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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शनिवार, 4 मार्च 2017
नर-नारी द्वंद्व व संतुलन, समस्यायें व कठिनाइयाँ.
महिला दिवस --८ मार्च की पूर्व संध्या पर प्रस्तुत -----आलेख --१ . .----
****नर-नारी द्वंद्व व संतुलन, समस्यायें व कठिनाइयाँ.. ****
-------------समस्यायें व कठिनाइयाँ सर्वत्र एवं सदैव विद्यमान हैं, चाहे युद्ध हो, प्रेम हो, आतंरिक राजनीति या सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या व्यवसायिक द्वंद्व हों या व्यक्तिगत कठिनाइयां |
--------------वैदिक-पौराणिक युग में तात्कालीन सामजिक स्थितियों, ब्राह्मणों, ऋषि व मुनियों के तप बल एवं राजाओं के शक्ति बल एवं स्त्री-लोलुपता के मध्य स्त्रियों की दशा पर पौराणिक कथाओं (सुकन्या का च्यवन से मज़बूरी अथवा नारी सुकोमल भाव या मानवीय –सामाजिक कर्त्तव्य भाव में विवाह करना, नहुष का इन्द्राणी पर आसक्त होना, कच-देवयानी प्रकरण, ययाति-शर्मिष्ठा प्रकरण आदि ) में ......
------देवी सुकन्या विचार करती हैं कि नर-नारी के बीच सन्तुलन कैसे लाया जाए तो अनायास ही स्वतः कह उठती हैं कि
-----यह सृष्टि, वास्तव में पुरुष की रचना है। इसीलिए, रचयिता ने पुरुषों के साथ पक्षपात किया, उन्हें स्वत्व-हरण की प्रवृत्तियों से पूर्ण कर दिया। किन्तु पुरुषों की रचना यदि नारियाँ करने लगें, तो पुरुष की कठोरता जाती रहेगी और वह अधिक भावप्रणव एवं मृदुलता से युक्त हो जाएगा।
------------------- इस पर आयु, उर्वशी-पुरुरवा पुत्र, यह दावा करता है कि मैं वह पुरुष हूँ जिसका निर्माण नारियों ने किया है। { पुरुरवा स्वयं इला, (जो इल व इला नाम से पुरुष व स्त्री दोनों रूप था, का बुध से पुत्र था ) एल कहलाता था| अतः आयु स्वयं को नारियों द्वारा निर्मित कहता था ..}
-----आयु का कहना ठीक था, वह प्रसिद्ध वैदिक राजा हुआ, किन्तु युवक नागराजा सुश्रवा ने आयु को जीतकर उसे अपने अधीन कर लिया था।
----------------देवी सुकन्या सोचती हैं कि फिर वही बात ! पुरुष की रचना पुरुष करे तो वह त्रासक होता है और पुरुष की रचना नारी करे तो लड़ाई में वह हार जाता है।
------------------आज नारी के उत्थान के युग में हमें सोचना चाहिए कि "अति सर्वत्र वर्ज्ययेत" ....जोश व भावों के अतिरेक में बह कर हमें आज नारियों की अति-स्वाधीनता को अनर्गल निरंकुशता की और नहीं बढ़ने देना चाहिए |
---- चित्रपट, कला, साहित्य व सांस्कृतिक क्षेत्र की बहुत सी पाश्चात्य-मुखापेक्षी नारियों बढ़-चढ़ कर, अति-स्वाभिमानी, अतिरेकता, अतिरंजिता पूर्ण रवैये पर एवं तत्प्रभावित कुछ पुरुषों के रवैये पर भी समुचित विचार करना होगा |
---------------- अतिरंजिता पूर्ण स्वच्छंदता का दुष्परिणाम सामने है ...समाज में स्त्री-पुरुष स्वच्छंदता, वैचारिक शून्यता, अति-भौतिकता, द्वंद्व, अत्यधिक कमाने के लिए चूहा-दौड़, बढ़ती हुई अश्लीलता ...के परिणामी तत्व---अमर्यादाशील पुरुष, संतति, जो हम प्रतिदिन समाचारों में देखते रहते हैं...यौन अपराध, नहीं कम हुआ अपराधों का ग्राफ, आदि |
""क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी होगयी उसकी गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच, भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह, सखी, भगिनी, माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |""
--------------समुचित तथ्य वही है जो सनातन सामजिक व्यवस्था में वर्णित है, स्त्री-पुरुष एक रथ के दो पहियों के अनुसार संतति पालन करें व समाज को धारण करें .......
