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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 30 मई 2013

श्याम स्मृति- ....यदि पति माना हैं तो ...

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...




             यदि पति माना है तो पति-सेवा धर्म निभाना पत्नी का कर्तव्य है चाहे वह लूला हो, लंगडा हो, अंधा-कोडी हो | जैसा अनुसूया सीता से कहती हैं | शैव्या के कोढी पति अंधे च्यवन ऋषि की पत्नी राजा शर्याति की राजकुमारी सुकन्या की पतिसेवा की कथाएं प्रसिद्द हैं | सीता भी राम को जंगल में छोड़कर नहीं भागी | परन्तु गंगा, उर्वशी जैसी तमाम बुद्धिमती स्त्रियों ने विवाह संस्था को नहीं माना, किसी को पति नहीं माना | वैदिक काल में सरस्वती ने भी नहीं |
          इसीलिये तो शादी में गुण मिलाये जाते हैं , जन्म पत्री देखी जाती है सारा परिवार, कुटुम, खानदान सम्मिलित होता है | तब किसी को पति स्वीकारा जाता है | आजकल लड़की भी देखती है बात करती है |
          पुरुष ब्रह्म है नारी प्रकृति, वह शक्ति है ब्रह्म की | ब्रह्म उसके द्वारा ही कार्य करता है परन्तु फिर भी प्रकृति स्वतंत्र नहीं है, ब्रह्म की इच्छा से ही कार्य करती है | अतः नारी इच्छानुसार ही चले वही उचित रहता है | यदि पति माना है तो निभाना ही चाहिए चाहे कैसा भी हो|  इसीलिये तो पति की उम्र अधिक रखी गयी है ताकि अनुभव-ज्ञान के आधार पर नारी आदर करे पुरुष का और अनुभवी पुरुष सदा मान रखे अपने साथी का, बड़ों द्वारा छोटों के समादर करने वाले भावानुशासन के अनुसार |  

 

जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा ...लघु कथा,,,,डा श्याम गुप्त....

                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



              गुरुवासरीय काव्य गोष्ठी में वर्मा जी ने सुन्दर कविता पाठ के अनन्तर कवितांश...  “ नयनों में अश्रु कलश छलके” पर डा शर्मा ने मध्य में टोक कर कहा ,’नयनों में... नहीं, ‘नयनों के अश्रु-कलश .’ कहिये|
             क्यों, क्या अर्थ है आपका ? वर्माजी पूछने लगे, अब ज्यादा बाल की खाल न खींचिए |
           ‘यह तथ्यात्मक व कथ्यात्मक त्रुटि है |’ डा शर्मा बोले, ‘अश्रु कलश नयनों में कैसे छलकेंगे...अश्रु नयनों में या नयनों से छलकते हैं तो अश्रु-कलश स्वयं नयन हुए या नयन के अन्दर ...तो नयनों के छलकेंगे या नयनों से |’
            ‘आप सदैव छींटाकशी करते ही रहते हैं | आपके कमेन्ट भी तीखे होते हैं| आप छिद्रान्वेषी प्रवृत्ति के हैं हर बात में छिद्र खोजते हैं और दूसरों के छिद्र उजागर करते रहते हैं | यह अवगुण है|’ लाल साहब बोले, ‘ तुलसी बावा कह गए हैं ..
                 ’ जो सहि  दुःख पर छिद्र दुरावा ,
                  वन्दनीय सोई जग यशु पावा |

