....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
------वह
आकृति अपनी गुफा में से अपने फल आदि उठाकर आगंतुक की गुफा में साथ
रहने चली आई | यह मैत्री भाव था,
साहचर्य --निश्चय ही संरक्षण-सुरक्षा भाव था..पर
अधीनता नहीं ....बिना अनिवार्यता..बिना किसी बंधन के.....| इस प्रकार
प्रथम बार मानव जीवन में सहजीवन की नींव पडी | साथ साथ रहना...फल जुटाना ..कार्य करना..स्वरक्षण...स्वजीवन रक्षा...अन्य प्राणियों की भांति | चाहे कोई भी फल या खाना जुटाए...एक बाहर जाए या दोनों ...पर मिल बाँट कर खाना व रहने की निश्चित
प्रक्रिया
-सहजीविता - ने जीवन की कुछ चिंताओं को -खतरे की आशंका व खाना जुटाने की चिंता -अवश्य ही कुछ कम किया | और सिर्फ खाना जुटाने की अपेक्षा कुछ और देखने समझने जानने का समय मिलने
लगा
--------फिर एक दिन उन्होंने ज्ञान का फल चखा ....स्त्री-पुरुष का भेद जाना ;...( वास्तव में यह फल खाने-खिलाने व स्त्री द्वारा पुरुष को भटकाने -स्त्री को शैतान की कृति मानने की कथा -मुस्लिम व ईसाई जगत में ही प्रचलित है ---हिन्दू जगत --भारतीय कथ्यों में यह कथा नहीं है ..अपितु आदि एवं साथ साथ उत्पन्न -स्त्री-पुरुष --मनु व श्रृद्धा हैं जो साथ साथ मानवता व श्रद्धात्मकता भाव से साथ साथ रहते हैं ....हाँ जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में इडा ( बुद्धि ) नामक चरित्र की स्थापना की है जिसके कारण मनु ( मानव ) श्रृद्धा को भूल जाते हैं ...कष्ट उठाते हैं ..और पुनः स्मरण पर वे दोनों का समन्वय करते हैं |) ; वे पत्तियों से अपना शरीर ढंकने लगे, बृक्षों पर आवास बनने की प्रक्रिया हुई, अपने जैसे अन्य मानवों की खोज व सहजीवन के बढ़ने से अन्य साथियों का साहचर्य..सहजीवन..के कारण सामूहिकता का विकास हुआ...नारी
स्वच्छंदथी...
.स्त्री-पुरुष सम्बन्ध बंधन हीन व उन्मुक्त थे |
एक प्रकार से आजकल के
'लिव इन रिलेशन' की भांति
|
स्त्री-पुरुष सम्बन्ध विकास से
संतति व मानव समाज केविकास के साथ ही
संतति सुरक्षा का प्रश्न खड़े हुए, जो
मानवता का सबसे बड़ा मूल प्रश्न बना, क्योंकि प्रायः नर-नारी दोनों ही
भोजन
की खोज में दूर दूर चले जाते थे व बच्चे जानवरों के बच्चों की भांति पीछे असुरक्षित होजाते थे ...| समाज बढ़ने से
द्वंद्व भी बढ़ने लगे | अतः शत्रु से संतति रक्षा के लिए किसी को आवास स्थान पर रहना आवश्यक समझा जाने लगा, इस प्रकार प्रथम बार
कार्य विभाजन, श्रम विभाजन (Division of labour) की आवश्यकता पडी |
--------क्योंकि
नारी शारीरिक रूप से चपल, स्फूर्त, प्रत्युत्पन्न मति, तात्कालिक उपायों में पुरुष से अधिक सक्षम, तीक्ष्ण बुद्धि वाली, दूरदर्शी होने के साथ साथ, संतति की विभिन्न आवश्यकताओं व प्रेम भावना की पूर्ति हित सक्षम होने के कारण --उसने स्वेच्छा से निवास-स्थान पर असहाय संतान के साथ रहना स्वीकार किया, और
स्त्री प्रबंधन समाज की स्थापना हुई | जो बाद में
स्त्री -सत्तात्मक समाज भी कहलाया | ----चित्र--साभार .....
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क्रमश : भाग तीन..स्त्री-सत्तात्मक समाज.....