----मैने टिप्पणी में सलाह दी थी कि पहले लेखक कथा को अच्छी तरह पढे ,अर्थ समझे ; कथा में प्रेम चन्द ने रूढियों को नकारा है, नकि मन्त्र की प्रशन्सा की है, कहां -छुटभैया यह ब्लोग लेखक और कहां प्रेम चन्द---राई व पहाड का अन्तर है।
----और सदा की भांति स्वयम घोषित ,स्वयम्भू विद्वान, ब्लोग के मालिक ने वह टिप्पणी छापी ही नहीं; और उस पर तुर्रा यह कि हम वैग्यानिक-सोच को बढावा दे रहे हैं। सार्थक,युक्ति-युक्त सोच को ही बढावा नहीं तो विग्यान कैसा, कहां, साहित्य में यह गुट बाज़ी कहां तक...? हमारी जैसी नहीं कहेंगे तो हम छापेंगे ही नहीं....वही पुराना तेरा बहाना...
------आप ही सोचिये, समझिये ,बताइये..