन व जन्म दिन का वर्णन ही वैज्ञानिकता व विज्ञान है |नहीं , यह सिर्फ़ भौतिक उन्नति के पायदान हैं | वैज्ञानिकता का अर्थ है , वह उच्च वैचारिक धरातल जहाँ समता ,समानता , नैतिक आचरण मानव के दैनिक स्वाभाविक व्यवहार हो जायं |विज्ञान का अर्थ है , वे कृतित्व , विचार,कर्म व आचरण जो मानव को उस उच्च धरातल पर लेजाने को प्रेरित करें |

विश्व में एकमात्र विशिष्टतम त्यौहार --दीपावली पर्व

स्वास्थ्य -शुचिता,वैभव,समृद्धि,सामाजिकता-सदाचरण ,परमार्थ भाव के साथ उल्लास के रंग बिखेरता, पाँच दिवसों का यह भारतीय दीप दान पर्व , विश्व में एक अनूठा पर्व है | प्रथम पर्व ,धन- तेरस अर्थात स्वास्थ्य का महा पर्व ; समस्त विश्व में धार्मिक आधार लेकर स्वास्थ्य का ऐसा महापर्व शायद ही कहीं मनाया जाता हो ;प्रथम चिकित्सक भगवान धन्वन्तरि के अवतरण, स्वर्ण-कलश लेकरसमुद्र मंथन के समय प्राकट्य , के दिवस पर धन धान्य के साथ साफ़-सफाई व अच्छे आरोग्य की कामना काएक वैज्ञानिक - पर्व है धन-तेरस या धन्वन्तरि त्रियोदशी |
भगवान् धन्वन्तरि के अनुसार अवश्यम्भावी स्वाभाविक काल-मृत्यु के अतिरिक्त शेष सभी ९९ प्रकार की मृत्यु से चिकित्सा व निदान से बचा जा सकता है | जीव-जंतुओं ,प्राणियों व प्रकृति के स्वभाव से लेकर, शल्य चिकित्सा तक पर धन्वन्तरि के विषय-वैज्ञानिक व्याख्याएं हैं | वन संपदा व जडी-बूटियों (आयुर्वेदिक औषधि संपदा )पर भी देवी लक्ष्मी का वास है | स्वस्थ शरीर ही मानव की सबसे बड़ी पूंजी है ,इसी कारण धन - तेरस , दिवाली पर्व पर आयु,आरोग्य,यश, वैभव , गृह,धन-धान्य, धातु आदि की पूजा होती है | द्वितीय दिवस यम् देवता की पूजा,नरक चौदस भी इसी स्वास्थ्य कामना का पर्व है |तृतीय दिवस दीपदान 'तमसो मा ज्योतिर्गमय ' के साथ लक्ष्मी-गणेश पूजन,चतुर्थ -दिवस ,दान,श्रृद्धा,संकल्प का पर्व असुर राज बलि-वामन अवतार प्रसंग व अन्तिम दिन भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक यम्-द्वितीया पर्व सामाजिकता का पर्व है |इस प्रकार सम्पन्नता के साथ स्वास्थ्य, सदाचरण,सम्पूर्ण निर्विघ्नता-कुशलता के अमर संदेश के साथ लक्ष्मी का आगमन हमारी स्वस्थ , अनाचरण रहित कर्म की सांसकृतिक परम्पराओं की अमूल्य निधि है |
----------सभी को इस महान पर्व पर शुभ कामनाओं सहित| प्रस्तुत है ----

प्राचीन भारत में सर्जरी के कुछ दर्पण---




<----प्राचीन भारतीय शल्य चिकित्सा के यन्त्र व-शस्त्र( सुश्रुत संहिता)

ये आधुनिक इन्सट्रूमेन्ट्स के ही समान हैं, नाम
ऊपर--प्रख्यात भारतीय शल्य-चिकित्सक आचार्यवर सुश्रुत, कान की प्लास्टिक सर्जरी करते हुए। कान की सर्जरी का यह तरीका-सुश्रुत-विधि -कह्लाता है।

