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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 14 जनवरी 2012

हिन्दी-ब्लोगिन्ग… एक विहंगम द्रष्टि….डा श्याम गुप्त

                               ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ..

                 ब्लोगिन्ग या चिट्ठाकशी..चिट्ठाकारी …चिट्ठालेखन अर्थात इन्टर्नेट पर लेखन -- एतिहासिक पृष्ठभूमि के द्रष्टिकोण से १९९७ के आस-पास प्रारम्भ हुआ । भारत में हिन्दी-ब्लोगिन्ग का २००८ से त्वरित गति से आरम्भ हुआ, साथ ही साथ स्थानीय भाषाओं में भी इसका प्रसार होने लगा। भारत जैसे विशाल देश एवं हिन्दी व स्थानीय भाषाओं में ब्लोग्गिन्ग प्रारम्भ होने के कारण यह विधा तेजी से फ़ैली। और आज हिन्दी ब्लोगिन्ग विश्व के पटल पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुकी है ।

        ब्लोगिन्ग का मूल उद्देश्य लेखक द्वारा अपने मूल व स्वतन्त्र विचारों को बिना सम्पादन व सन्शोधन के समाज व विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करना था । यह ठीक उसी प्रकार था जैसे साहित्य में सामयिक ठेकेदारी, गुटबाज़ी, विशिष्ट वर्ग व समूह-संस्कृति को ठुकराकर ..निराला, महादेवी, प्रसाद जैसे महान स्वतन्त्र लेखक-विचारक-विद्वान साहित्यकारों ने साहित्यिक ठेकेदारों को ठेंगा दिखाकर अपनी कृतियों में बिना किसी से भी भूमिका आदि लिखाये, भूमिका के स्थान पर स्वयं ही बडे-बडे विचारपूर्ण तथ्यात्मक आत्मकथन लिखने की परम्परा डाली। ये साहित्य-जगत व हिन्दी-जगत के प्रथम ब्लोग थे जो प्रिन्ट-मीडिया में लिखे गये।
       परन्तु ब्लोगिन्ग में भी विभिन्न भटकाव आरहे हैं, विज्ञापन, ज्योतिषी लोग व अन्य सन्स्थाएं, विभिन्न साइट्स, पोर्न-विज्ञापन व साइट्स आदि धन्धेबाज़ों के कारनामे इस विधा को भी बद्नाम करने में कोई कसर नहीं छोड रहे।  जिससे साहित्य का स्तर भी निम्न होरहा है । कुछ लोगों ने यह भी कहना प्रारम्भ कर दिया है कि यह निठल्ले व अन्य स्थानों पर असफ़ल लोगों काम है । फ़िर भी हिन्दी- ब्लोगिन्ग एक विश्वव्यापी सक्षम, सशक्त व महत्वपूर्ण साहित्यिक व सामाजिक विधा बन कर आगे आई है ।
       महत्वपूर्ण विषयों व बिन्दुओं पर स्वतन्त्र चिन्तनपरक साहि्त्य, काव्य व आलेखों को बढावा, हिन्दी भाषा व साहित्य का उत्थान, देश-विदेश व सुदूर प्रदेशों में भी हिन्दी लेखन का प्रसार, संस्कृति, देशभक्ति, देश-प्रेम, राष्ट्रीयता का उत्थान व प्रसार, ज्ञान के भन्डार की अभिवृद्धि, विश्वभर से सम्बन्धों में अभिवृद्धि एवं ज्ञान का आदान-प्रदान आदि ब्लोगिन्ग के गुणात्मक पहलू हैं ।
        पहेलियां, प्रश्नोत्तरी जैसे निम्नस्तरीय साहित्य का पदार्पण,निशुल्क प्रकाशन सुविधा के होते अचानक बहुत से कवि व साहित्यकार, लेखक उत्पन्न होगये हैं |  उच्च स्तरीय साहित्य एवं गुणवत्ता वाले विषयों की कमी, ब्लोगरों द्वारा भाई बहन बाप गुरु आदि आपसी रिश्ते व वर्ग-समूह बनाना, गूगल व अन्य साइट्स आदि पर उपस्थित अधकचरे ज्ञान के आधार पर लिखे गये घिसे-पिटे आलेख, एवं पोस्टों की पुस्तकें छपबाने का धन्धा, मौलिक उच्चकोटि के आलेखों का अभाव…जो कि ब्लोगिन्ग का मूल उद्देश्य था..आदि ब्लोगिन्ग के मूल ऋणात्मक पहलू हैं। जो संस्कृत की  एक  प्रसिद्द कहावत को सिद्ध करते हैं ---
      "उष्ट्राणाम लग्नवेलायाम,गर्दभा स्तुति पाठका |
      परस्पर प्रशंसन्ति,  अहो रूपमहो ध्वनि ||"
            यदयपि इसका मूल कारण यह है कि मध्यवय के, प्रौढ-वृद्ध -अनुभवी व विद्वान लोग अभी पुरानी पीढी के हैं एवं कम्प्यूटर की लगभग सभी आपरेशन-भाषा, कोड, आदि अन्ग्रेज़ी के हैं तथा उस पीढी के लोगों को कम्प्यूटर के सन्चालन का ज्ञान भी अधिकान्श नहीं है..वे नेटीज़न नहीं बन पाये हैं..। अतः मूलत: जो युवा व प्रौढ पीढी के हैं व दोनों भाषाओं के ज्ञाता हैं तथा कम्प्यूटर- नेट आदि से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं वे ही ब्लोगिन्ग में हैं और वे स्वयं कम अनुभवी हैं और ज्ञान की कमी भी है।