रिग्वेद के अन्तिम मन्त्र (१०-१९१-२/४) में क्या सुन्दर कथन है---
"" समानी व अकूतिःसमाना ह्रदयानि वः ।
समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामतिः ॥"""---
--------------- पुरुष की सहयोगी शक्ति-भगिनी, मित्र, पुत्री, सखी, पत्नी, माता के रूप में सत्य ही स्नेह, संवेदनाओं एवं पवित्र भावनाओं को सींचने में युक्त नारी, पुरुष व संतति के निर्माण व विकास की एवं समाज के सृजन, अभिवर्धन व श्रेष्ठ व्यक्तित्व निर्माण की धुरी है।
----- अतः आज की विषम स्थिति से उबरने क़ा एकमात्र उपाय यही है कि नारी अन्धानुकरण त्याग कर भोगवादी संस्कृति से अपने को मुक्त करे।
---------------- हम स्त्री विमर्श, पुरुष विमर्श, स्त्री या पुरुष प्रधान समाज़ नहीं, मानव प्रधान समाज़, मानव-मानव विमर्श की बात करें। समता, समानता नहीं है | अतः बराबरी की नहीं, युक्त-युक्त उपयुक्तता के आदर की बात हो तो बात बने।
****नर-नारी द्वंद्व व संतुलन, समस्यायें व कठिनाइयाँ.. ****
-------------समस्यायें व कठिनाइयाँ सर्वत्र एवं सदैव विद्यमान हैं, चाहे युद्ध हो, प्रेम हो, आतंरिक राजनीति या सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या व्यवसायिक द्वंद्व हों या व्यक्तिगत कठिनाइयां |
--------------वैदिक-पौराणिक युग में तात्कालीन सामजिक स्थितियों, ब्राह्मणों, ऋषि व मुनियों के तप बल एवं राजाओं के शक्ति बल एवं स्त्री-लोलुपता के मध्य स्त्रियों की दशा पर पौराणिक कथाओं (सुकन्या का च्यवन से मज़बूरी अथवा नारी सुकोमल भाव या मानवीय –सामाजिक कर्त्तव्य भाव में विवाह करना, नहुष का इन्द्राणी पर आसक्त होना, कच-देवयानी प्रकरण, ययाति-शर्मिष्ठा प्रकरण आदि ) में ......
------देवी सुकन्या विचार करती हैं कि नर-नारी के बीच सन्तुलन कैसे लाया जाए तो अनायास ही स्वतः कह उठती हैं कि
-----यह सृष्टि, वास्तव में पुरुष की रचना है। इसीलिए, रचयिता ने पुरुषों के साथ पक्षपात किया, उन्हें स्वत्व-हरण की प्रवृत्तियों से पूर्ण कर दिया। किन्तु पुरुषों की रचना यदि नारियाँ करने लगें, तो पुरुष की कठोरता जाती रहेगी और वह अधिक भावप्रणव एवं मृदुलता से युक्त हो जाएगा।
------------------- इस पर आयु, उर्वशी-पुरुरवा पुत्र, यह दावा करता है कि मैं वह पुरुष हूँ जिसका निर्माण नारियों ने किया है। { पुरुरवा स्वयं इला, (जो इल व इला नाम से पुरुष व स्त्री दोनों रूप था, का बुध से पुत्र था ) एल कहलाता था| अतः आयु स्वयं को नारियों द्वारा निर्मित कहता था ..}
-----आयु का कहना ठीक था, वह प्रसिद्ध वैदिक राजा हुआ, किन्तु युवक नागराजा सुश्रवा ने आयु को जीतकर उसे अपने अधीन कर लिया था।
----------------देवी सुकन्या सोचती हैं कि फिर वही बात ! पुरुष की रचना पुरुष करे तो वह त्रासक होता है और पुरुष की रचना नारी करे तो लड़ाई में वह हार जाता है।
------------------आज नारी के उत्थान के युग में हमें सोचना चाहिए कि "अति सर्वत्र वर्ज्ययेत" ....जोश व भावों के अतिरेक में बह कर हमें आज नारियों की अति-स्वाधीनता को अनर्गल निरंकुशता की और नहीं बढ़ने देना चाहिए |
---- चित्रपट, कला, साहित्य व सांस्कृतिक क्षेत्र की बहुत सी पाश्चात्य-मुखापेक्षी नारियों बढ़-चढ़ कर, अति-स्वाभिमानी, अतिरेकता, अतिरंजिता पूर्ण रवैये पर एवं तत्प्रभावित कुछ पुरुषों के रवैये पर भी समुचित विचार करना होगा |