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

कर्म -अकर्म ----

कर्म निम्न प्रकार के होते हैं ---
।- कर्म --जो प्राणी के नित्य-नैमित्तिक कर्म होते हैं , खाना,पीना, सोना ,मैथुन ,सुरक्षा , आदि-आदि जो प्रत्येक जीव करता है , वनस्पति से लेकर मानव तक|
.-सकर्म -जो मूलतः मानव करता है -सामाजिक दायित्व वहन, नागरिक दायित्व ,पारिवारिक दायित्व जो जीवन में आवश्यक हैं |
.-सत्कर्म-जो मानव ,सामान्य कर्मों सेऊपर उठकर , समाज, देश,धर्म ,मानवता के लिए विशिष्ट भाव से करता है जो उसे विशेष व महापुरुषों की श्रेणी में लाता है।
.-कुकर्म या दुष्कर्म --जो मानव को हैवान व पशुतुल्य बनाते हैं ,और मानवता,देश,समाज ,मानव के प्रति अपराध युत होते हैं |
अकर्म --जो व्यर्थ के कर्म होते हैं व मानव को उनसे बचना चाहिए , ये देखने में अहानिकारक होते है सिर्फ़ क्षणिक मनोरंजन कारक ,परन्तु वास्तव में ये समाज के लिए दूरंत-भाव में अत्यन्त हानिकारक व
घातक हैं,
क्योंकि ये व्यक्ति कोअप्रत्यक्ष रूप में कुकर्म करने को प्रेरित करते हैं
,------आजकल टीवी, रेडियो ,मोबाइल आदि पर अत्यधिक मनोरंजन , रेअलिटीशो में बच्चों ,युवकों ,किशोर-किशोरियों को अपने मूल शिक्षा कर्म से भटकाना एक अत्याचार है , स्टंट आदि वाले शो में व्यर्थ के स्टंट जो कभीजीवन में काम नहीं आते, गंदे, वीभत्स , अभक्ष्य पदार्थों में, सर्प -कीडों में मुहं डालने वाले द्रश्य | सीमित ज्ञान वालेलोगों द्वारा सामाजिक आदि विषयों ,तथ्यों पर आधे-अधूरे सत्य , अति-नाटकीयता प्रदर्शन आदि-आदि ; सभी वस्तुतः अकर्म हैं
शासन, जन-सामान्य,विद्वतजन ,संस्थायें , सामाजिक -संस्थायें ,आप और हम सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए.

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

ले चल सत की राह ---

हे मन ! ले चल सत की राह |

लोभ, मोह ,लालच न जहां हो ,
लिपट सके ना माया ....| x2
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....| x2
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | x2-----हे मन ले चल.....||

यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...| x2
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...| x2
अमृत गागर ढकी असत पट ,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|x2
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|

रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

सही प्रश्न है - कहीं यह लेट-लतीफी जान बूझा कर तो नहीं | हर जगह शिक्षा के क्षेत्र में ,कम्युनिस्ट , साम्यवादी खेमे व शिक्षा माफिया अपने खूंटे गाडे हुए हैं , जिनका उद्देश्य हिन्दी, हिन्दुस्तानी तंत्र को बदनाम करना होता है| यूं पी बोर्ड को भी कहीं बदनाम करने का यह षडयंत्र तो नहीं ???


------------दे.हि समाचार -०२-१०-०९ ---------------->

गांधीजी और आज के बच्चे ----


बच्चों ने गांधीजी के बारे में आधे-अधूरे जबाव दिए ?
------लोग भी क्या पुराने , बूढे ,एतिहासिक लोगों के बारे में पूछा करते है, क्या आज के नेताओं को, अफसरों को , क्षात्रों को पूरा पता है गांधी के बारे में ?
-------फ़िल्म, फ़िल्म के हीरो,हीरोइन, अंग्रेजी फ़िल्म के हीरो, सोंग्स , विडियो , डांस , अंग्रेजी उपन्यास,शेयर के बारे में क्यों नहीं पूछते !!! इन से फुर्सत मिले तबतो-------- -- समाचार - हिन्दुस्तान दैनिक -०२-१०-०९

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

Tears-----poem------byDrshyamGupta

Tears

From the corners of eyes they flow,

In the sorrow & happiness they flow.

From the troubled eyes they flow,

To tell all the lies , they flow।


One is lost in loving memories they flow,

In the warmth of loving arms they flow.

In the lone nights & gay spring wind,

They are tales from fathoms of mind।


Sung the saddest songs , they flow,

Hearing the sweetest melody they flow.

They are heart-throb pain with cheers,

Foe some just salted water,else they are tears।


Every time they are a different tale,

The deepest secrets of heart they unveil.

They flow for else’s cause,

Even flow one gets applause।


They are humble power of pious soul,

May also be a sinful quest.

Since they may be the crocodile tears,

Poised for some vested interest.