इस प्रकार आप न वन्दनीय होते हैं न वन्दनीय होने के यश का आनंद उठा पाते हैं, अधिकाँश लोग आपसे दूर हो जाते हैं|
            ‘और बीच में टोकते भी हैं |’ चौहान जी बोले  |
            ‘ हाँ, बाद में चुपचाप अकेले में बता दिया करिए, सबके सामने नहीं |’ वर्मा जी कहने लगे |
              नहीं ...डा शर्मा हंसकर कहने लगे, ‘कविता यदि गोष्ठी में होरही है या इंटरनेट पर लिखी जा रही है तो समष्टि के लिए है | इसमें व्यक्तिगत क्या ? फिर सत्य कथन में छुपाव व दुराव कैसा, कोई व्यक्तिगत बात तो है नहीं |
               तो क्या महाकवि तुलसीदास जी यूंही कह गए हैं | लाल साहब ने प्रश्न उठाया|
               नहीं....शर्माजी बोले, ‘ तुलसी बावा तो उचित ही कह गए हैं, शंका का प्रश्न ही नहीं, पर प्रश्न उठता है कि ‘छिद्र’ किसे कहा जाय | किसी की नैसर्गिक, प्राकृतिक, जन्म आदि से कमी दोष या विकलांगता, अपंगता, निर्धनता, सामाजिक स्थित आदि को उजागर करना, प्रचार करना आदि, चाहे पुरस्कार के रूप में ही क्यों न हो ... छिद्र व छिद्र को उजागर करना है क्योंकि वे अपूरणीय हैं |  अष्टावक्र इसलिए प्रशंसनीय व प्रसिद्द नहीं कि वे विकलांग थे, निरीह या सहायता योग्य थे अपितु अपने महाज्ञान के हेतु से | परन्तु अनाचरणगत कमियाँ, ज्ञान व जानकारी की त्रुटियाँ छिद्र नहीं, उन्हें तो बताना व उजागर करना ही चाहिए, विज्ञजनों का यह कर्तव्य है |’
              ‘और वर्मा जी !’ डा शर्मा वर्मा जी से उन्मुख होकर कहने लगे,’ केवल आपको चुपचाप बताने से सिर्फ आपका ही लाभ होगा परन्तु अन्यान्य कवियों को एवं समष्टि को लाभपूर्ण व सही सन्देश कैसे जायगा, जो साहित्य का उद्देश्य है | फिर उस तथ्य पर वाद-विवाद कैसे होगा ताकि वास्तव में सही क्या है यह निर्धारित हो अन्य विद्वानों के परामर्श व विचार से जो गोष्ठियों का उद्देश्य है |’
               ‘बात तो सही है’,  रामदेव जी बोले, ‘इसीलिये तो  पुरस्कार या सम्मान  बस उसी व्यक्ति को बुलाकर चुपचाप नहीं देदिया जाता, समारोह का आयोजन होता है ? ताकि समस्त समाज का लाभ हो क्योंकि इससे लोक प्रोत्साहित होता है |’
               ‘सच कहा रामदेव जी’, डा शर्मा कहने लगे, ’वैसे भी हाँ जी...हां जी कहने वाले, हमें क्या अंदाज़ वाले, कौन वला मोल ले सोच वाले.. तो अधिक होते हें..छिद्रान्वेषी कम, क्योंकि उसके लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है|
                ‘पर इस प्रकार लोग आपको पसंद नहीं करते व दूर भागते हैं |’ लाल जी बोले
                 तो मुझे क्या, मैं तो सही बात कहने का प्रयत्न करता हूँ...सांच को आंच कहाँ .....
                                   ‘.कबिरा खडा बजार में सबकी मांगे खैर,
                                     ना कहू से दोस्ती ना काहू से बैर | ‘

कबीर और निराला को क्या क्या नहीं कहा गया, पर आज कहने वाले कहाँ हैं और कबीर, निराला कहाँ हैं |
                     परन्तु ‘सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यमप्रियम...’ भी तो कहा गया है, श्यामसुन्दर जी ने बात आगे बढाते हुए कहा |
                      सही कहा, डा शर्मा बोले, पर क्या मैंने कुछ अप्रिय कहा ? वह तो जो सत्य सुनना ही नहीं चाहता, आलोचना सुनना ही नहीं चाहता उसे सत्य भी अप्रिय लगता है .......
                                               ‘सोना कूड़े में पडा, लेते श्याम ' उठाय,
                                                सत्य बचन ले लीजिये, चाहे शत्रु सुनाय | 

                     सही है पर यह भी तो कथन है कि, ‘सीख ताहि को दीजिये जाको सीख सुहाय..’   रामदेव जी ने कहा |
                     सत्य बचन, श्रीमान जी! डा शर्मा हंसकर बोले, ‘पर यहाँ कोई बानरा थोड़े ही हैं | सब क्रान्तिदर्शी , कविर्मनीषी, स्वयंभू, परिभू है उन्हें तो समझना चाहिए ....इसीलिये तो गोष्ठी होती है |