---------------- अतिरंजिता पूर्ण स्वच्छंदता का दुष्परिणाम सामने है ...समाज में स्त्री-पुरुष स्वच्छंदता, वैचारिक शून्यता, अति-भौतिकता, द्वंद्व, अत्यधिक कमाने के लिए चूहा-दौड़, बढ़ती हुई अश्लीलता ...के परिणामी तत्व---अमर्यादाशील पुरुष, संतति, जो हम प्रतिदिन समाचारों में देखते रहते हैं...यौन अपराध, नहीं कम हुआ अपराधों का ग्राफ, आदि |
""क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी होगयी उसकी गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच, भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह, सखी, भगिनी, माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |""
--------------समुचित तथ्य वही है जो सनातन सामजिक व्यवस्था में वर्णित है, स्त्री-पुरुष एक रथ के दो पहियों के अनुसार संतति पालन करें व समाज को धारण करें .......
रिग्वेद के अन्तिम मन्त्र (१०-१९१-२/४) में क्या सुन्दर कथन है---
"" समानी व अकूतिःसमाना ह्रदयानि वः ।
समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामतिः ॥"""---
--------------- पुरुष की सहयोगी शक्ति-भगिनी, मित्र, पुत्री, सखी, पत्नी, माता के रूप में सत्य ही स्नेह, संवेदनाओं एवं पवित्र भावनाओं को सींचने में युक्त नारी, पुरुष व संतति के निर्माण व विकास की एवं समाज के सृजन, अभिवर्धन व श्रेष्ठ व्यक्तित्व निर्माण की धुरी है।
----- अतः आज की विषम स्थिति से उबरने क़ा एकमात्र उपाय यही है कि नारी अन्धानुकरण त्याग कर भोगवादी संस्कृति से अपने को मुक्त करे।
---------------- हम स्त्री विमर्श, पुरुष विमर्श, स्त्री या पुरुष प्रधान समाज़ नहीं, मानव प्रधान समाज़, मानव-मानव विमर्श की बात करें। समता, समानता नहीं है | अतः बराबरी की नहीं, युक्त-युक्त उपयुक्तता के आदर की बात हो तो बात बने।
४६ वें साहित्यकार दिवस, का आयोजन----- डा श्याम गुप्त
४६ वें साहित्यकार दिवस, का आयोजन----- डा श्याम गुप्त
४६ वें साहित्यकार दिवस, का आयोजन-----
-----साहित्यामूर्ती, साहित्यभूषण एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा रंगनाथ मिश्र सत्य के जन्म की ७६वीं वर्षगाँठ एवं ४६ वें साहित्यकार दिवस, १ मार्च, २०१७ --सिटी कोंवेंट स्कूल राजाजीपुरम के हाल में डा रसाल स्मृति संस्थान एवं अ.भा. अगीत परिषद् द्वारा आयोजित किया गया, इस अवसर पर देश के साहित्यकारों का सम्मान किया गया एवं पुस्तकों का लोकार्पण भी संपन्न हुआ |
आयोजन के अध्यक्ष पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री महेशचंद्र द्विवेदी , मुख्य अतिथि प्रोफ मोह. मुजम्मिल उपकुलपति आगरा वि.विद्यालय , विशिष्ट अतिथि डा उषा सिन्हा पूर्व भाषाविद हिन्दी विभाग , ल.वि वि तथा योजना आयोग के पूर्व सदस्य डा सुल्तान शाकिर हाशमी एवं श्री रामचंद्र शुक्ल पूर्व जज थे | संचालन नव सृजन संस्था के अध्यक्ष डा योगेश गुप्त ने किया , वाणी वन्दना श्री वाहिद अली वाहिद एवं कुमार तरल द्वारा की गयी |
दूसरे सत्र में कवि सम्मलेन का आयोजन भी हुआ |
चित्र में ----
१.श्रीमती सुषमा गुप्ता द्वारा डा उषा सिन्हा को माल्यार्पण
२.डा सत्य को साहित्य मार्तंड सम्मान
३.डा श्याम गुप्त को डा रसाल स्मृति पुरस्कार
4. मुरली मनोहर कपूर की कृति मेरी रुबाइयां का लोकार्पण
५..नव सृजन संस्थाके महामंत्री श्री देवेश द्विवेदी देवेश को श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता सम्मान -२०१७ से सम्मानित करते हुए डा श्याम गुप्त व सुषमा गुप्ता
६. सम्मानित साहित्यकार
७..श्रीमती सुषमा गुप्ता को सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान
८.डॉ योगेश गुप्त को रवीन्द्र शुक्ल सम्मान
९. नवोदित कवयित्री प्रेरणा श्रीवास्तव की कृति-मेरी प्रिय कवितायें- का लोकार्पण
२.डा सत्य को साहित्य मार्तंड सम्मान
३.डा श्याम गुप्त को डा रसाल स्मृति पुरस्कार
4. मुरली मनोहर कपूर की कृति मेरी रुबाइयां का लोकार्पण
५..नव सृजन संस्थाके महामंत्री श्री देवेश द्विवेदी देवेश को श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता सम्मान -२०१७ से सम्मानित करते हुए डा श्याम गुप्त व सुषमा गुप्ता
६. सम्मानित साहित्यकार
७..श्रीमती सुषमा गुप्ता को सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान
८.डॉ योगेश गुप्त को रवीन्द्र शुक्ल सम्मान
९. नवोदित कवयित्री प्रेरणा श्रीवास्तव की कृति-मेरी प्रिय कवितायें- का लोकार्पण
गुरुवासरीयव गोष्ठी दि.२-३-१७ को डा श्याम गुप्त के आवास पर ----डा श्याम गुप्त
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
गुरुवासरीय गोष्ठी दि.२-३-१७ गुरूवार
प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीयव गोष्ठी दि.२-३-१७ को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना , लखनऊ पर सायं ३ बजे से ६ बजे शाम को आयोजित हुई |
गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, डा श्याम गुप्त, श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर , श्रे बिनोद कुमार सिन्हा व सुषमा गुप्ता श्री मनीष श्रीवास्तव, पूजा गुप्ता ने भाग लिया | गोष्ठी का प्रारंभ डा श्याम गुप्त की वाणी वन्दना---
माँ हमारी चेतना में नवल सुर लय धुन सजादो ,
भाव की ऊंची शिखाएं, मन ह्रदय में जगामगा दो |.....से प्रारंभ हुआ| श्रीमती सुषमा गुप्ता , अनिल किशोर निडर एवं बिनोद कुमार सिन्हा ने भी वाणी वन्दना की ----
चर्चा सत्र में काव्य गोष्ठी के आकार –प्रकार पर संक्षिप्त चर्चा में डा श्याम गुप्त व अनिल किशोर जी का कथन था कि गोष्ठी का आकार अधिक बड़ा नही होना चाहिये अन्यथा उसमें काव्य चर्चा व गुणदोष विवेचन जैसा महत्त्व का विषय नहीं हो पाता, बस कविता पढ़ने के कर्म की इतिश्री ही हो पाती है |
श्री बिनोद कुमार सिन्हा की सद्य –प्रकाशित काव्य संग्रह ‘इन्द्रधनुष-एक प्रयास’ की रचनाओं एवं साहित्यकारों के दायित्व पर संक्षिप्त चर्चा की गयी तथा इस कृति के लोकार्पण की भूमि-रेखा पर विचार किया गया |
श्री बिनोद कुमार सिन्हा को सम्मान -पत्र, प्रतीक चिन्ह व व पुष्प गुच्छ देकर श्री कुमार विजय सम्मान प्रदान किया गया |
कविता सत्र में ----- श्री अनिल किशोर निडर ने प्रस्तुत किया—
हैं धन्य धन्य भारतवासी, है यहाँ बनी नगरी काशी |
काशी में मिलता परम धाम,भोले का मंदिर है ललाम ||
श्री बिनोद कुमार सिन्हा ने दर्द और बेदर्द का समायोजन करते हुए गीताज्ञान, गोविन्द और दर्द का रिश्ता गुनगुनाया ---
लोग कहते मुझे बेदर्द हूँ,/ केवल दर्द हूँ बेदर्द नहीं ;
दो दिलों को मिलाता, / हमदर्द हूँ, दिले दर्द नहीं |
दर पर मेरे जो आता / याद करता गोविन्द को ;
होता ज्ञान सहज में /दुख भोगता शरीर, आत्मा नहीं |
देता हूँ ज्ञान गीता, दर्द नहीं / बिनोद कहते दर्द हूँ बेदर्द नहीं ||
डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने राम-गिलहरी, रत्ना-तुलसी, राधा-कृष्ण के प्रेम को रंजित करते हुए सुनाया—
दुष्टों के दलन हेतु, जीवन शमन हेतु,
राधे राधे, श्याम श्याम, राधे श्याम कहिये |
श्रीमती सुषमा गुप्ता ने ---कहा---
मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं
मन का दर्पण है ये , मुस्कुराते रहो |..
