....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
प्रायः यह कहा जाता है कि वस्तु, व्यक्ति व तथ्य के गुणों को देखना चाहिए, अवगुणों पर ध्यान नहीं देना चाहिए | इसे पोजिटिव थिंकिंग( सकारात्मक सोच ) भी कहा जाता है |
वस्तुतः प्रत्येक तथ्य को प्रथमत: नकारात्मक पहलू से जानना चाहिए | तथाकथित सिर्फ सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति वास्तव में जीवन के बुरे आयामों से डरते हैं अतः वे नकारात्मक तथ्य को सोचना- जानना ही नहीं चाहते | वस्तुओं के व तथ्यों के सकारात्मक पक्ष सदैव ही खुले रूप में होते हैं एवं वे शीघ्र ध्यानाकर्षक भी होते हैं विशेषतः इस विज्ञापनों की आकर्षक व भ्रामक दुनिया में |
क्योंकि यह मानव-मन जो है वह वायु तत्व से निर्मित है और स्वभावतः अत्यंत ही द्रवित-भाव तत्व है , शीघ्र ही सबसे आसान राहों पर दौड़ पड़ता है | अतः सिर्फ सकारात्मक पक्ष ही देखने से त्रुटियों की अधिक संभावनाएं होती हैं| अतः तथ्यों के नकारात्मक पक्षों को पहले देखना आवश्यक व महत्वपूर्ण है| जीवन व्यवहार के उदाहरण स्वरुप यह देखें कि जब कभी भी हम अपना कम्प्युटर पर किसी फ़ाइल को क्लिक करते हैं तो बहुधा सुरक्षित या असुरक्षित एवं अनचाहे करप्ट सन्देश का एक सावधानी का सन्देश मिलता है | सावधानी अर्थात नकारात्मक पहलू पर गौर ...अतः निश्चय ही सकारात्मक सोच वाले विचारकों का 'पानी से आधा भरा गिलास' बहु-प्रचारित वाला मुहावरे के विपरीत किसी भी तथ्य को स्वीकार करने से पहले सभी को यह सोचना चाहिए कि गिलास आधा खाली क्यों है ?
अतः मेरे विचार में गुणों को देखकर, सुनकर, जानकर ..उन पर मुग्ध होने से पहले उसके दोषों पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालना अत्यावश्यक है कि वह कहीं 'सुवर्ण से भरा हुआ कलश' तो नहीं है | यही तथ्य सकारात्मक सोच --नकारात्मक सोच के लिए सत्य है | सोच सकारात्मक नहीं गुणात्मक होनी चाहिए, अर्थात नकारात्मकता से अभिरंजित सकारात्मक | क्योंकि .......".सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय |"
प्रायः यह कहा जाता है कि वस्तु, व्यक्ति व तथ्य के गुणों को देखना चाहिए, अवगुणों पर ध्यान नहीं देना चाहिए | इसे पोजिटिव थिंकिंग( सकारात्मक सोच ) भी कहा जाता है |
वस्तुतः प्रत्येक तथ्य को प्रथमत: नकारात्मक पहलू से जानना चाहिए | तथाकथित सिर्फ सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति वास्तव में जीवन के बुरे आयामों से डरते हैं अतः वे नकारात्मक तथ्य को सोचना- जानना ही नहीं चाहते | वस्तुओं के व तथ्यों के सकारात्मक पक्ष सदैव ही खुले रूप में होते हैं एवं वे शीघ्र ध्यानाकर्षक भी होते हैं विशेषतः इस विज्ञापनों की आकर्षक व भ्रामक दुनिया में |
क्योंकि यह मानव-मन जो है वह वायु तत्व से निर्मित है और स्वभावतः अत्यंत ही द्रवित-भाव तत्व है , शीघ्र ही सबसे आसान राहों पर दौड़ पड़ता है | अतः सिर्फ सकारात्मक पक्ष ही देखने से त्रुटियों की अधिक संभावनाएं होती हैं| अतः तथ्यों के नकारात्मक पक्षों को पहले देखना आवश्यक व महत्वपूर्ण है| जीवन व्यवहार के उदाहरण स्वरुप यह देखें कि जब कभी भी हम अपना कम्प्युटर पर किसी फ़ाइल को क्लिक करते हैं तो बहुधा सुरक्षित या असुरक्षित एवं अनचाहे करप्ट सन्देश का एक सावधानी का सन्देश मिलता है | सावधानी अर्थात नकारात्मक पहलू पर गौर ...अतः निश्चय ही सकारात्मक सोच वाले विचारकों का 'पानी से आधा भरा गिलास' बहु-प्रचारित वाला मुहावरे के विपरीत किसी भी तथ्य को स्वीकार करने से पहले सभी को यह सोचना चाहिए कि गिलास आधा खाली क्यों है ?
अतः मेरे विचार में गुणों को देखकर, सुनकर, जानकर ..उन पर मुग्ध होने से पहले उसके दोषों पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालना अत्यावश्यक है कि वह कहीं 'सुवर्ण से भरा हुआ कलश' तो नहीं है | यही तथ्य सकारात्मक सोच --नकारात्मक सोच के लिए सत्य है | सोच सकारात्मक नहीं गुणात्मक होनी चाहिए, अर्थात नकारात्मकता से अभिरंजित सकारात्मक | क्योंकि .......".सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय |"
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