....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कहानी माधवी की – नारी की महत्ता या यौन शोषण - एक पौराणिक कथा----
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बुराइयां मानव का एक स्वाभाविक भाव है वे समाज में सदैव से ही रही हैं, हाँ उन्हें छुपाने व जोर जबर्दस्ती से मिटाने के प्रयत्न की अपेक्षा पारदर्शी तौर पर उजागर किया जाता रहा जाय तो आचरण सुधार की सतत प्रक्रिया अधिकाधिक प्रभावी रहती है |
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भारतीय शास्त्र एवं तत्व चिंतन व व्यवहारिक दृष्टिकोण सदा ही पारदर्शी रहा है | उन्होंने अपने समाज में उपस्थित बुराइयों, कुप्रथाओं आदि को छुपाने की अपेक्षा सदैव उजागर व स्पष्ट किया है एवं वैदिक, पौराणिक व शास्त्रीय कथाओं आदि में संपूर्ण वर्णित किया, ताकि मानव उन पर तथ्यातथ्य विचार करके उन्हें अपनाए, सुधार लाये या त्यागे |
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माधवी की कथा में उसे तीन राजाओं और अंत में गुरु विश्वामित्र को सपुत्र प्राप्ति हेतु सौपा गया । यद्यपि उस काल में यह एक बुराई नहीं अपितु समाज में स्त्री की सर्व-स्वीकृत सार्वभौम स्वतंत्रता व महत्ता थी | स्त्री के शरीर की अपेक्षा आत्मा व मन की स्वच्छता व सौन्दर्य शुचिता की महत्ता थी | --------यद्यपि आज के लेखकों भीष्म साहनी के नाटक एवं अन्य कहानियों में इसे महाभारत की मूलकथा से कुछ अवांतर करके प्रस्तुत किया गया है जिसमें आज के युग के चिंतन-भाव, नारी-विमर्श एवं पौराणिक तथ्यों को विकृत व तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने का भाव उपस्थित है |
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नहुष कुल में उत्पन्न चन्द्रवंश के राजा ययाति की पुत्री माधवी की इस कथा का वर्णन महाभारत के उद्योगपर्व में है। माधवी राजपुत्री थी पर उसके पिता ययाति ने उसे इसलिए गालव ऋषि को सौप दिया ताकि वो उसे अन्य राजाओं को सौप कर अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा में देने के लिए 800 श्वेतवर्णी श्यामकर्ण अश्व प्राप्त कर सके।
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गुरु विश्वामित्र के शिष्य ऋषि गालव अत्यंत गरीब थे यह जानकर विश्वामित्र ने उन्हें गुरु दक्षिणा शुल्क से मुक्त करदिया था, परन्तु गालव को यह अच्छा नहीं लग रहा था अतः वे उन्हें देने के लिए गुरु दक्षिणा माँगने लेने की जिद पर लिए पर अड़ गए | नाराज़ होकर विश्वामित्र ने ८०० श्याम-कर्ण घोड़े मांग लिए, जो अत्यंत दुर्लभ प्रजाति थी |
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घोड़ों की व्यवस्था हेतु गालव की सहायता हेतु उनके मित्र गरुड़ आगे आये उन्होंने प्रतिष्ठानपुर के स्वामी महाराज ययाति की शरण में चलने की प्रेरणा दी। महाराज ययाति का उन दिनों धरती के राजाओं में सर्वाधिक सम्मान था। राजा ययाति प्रसन्न हुए परन्तु संयोगवश उस समय उनकी स्थिति वैसी नहीं थी जैसी कि गरुड़ समझते थे। अनेक राजसूय और अश्वमेध यज्ञों में उन्होंने अपना सम्पूर्ण कोष रिक्त कर दिया था।
---------कुछ क्षण गम्भीर सोच विचार के उपरांत उन्होंने अपनी त्रेलोक्य सुन्दरी कन्या माधवी को समर्पित करते हुए गालव से कहा कि ऋषिकुमार मेरी यह कन्या दिव्य गुणों से अलंकृत है। माधवी को यह वरदान था कि वह चक्रवर्ती सम्राट को जन्म देगी और जन्म के पश्चात एक अनुष्ठान द्वारा चिर कुमारी हो सकेगी| दैवी वरदान के अनुसार इसके द्वारा हमारे देश में चार महान राजवंशों की प्रतिष्ठा होगी। इसे संग लेकर आप पृथ्वी के अन्य राजाओं के पास जाइए। ऐसी सर्वगुण संपन्न एवं सुन्दरी के शुल्क के रूप में राजा लोग अपना राज्य तक दे सकते हैं, फिर आठ सौ श्यामकर्ण अश्वों की तो बात ही क्या है| परन्तु प्रार्थना है की अपना कार्य पूर्ण करने के उपरांत आप मेरी कन्या मुझे लौटा देंगे |
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माधवी को संग लेकर गरुड़ और गालव सर्वप्रथम संसार भर से चुने हुए अश्वों को रखने के कारण विख्यात एवं दानशीलता, शूरता, परदुःख-कातरता तथा समृद्धि के कारण धरती भर में प्रसिद्ध अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुँचे | उन्होंने जब अपना मन्तव्य प्रकट किया, किन्तु विडम्बना यह थी कि उनके पास वैसे श्यामकर्ण अश्वों की संख्या केवल दो सौ थी। हर्यश्व ने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए गालव और गरुड़ को यह सुझाव दिया कि आपको मेरे ही समान अन्य राजाओं से भी माधवी के शुल्क के रूप में वैसे श्यामकर्ण अश्वों की प्राप्ति का उपाय करना होगा। मैं अपने दो सौ अश्वों को देकर माधवी से केवल एक पुत्रोत्पत्ति की प्रार्थना करूँगा।