.तथा—
होली खेली लाल ने, उड़े अबीर गुलाल,
सुर मुनि ब्रहमा विष्णु सब, तीनों लोक निहाल |
डा श्याम गुप्त ने ---सुनाया ---
हे मन लेचल सत की ओर,
लोभ मोह लालच न जहां हो, लिपट सके ना माया |
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर, प्रेम की शीतल छाया || ...
तथा होली के प्रसंग में—
एरी सखी जियरा के प्रीति रंग ढारि देउ
श्याम रंग न्यारो चढ़े , सांवरो नियारो है |
गोष्ठी के अंत में गुरुवारीय गोष्ठी के सदस्य वयोवृद्ध वरिष्ठ कवि स्व.श्री कौशल किशोर श्रीवास्तव को स्मरण किया गया | डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने स्मरण सुनते हुए बताया के श्री कौशल जी चुपचाप मुस्कुराया करते थे तथा कभी कभी किसी विशेष बात पर अड़ भी जाया करते थे| डा श्यामगुप्त ने बताया कि वे अत्यंत स्वाभिमानी एवं परम शिव भक्त थे और गोष्ठी में सदैव एक शिवजी से सम्बंधित रचना एवं एक सम-सामयिक रचना प्रस्तुत करते थे | श्री कौशल किशोर एवं गुजराती नाटकाकार श्री तारक मेहता के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत साहित्यकारों को श्रृद्धांजलि दी गयी |
-श्री सिन्हा का सम्मान करते हुए डा श्याम गुप्त, डा रंगनाथ मिश्र सत्य , व अनिल किशोर शुक्ल व सुषमा गुप्ता
प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीयव गोष्ठी दि.२-३-१७ को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना , लखनऊ पर सायं ३ बजे से ६ बजे शाम को आयोजित हुई |
गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, डा श्याम गुप्त, श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर , श्रे बिनोद कुमार सिन्हा व सुषमा गुप्ता श्री मनीष श्रीवास्तव, पूजा गुप्ता ने भाग लिया | गोष्ठी का प्रारंभ डा श्याम गुप्त की वाणी वन्दना---
माँ हमारी चेतना में नवल सुर लय धुन सजादो ,
भाव की ऊंची शिखाएं, मन ह्रदय में जगामगा दो |.....से प्रारंभ हुआ| श्रीमती सुषमा गुप्ता , अनिल किशोर निडर एवं बिनोद कुमार सिन्हा ने भी वाणी वन्दना की ----
चर्चा सत्र में काव्य गोष्ठी के आकार –प्रकार पर संक्षिप्त चर्चा में डा श्याम गुप्त व अनिल किशोर जी का कथन था कि गोष्ठी का आकार अधिक बड़ा नही होना चाहिये अन्यथा उसमें काव्य चर्चा व गुणदोष विवेचन जैसा महत्त्व का विषय नहीं हो पाता, बस कविता पढ़ने के कर्म की इतिश्री ही हो पाती है |
श्री बिनोद कुमार सिन्हा की सद्य –प्रकाशित काव्य संग्रह ‘इन्द्रधनुष-एक प्रयास’ की रचनाओं एवं साहित्यकारों के दायित्व पर संक्षिप्त चर्चा की गयी तथा इस कृति के लोकार्पण की भूमि-रेखा पर विचार किया गया |
श्री बिनोद कुमार सिन्हा को सम्मान -पत्र, प्रतीक चिन्ह व व पुष्प गुच्छ देकर श्री कुमार विजय सम्मान प्रदान किया गया |
कविता सत्र में ----- श्री अनिल किशोर निडर ने प्रस्तुत किया—
हैं धन्य धन्य भारतवासी, है यहाँ बनी नगरी काशी |
काशी में मिलता परम धाम,भोले का मंदिर है ललाम ||
श्री बिनोद कुमार सिन्हा ने दर्द और बेदर्द का समायोजन करते हुए गीताज्ञान, गोविन्द और दर्द का रिश्ता गुनगुनाया ---