         निशुल्क ब्लोगिन्ग एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अनुचित लाभ उठाना भी ब्लोगिन्ग का एक नकारात्मक पहलू है। इसका लाभ उठाकर विभिन्न कम्यूनल साइट्स, व्यवसायिक साइट्स, असांस्कृतिक सन्स्थायें व व्यक्ति  अपने गुणगान व प्रसार-प्रचार  में रत हैं, क्योंकि भारत की जनसन्ख्या देखते हुए यदि ०.१ प्रतिशत लोग भी ब्लोगिन्ग करते या पढते हैं तो भारत अन्य विषय-वस्तुओं की भान्ति इसका भी बहुत बडा बाज़ार है।
         फ़िर भी हिन्दी-ब्लोगिन्ग ने एक महत्वपूर्ण बात तो सिद्ध की ही है कि आज भी मानव अपने मूल सन्स्कारी भाव …धर्म, अध्यात्म में रुचि से डिगा नहीं है जो दशावतार, हनुमान लीला, राम-सीता प्रकरण आदि पोस्टों पर सर्वाधिक—३००-५०० तक टिप्पणियां से प्रदर्शित होता है। जो समाज के लिए एक अच्छा व प्रेरक चिन्ह है | 
         यह भी देखा गया है  महिलाओं की प्रशन्सा में रुचि से भी कवि मानव-मन डिगा नहीं है जो किसी महिला कवयित्री या लेखिका के चार सामान्य पन्क्तियां भी लिख देने पर, युवा, प्रौढ़  व बूढ़े सभी ब्लोगरों का टिप्पणी हेतु लाइन लगा देना और ४०-८० तक टिप्पणियों  के  तुरत-फुरत आजाने से प्रदर्शित होता है।
         परन्तु यह सब तो हर विधा के साथ होता है। अभी तो हिन्दी ब्लोगिन्ग शीघ्रता से बढता हुआ एक होनहार बालक है, टोडलर है । जब वर्तमान पीढी अधिक अनुभवी, युवा व प्रौढ होगी तो यह विधा भी अधिक युवा व प्रौढ होगी। बालक युवा होकर सुपुत्र होगा या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है; परन्तु आशा करनी चाहिये कि वह होनहार व सुपात्र होकर प्रगति-पथ पर बढे।
           ".. स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नितम ||"