रविवार, 27 सितंबर 2009

चाँद पर पानी ---डॉ श्याम गुप्त की ग़ज़ल-----

मर गया जब से मनुज की आँख का पानी |
हर कुए तालाब नद से चुक गया पानी |

उसने पानी को किया बरबाद कुछ ऐसे,
ढूँढता फ़िर रहगया हर राह पर पानी |

उसने पानी का नहीं पानी रखा कोई ,
हर सुबह और शाम अब वह ढूँढता पानी |

पानी-पानी होगया हर शख्स पानी के बिना,
खोजने फ़िर चलदिया वह चाँद पर पानी |

कुछ तसल्ली तो हुई,इक बूँद पानी मिलगया ,
पर न 'पानी मांग जाए' , चाँद का पानी |

श्याम' पानी की व्यथा समझे जो पानीदार हो ,
'पानी-पानी ' होरहा हर आँख का पानी ||

शनिवार, 26 सितंबर 2009

दो नये मुक्त छन्द---अन्तर--

दुष्ट और सर्प

दुर्जन और सर्प में,
है इतना ही अन्तर;
सांप छेडने पर ही डंसता है,
और व्यक्ति बच भी जाता है;
यदि मिल जाये्कोई मन्तर।
दुष्ट नश्तर की तरह डंसता रहता है,
प्रतिपल, जीवन भर;
आपका अन्तर;
काम नहीं करता है,
कोई भी मन्तर ॥

मनुष्य व पशु

मनुष्य व पशु में,
यही है अन्तर;
पशु नहीं कर पाता,
छल-छंद ओ जन्तर-मन्तर।
शैतान ने पशु को ,
माया सन्सार कब दिखाया था,
ग्यान का फ़ल तो ,
सिर्फ़ आदम ने ही खाया था॥


शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

स्त्री-पुरुष संबंधों ,अंतर्संबंधों ,प्रेम,अधिकार व कर्तव्यों की उचित व पुनर्व्याख्या है राधा -कृष्ण -गोपिकाओं की गाथा ----

यदि राधा व गोपिकाएं श्री कृष्ण से असीम प्रेम करतीं हैं , सर्वस्व अर्पण की भावना रखती हैं ,तो श्री कृष्ण भी उनका श्रृंगार करते हैं, अंजन लगाते हैं, मयूर नृत्य करते हैं, स्त्री का सांवरी रूप धरते हैं, मुरली -गान से मनोरंजन करते हैं ,उनकी सखियों का भी मान रखते हैं ,यहाँ तक कि राधाजी के पैर भी छूते हैं; पुरूष में 'अहं 'होता है ,स्त्री में 'मान 'परन्तु, प्रेम ,पति-पत्नी,स्त्री-पुरूष संबंधों में अहं नहीं होता , स्त्री का मान मुख्यतया प्रेम की गहराई से उत्पन्न होता है| यदि पुरूष स्त्री को बराबरी का दर्जा दे ,अहं छोड़कर उसके मान की रक्षा करे ; स्त्री के स्व का ,स्वजनों का ,इच्छा का सम्मान करे तो सामाजिक,पारिवारिक द्वंद्व नहीं रहते |
उस काल में भौतिक प्रगति, जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-सामाजिक -वाणिज्यिक कारणों से पुरुषों की अति व्यस्तता स्त्री-पुरूष संबंधों में दरार व द्वंद्व बढ़ने लगे थे , त्रेता में शमित आसुरी प्रवृत्तियां बढ़ने से स्त्रियों की सुरक्षा हेतु उनकी स्वतन्त्रता पर अंकुश भी बढ़ने लगा था , पुरूष श्रेष्ठता व स्त्री आधीनता को महिमा मंडित किया जाने लगा था| श्री कृष्ण के रूप में स्त्रियोंको उनकी की स्वतन्त्रता , बराबरी , श्रेष्ठता का प्रतीक मिला, वे सर्व-सुलभ , सहज, उनका मान रखने वाले , सम्पूर्ण तुष्टि देने वाले थे ,जो वस्तुतः स्त्रियों की सहज आशा व चाह होती है ; राधा श्रीकृष्ण की चिर संगिनी, प्रेमिका , कार्य-संपादिका व इस नारी-उत्थान व समाजोत्थान में पूर्ण सहायिका थी।
श्री कृष्ण -राधा के कार्यों के कारण गोपिकाए ( ब्रज-बनिताएं) पुरुषों के अन्याय, निरर्थक अंकुश तोड़ कर बंधनों से बाहर आने लगीं, कठोर कर्म कांडी ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी पतियों के अनावश्यक रोक-टोक को तोड़कर श्री कृष्ण के दर्शन को बाहर जाती हैं। यह स्त्री स्वतन्त्रता , सम्मान ,अधिकारों की पुनर्व्याख्या थी। वैदिक काल के पश्चात जो सामाजिक ,सांस्कृतिक ,बौद्धिक शून्यता समाज में आई ,उसी की पुनर्स्थापना करना कृष्ण -राधा का उद्देश्य था .