लोग कहते मुझे बेदर्द हूँ,/ केवल दर्द हूँ बेदर्द नहीं ;
दो दिलों को मिलाता, / हमदर्द हूँ, दिले दर्द नहीं |
दर पर मेरे जो आता / याद करता गोविन्द को ;
होता ज्ञान सहज में /दुख भोगता शरीर, आत्मा नहीं |
देता हूँ ज्ञान गीता, दर्द नहीं / बिनोद कहते दर्द हूँ बेदर्द नहीं ||
डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने राम-गिलहरी, रत्ना-तुलसी, राधा-कृष्ण के प्रेम को रंजित करते हुए सुनाया—
दुष्टों के दलन हेतु, जीवन शमन हेतु,
राधे राधे, श्याम श्याम, राधे श्याम कहिये |
श्रीमती सुषमा गुप्ता ने ---कहा---
मुस्कराहट से मीठा तो कुछ भी नहीं
मन का दर्पण है ये , मुस्कुराते रहो |..
.तथा—
होली खेली लाल ने, उड़े अबीर गुलाल,
सुर मुनि ब्रहमा विष्णु सब, तीनों लोक निहाल |
डा श्याम गुप्त ने ---सुनाया ---
हे मन लेचल सत की ओर,
लोभ मोह लालच न जहां हो, लिपट सके ना माया |
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर, प्रेम की शीतल छाया || ...
तथा होली के प्रसंग में—
एरी सखी जियरा के प्रीति रंग ढारि देउ
श्याम रंग न्यारो चढ़े , सांवरो नियारो है |
गोष्ठी के अंत में गुरुवारीय गोष्ठी के सदस्य वयोवृद्ध वरिष्ठ कवि स्व.श्री कौशल किशोर श्रीवास्तव को स्मरण किया गया | डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने स्मरण सुनते हुए बताया के श्री कौशल जी चुपचाप मुस्कुराया करते थे तथा कभी कभी किसी विशेष बात पर अड़ भी जाया करते थे| डा श्यामगुप्त ने बताया कि वे अत्यंत स्वाभिमानी एवं परम शिव भक्त थे और गोष्ठी में सदैव एक शिवजी से सम्बंधित रचना एवं एक सम-सामयिक रचना प्रस्तुत करते थे | श्री कौशल किशोर एवं गुजराती नाटकाकार श्री तारक मेहता के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत साहित्यकारों को श्रृद्धांजलि दी गयी |
-श्री सिन्हा का सम्मान करते हुए डा श्याम गुप्त, डा रंगनाथ मिश्र सत्य , व अनिल किशोर शुक्ल व सुषमा गुप्ता
स्त्रियों के वस्त्र व पुरुष की सोच-----डा श्याम गुप्त
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
प्रायः यह कहा जाता है कि कपडे पहनने की बात लोग स्त्रियों पर छोड़दें, हमारी इच्छा , पुरुष अपनी सोच बदलें ----परन्तु प्रत्येक कार्य का एक तार्किक कारण होता है न---- निम्न चित्र देखें जहां तीन पुरुष सम्पूर्ण कपडे पहने हुए हैं तो उपस्थित महिला अध् नंगे वस्त्रों में क्यों है --- क्या किसी को इसमें कोई तर्क या यथोचित उत्तर नज़र आता है |
स्त्रियों के वस्त्र व पुरुष की सोच-----डा श्याम गुप्त
प्रायः यह कहा जाता है कि कपडे पहनने की बात लोग स्त्रियों पर छोड़दें, हमारी इच्छा , पुरुष अपनी सोच बदलें ----परन्तु प्रत्येक कार्य का एक तार्किक कारण होता है न---- निम्न चित्र देखें जहां तीन पुरुष सम्पूर्ण कपडे पहने हुए हैं तो उपस्थित महिला अध् नंगे वस्त्रों में क्यों है --- क्या किसी को इसमें कोई तर्क या यथोचित उत्तर नज़र आता है |
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