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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

फिर उठी बात गीतों की --- सुषमा गुप्ता.----

                                 ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 

   -फिर उठी बात गीतों की --- सुषमा गुप्ता.----


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             -डा श्याम गुप्त के  -गीत संग्रह ---"तुम तुम और तुम "में लिखा गया प्राक्कथन ---

                

----------- काव्य में सदैव नवीनता व सत्य के आग्रही डा श्यामगुप्त द्वारा सृजित कृतियों में सर्वदा एक अपनी विशिष्टता होती है | कृति-विषय एक विशिष्ट तारतम्यता लिए हुए होते हैं एवं प्रत्येक बार एक नवीनता लिए हुए |
---------उनके कृति-विषय मूलतः लौकिक तथ्य से होते हुए आध्यात्मिक स्तर पर उठते हुए पारलौकिकता तक पहुँचते हैं| वे मूलतः प्रेम के कवि हैं, साहित्यकार हैं| प्रेम उनके लिए संसार है, जीवन है, स्वांस हैं, उच्छवास है, सामाजिकता है , ईश्वर है, उनका प्रेम-रथ लौकिकता से होते हुए दिव्यता, दर्शन व अध्यात्म तक प्रयाण करता है,
-------------यथा प्रथम कृति ---‘काव्यदूत----‘ बालमन की स्मृतियों से कैशोर्य, युवावस्था, गृहस्थ, प्रौढावस्था की जीवन भंगिमाओं की कविताओं-गीतों से होते हुए दर्शन, अध्यात्म, पारलौकिकता से मुक्ति, मोक्ष तक की ऊंचाई तक जाते है |
------काव्य की विभिन्न विधाओं में रचित महाकाव्य ---प्रेमकाव्य---- में प्रेम के सभी रूपों का सांगोपांग वर्णन करते हुए उनका काव्य, लोक से होकर जीवन, दर्शन, अध्यात्म से मोक्षदा एकादश तक प्रयाण करता हुआ वेदान्त के अनुसार प्रेम के मूल “ मा विदिष्वावहै” तक जाता है |
---सृष्टि-महाकाव्य---- तो दर्शन, आधुनिक विज्ञान, वैदिक ज्ञान-विज्ञान, जीवन मूल्य व आदर्शों की समन्वित गाथा ही है | ----शूर्पणखा काव्य-उपन्यास---- में खलनायिका को चारित्रिक बुराइयों से नारी चरित्र की मानसिक भावभूमि की ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है| -----उपन्यास इन्द्रधनुष में----- नायक-नायिका प्रेम व आदर्श एवं स्त्री-पुरुष मैत्री के आध्यात्मिक व दार्शनिकता एवं निष्कामता के उच्च स्तर तक पहुँचते हैं|
--------हम दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से रचित प्रथम कृति, ब्रजभाषा काव्य, ‘-----ब्रजबांसुरी----’ के १८ अध्याय, गीता के १८ अध्याय व ईशोपनिषद के १८ मन्त्रों से तादाम्य करते हैं|
----‘कुछ शायरी की बात होजाये’---- में भी दिल की बात से लेकर शब्द-ब्रह्म होते हुए ग़ज़ल व शायरी के भाव ‘वो कौन है’ व ‘नाद-अनाहत’ तक जाते हैं|
--------------------- नवीनता की बात करें तो सृष्टि-महाकाव्य में दुष्टजनों एवं तमाम अमूर्त भावों, अपरामाया, चिदाकाश, त्रिदेव, शास्त्र आदि की वन्दना करते हुए दिखाई देते हैं| प्रेमकाव्य में अध्यायों को सुमनांजलि एवं ब्रजबांसुरी में भाव-अरपन एवं उप-विषयों को सुमन आदि नए नाम से संबोधित करते हैं| शूर्पणखा खंडकाव्य को काव्य-उपन्यास का नवीन नाम दिया गया है |
-----काव्यजगत में बहुचर्चित, नकारात्मक व सकारात्मक दोनों रूपों में ही बहु-आलोचित अगीत-कविता को स्थिरता प्रदान हेतु आपने अगीत महाकाव्य, खंडकाव्य सृजन के साथ साथ ‘अगीत साहित्य दर्पण’ नाम से अगीत छंद-विधान का शास्त्रीय ग्रन्थ ही लिख डाला जो हिन्दी कविता में एक मील का पत्थर है |
------- ड़ा श्याम गुप्त द्वारा रचित प्रेम व श्रृंगार गीतों का प्रस्तुत संग्रह ----‘तुम तुम और तुम’---- इसी श्रृंखला की अगली कड़ी है | प्रस्तुत कृति में प्रेम व श्रृंगार के संयोग, वियोग भावों के साथ-साथ प्रेम, प्रेमी व प्रेमिका की विभिन्न मनोदशाएँ, स्मृतियां, भावों के संगम, अंतर्मन की संवेदनाओं का गीतों द्वारा सांगोपांग वर्णन किया गया है |
----- मानव वय की विविध अवस्थाओं के विभिन्न सोपानों बालमन, कैशोर्य, युवा व प्रौढ़ मन के, जीवन की विभिन्न परिस्थितियों, स्थितियों, घटनाओं, गार्हस्थ्य भावनाओं आदि के सभी रूमानी, रूहानी भाव, तात्विक प्रेमभाव, मनोभावों की सरस, सरल अभिव्यक्ति है|
-----वस्तुतः यह जीवन का काव्य है जिसमें प्रेम व श्रृंगार गीत होते हुए भी सदैव की भाँति लौकिकता के साथ अध्यात्म, दर्शन व जीवन तत्व-दर्शन की गहनता भी सर्वत्र बिखरी हुई है|
------------- जहां तक गीतों की बात है, आधुनिक युग में पारंपरिक गीतों पर प्रश्न चिन्ह लगाए जाते रहे हैं परन्तु प्रश्न उठाने वाले भूल जाते हैं कि प्रेम, श्रृंगार, भक्ति, पीड़ा आदि भाव मानव की मूलवृत्ति हैं
----प्रकृति में जब तक सौंदर्य है, नदियों में प्रवाह है, पक्षियों, पशु, बादलों, झरनों व जीवन-जगत में संवेदना का प्रवाह है, तब तक पारंपरिक गीतों का अस्तित्व रहेगा। भक्त कवियों ने आम जनता के भावों को वाणी दी।
-----यही कारण है कि कबीर रैदास, सूर, मीरा एवं तुलसी के भक्तिपरक गीत, बुल्लेशाह, बिहारी , रहीम के श्रृंगारपरक काव्य जिनमे प्रेम व आत्मिक श्रृंगार की झलक सर्वत्र विद्यमान है आज भी लोक जनमानस में समादृत हैं।

