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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 19 अगस्त 2012

यह प्रदर्शन है या अलविदा की नमाज़ या नमाज़ को अलविदा ....ड़ा श्याम गुप्त ..

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

यह  प्रदर्शन है या अलविदा की नमाज़  या नमाज़ को अलविदा ....

           क्या यह प्रदर्शन है......दुनिया भर में प्रदर्शन होते हैं परन्तु  डंडे व हथियारों से युक्त होकर कहीं नहीं  होते,  क्या ये नमाज़ी हैं ? .....नमाजियों पर हथियार कहाँ से आये  व क्यों आये ? क्या यह पूर्व-प्लांड था | क्यों आज भी संयुक्त नमाज़ के समय सदा सामान्य-जन में खौफ रहता है एवं दंगे होते  हैं |
                    धर्म, उपासना व प्रार्थना मनुष्य का व्यक्तिगत मामला है ...  वस्तुतः सामूहिक उपासना धर्म का भाग  नहीं  है, इनका कोई तात्विक अर्थ भी नहीं है  और यह बंद होजानी चाहिए |  धार्मिक प्रवचन जो खुले समाज एवं खुले स्थलों पर  होते हैं तथा  इस प्रकार की सामूहिक उपासना में अंतर है | इस प्रकार की सामूहिक उपासना अन्य धर्मों में नहीं देखी  जाती |
                    ये घटनाएँ निश्चय ही  सामाजिक सौहार्द को नष्ट करती हैं, नगर,देश-राष्ट्र को बदनाम करती हैं, साथ ही मुस्लिम समाज को भी | आखिर क्यों पश्चिमी देशों  द्वारा एवं अन्य विश्व में भी  आतंक का ठीकरा मुस्लिमों के सर ही फोड़ा जाता है| ऐसी घटनाएँ ही इस सबके लिए जिम्मेदार होती हैं |
     हमें  यह सब सोचना चाहिए ....कब सोचेंगे  ?