साहित्यकार पुरस्कार योजना---


अखिल भारत वैचारिक-क्रान्ति मन्च द्वारा आर्थिक रूप से दुर्बल साहित्यकारों--कवि, शायर, सम्पादक,पत्रकार, लेखक --के लिये एक पुरस्कार योज़ना का अवलोकन ,हिंदी साप्ताहिक- अगीतायन ,लखनऊ,७ सितम्बर अन्क की इस विग्यप्ति में करें ।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

अन्तर --दो मुक्त छंद ------

--लेखनी और तलवार
तलवार और लेखनी में अन्तर है-
तलवार पहले काटती है ,
फ़िर खून बहाती है।
लेखनी ,पहले स्वयं काटी जाती है,
स्याही बहाती है,
फ़िर व्यक्ति को काटकर -
उसका खून सुखाती है॥

-- नाग और कलम
नाग और कलम ,दोनों ही दुमुंहे हैं-
कलम जेब में रखी जाती है ,
नाग भी आस्तीन में रहते हैं;
नाग,फुफकारता है ,
काटता है,
फ़िर विष छोड़ता है ;
कलम, स्याही सोखती है,
फ़िर छोड़ती है ,दौड़ती है,
फ़िर ,काटती है॥

सुपर पावर ---हम और हमारा भारत ----


आख़िर हम सुपर पावर ही क्यों बनें ?,क्या हम दूसरे देशों की नक़ल करके उन के मापदंड के अनुसार उनके सिर पर बैठने की क्यों सोचे ? हम ऐसे एक अलग स्वतंत्र विचार व भाव बाले अच्छे देश जहाँ न भेद-भाव हो न आपसी झगडे,न गन्दगी से बजबजाती नालियां ,उफनते सीवर,टूटी सड़कें ,नग्नता पसारते मीडिया ,फ़िल्म ,अभिनेता -अभिनेत्रियाँ व लोग,न दहेज़ के लिए जलाई जाने वाली बेटियाँ , न धर्म ,राजनीति,धंधे ,विकास के नाम पर धोखा देने वाले लोग व नेता, न लुटते बेंक,लूटती कंपनियाँ ,न भ्रष्ट शासक,प्रशासक व अधिकारी-कर्मचारी ,न गुंडे-मवाली व संघटित अपराधी -- प्रसादजी की आवाज़ में -"अरुण यह मधुमय देश हमारा " या जैसा सृष्टि महाकाव्य में कहा गया है-
"सर्व श्रेष्ठ क्यों कोई भी हो ?
श्रेष्ठ क्यों हो भला सभी जन"

पढ़ें राम चन्द्र गुहा का सारगर्भित आलेख " सुपर पावर ही क्यों बनें हम "

हमारा अंग्रेजी प्रेम--


<--चित्र १ चित्र २--->



अब देखिये बात या कार्य-क्रम शोक जताने,बच्चों को नैतिक शिक्षा की हो जिसमें एक बड़े जिम्मेदार स्कूल( वैसे इस स्कूल में सब कुछ अंग्रेजी में ही होता है) के संस्थापक हों ;या शोषण के ख़िलाफ़ अभिभावकों के मंच की हो जिसमें न्यायाधीश , पुलिश महानिदेशक व हिन्दी के विद्वान् साहित्य-भूषण सम्मानित गण हों ; कार्य-क्रम के पट (बैनर ) आदि अंग्रेजी में होंगे । जब मूल भावना ही अंग्रेजियत की होगी तो बच्चों व नागरिकों पर भारतीय प्रभाव कैसे पड़े ?
हम कब सोचेंगे,कब बदलेगा यह सब? हम कबतक हिन्दी में सोचने ,समझने, लिखने लायक होंगे?


चित्र १ -अभिभावक गोष्ठी में डॉ रामावतार सविता 'साहित्य-भूषण ' व अन्य।
चित्र २-सिटी मांट,स्कूल के संस्थापक श्री गांधी -नेतिक- शिक्षा देते हुए।