....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्यों घबराये होरही , भ्रष्टाचार की जांच |
भ्रष्टाचारी बन्धु सब, तुझे न आये आंच |1
मेल परस्पर घटि गयो, वाणिज मन हरषाय |
मेल-मिलाप करायं हम, पानी -दूध मिलाय |2
ज्ञान हेतु अब ना पढ़ें , पढ़ें नौकरी हेतु |
लक्ष्य चाकरी होगया, लक्ष्मी बनी है सेतु |3
धन साधन की रेल में,भीड़ खचाखच जाय |
धक्का -मुक्की धन करै, ज्ञान नहीं चढ़ पाय |4
चाहे पद-पूजन करो, या साष्टांग प्रणाम |
काम तभी बन पायगा, चढे चढ़ावा दाम |5
जन तो तंत्र में फंस गया,तंत्र हुआ परतंत्र |
चोर- लुटेरे लूटते, घूमें बने स्वतंत्र | 6
राजनीति की नीति में,कैसा अनुपम खेल |
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल | 7
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल | 7
आरक्षण की आड़ में, खुद का रक्षण होय |
नालायक सुत-पौत्र सब, यहि विधि लायक होय | 8
बाढ़ आय सूखा पड़े , हो खूनी संघर्ष |
इक दूजे को दोष दे , नेताजी मन हर्ष | 9
भाँति भाँति के रूप धरि, खड़े मचाएं शोर |
किसको जन अच्छा कहे, किसे कहें हम चोर | १०
नेता वाणी से करें, परहित पर उपकार |
निजी स्वार्थ में होरहा, जन धन का व्यवहार || 11