---------------------------भारतवर्ष में कजरी, होली, चैती, बिरहा आदि हिन्दी भाषी क्षेत्रों के प्रमुख प्रेम व श्रृंगार के लोकगीत हैं। सदियों से ये ग्रामगीत श्रुति परम्परा से एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को अवदान के रूप में मिलते गए हैं।
-----आज भी न तो इन गीतों के शब्दों एवं भावों में कोई विशेष परिवर्तन हुआ है और न ही इनकी गायन शैली में। ये गीत पारम्परिक धरोहर हैं जो भारतीय समाज व मानव-मन के कण्ठहार हैं।
-----कल भी ये गीत अपने इसी सहज रूप में भी बने रहेंगे। इनकी लोकप्रियता का एक महत्वपूर्ण कारण प्रेम अभिव्यक्ति के साथ साथ इनका गीत-तत्व भी रहा है।
--------------------- मेरे विचार में जहाँ तक प्रेम व श्रृंगार की बात है तो साहित्य मर्यादित श्रृंगार का पोषक होना चाहिए | श्रृंगार केवल मांसलता नहीं है अपितु हृदयाकाश की गहराइयों में उत्पन्न भावनाएं व विहरित सौन्दर्यमय अनुभूतियाँ हैं |
---- श्रृंगारिक रचना में नायिका द्वारा घरेलू वर्णन, लरिका, बिटिया, टूटी छान-छप्पर- मढैया आदि संवेदना का गीत तो हो सकता है परन्तु रसमयता व श्रृंगार नहीं | अत्यधिक खुलापन भी मर्यादाविहीन व असाहित्यिक प्रतीत होता है एवं श्रृंगार का आनंद भी तिरोहित ही रहता है |
-----श्रृंगार में शब्दावली, तथ्य, कथ्य इस प्रकार प्रस्तुत हों कि श्रृंगार का आनंद भी मिले एवं खुलापन भी न हो, न इतनी क्लिष्ट शब्दावली कि श्रृंगार का पता ही न चले | प्रस्तुत कृति में रचनाकार द्वारा इस तथ्य का यथासंभव सर्वत्र ध्यान रखने का प्रयास किया गया है |

----------------------- तकनीकी दुनिया, कम्प्यूटर, इंटरनेट, टेलीफोन, मोबाइल आदि के व्यवहार में आनेवाली शब्दावलियों के प्रयोग से गीत की रागात्मक कोमलता और संगीतात्मक तरलता की काफी क्षति हुई है |
----आज नयी कविता में ग्राम्य-जीवन, मजदूर, किसान, शोषण, दमन, बाजारवाद, भूमंडलीकरण, आर्थिक उदारीकरण, उपभोक्तावाद, सांप्रदायिकता-विरोध, आतंकवाद-विरोध, दलित चेतना, स्त्री-विमर्श, शासन विरोध, दिन-प्रतिदिन के सामायिक घटना-तत्वों-समाचारों के वर्णन, व्यक्तिगत दुखानुभूतियाँ जैसी तमाम समस्याओं की जटिल अनुभूतियों की अत्याधिक अभिव्यक्ति के कारण कविता से आज भावुक मन की अभिव्यक्ति या गाने गुनगुनाने की सौन्दर्यमय भावना की तरलता अंतर्धान होगई है जो पारंपरिक प्रेमगीतों, श्रृंगार-गीतों के रूप में मानव के मानसिक विश्रांति, सामाजिक श्रान्ति का उपाख्यान रूप थीं |
----------मेरा विश्वास है कि प्रस्तुत कृति इस शाश्वत गीत भावों की कमी को पूरा करने हेतु एक सक्षम प्रयास सिद्ध होगी |
                                                                                                              ---सुषमा गुप्ता