------दूसरा कोई चारा न होने के कारण गालव और गरुड़ ने अयोध्यापति हर्यश्व की बात मान ली और माधवी को अयोध्या में निर्दिष्ट अवधि के लिए छोड़ दिया| यथा समय राजा हर्यश्व के संयोग से माधवी ने वसुमना नामक पुत्र को उत्पन्न किया, जो बाद में चलकर अयोध्या के राजवंश में परम प्रसिद्ध हुआ।
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तदनंतर गालव और गरुड़ काशिराज दिवोदास के दरबार में पहुँचे, जिनकी कीर्ति-कौमुदी का प्रसार उन दिनों समग्र भूमण्डल में हो रहा था। गालव और गरुड़ के प्रस्ताव करने पर वह भी अपने दो सौ श्यामकर्ण अश्वों को देकर माधवी जैसी सुन्दरी तथा दैवी प्रभायुक्त स्त्री से एक पुत्र प्राप्त करने का लोभ संवरण न कर सके।
------- नियत समय बीत जाने पर माधवी के संयोग से काशिराज दिवोदास ने प्रतर्दन नामक पुत्र की प्राप्ति की, जो बाद में काशीराज्य का पुनरुद्धारक ही नहीं, प्रत्युत वंशपरम्परागत शत्रुओं का विध्वंसक भी हुआ।
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इस द्वितीय पुत्रोत्पत्ति के बाद गालव और माधवी, पक्षिराज गरुड़ के संग भोजराज उशीनर के यहाँ पहुँचे, भोजराज की अतिशय समृद्धि और अदम्य दानशीलता की उन दिनों पृथ्वी पर बड़ी चर्चा थी। किन्तु संयोगतः उनके पास भी दो सौ श्यामकर्ण अश्व थे। गालव और गरुड़ की प्रार्थना पर राजा उशीनर ने भी त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी के संयोग से एक पुत्र प्राप्त कर अपने उन दुर्लभ अश्वों को उन्हें सौंप दिया।
-------- भोजराज का यही तेजस्वी पुत्र बाद में शिवि के नाम से विख्यात हुआ, जिसकी दान-शीलता की अमर कहानी आज भी पुराणों की शोभा है। इस पुत्र की उत्पत्ति के बाद भी माधवी का रूप-यौवन पूर्ववत् बना रहा।
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गालव को अपनी गुरु-दक्षिणा के लिए अब दो सौ अश्व ही शेष थे, गालव द्वारा विश्वामित्र से प्राप्त की गयी अवधि समाप्ति पर थी और गरुड़ को यह ज्ञात हो चुका था कि धरती पर इन छह सौ श्यामकर्ण अश्वों के सिवा कहीं अन्यत्र एक भी नहीं बचा है |
------अन्ततः छह सौ अश्वों और त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी तथा गरुड़ को संग लेकर वह विश्वामित्र के समीप पहुँचे और शेष दो सौ अश्वों की प्राप्ति में असमर्थता प्रकट करते हुए विनय भरे स्वर में कहा-‘‘गुरुवर! आपकी आज्ञा से इस भूमण्डल पर प्राप्त छह सौ श्यामकर्ण अश्वों को मैं ले आया हूँ, जिन्हें आप कृपा कर स्वीकार करें। अब इस धरती पर ऐसा एक भी अश्व नहीं बचा है। अतः मेरी प्रार्थना है कि शेष दो सौ अश्वों के शुल्क के रूप में आप दिव्यांगना माधवी को अंगीकार करें।’’गालव की प्रार्थना का अनुमोदन गरुड़ ने भी किया। -------विश्वामित्र ने अपने प्रिय शिष्य की प्रार्थना स्वीकार कर ली और माधवी के संयोग से अन्य राजाओं की भाँति उन्होंने भी एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति की, जो कालान्तर में अष्टक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनकी राजधानी का सारा कार्य-भार ग्रहण किया और माधवी के शुल्क के रूप में प्राप्त उन छह सौ दुर्लभ श्यामकर्ण अश्वों का भी वही स्वामी हुआ।
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इन चारों पुत्रों की उत्पत्ति के बाद माधवी ने गालव को उऋण करा दिया। फिर वह अपने पिता राजा ययाति को वापस कर दी गयी | उसके अनन्त रूप और यौवन में चार पुत्रों की उत्पत्ति के बाद भी कोई कमी नहीं हुई थी।
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अपने इन चारों यशस्वी पुत्रों की उत्पत्ति के बाद जब वह पिता के घर वापस आयी, तो पिता ने उसका स्वयंवर करने का विचार प्रकट किया। किन्तु माधवी ने किसी अन्य पति को वरण करने की अनिच्छा प्रकट कर तपोवन का मार्ग ग्रहण किया।
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कहानी माधवी की – नारी की महत्ता या यौन शोषण - एक पौराणिक कथा----
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बुराइयां मानव का एक स्वाभाविक भाव है वे समाज में सदैव से ही रही हैं, हाँ उन्हें छुपाने व जोर जबर्दस्ती से मिटाने के प्रयत्न की अपेक्षा पारदर्शी तौर पर उजागर किया जाता रहा जाय तो आचरण सुधार की सतत प्रक्रिया अधिकाधिक प्रभावी रहती है |
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भारतीय शास्त्र एवं तत्व चिंतन व व्यवहारिक दृष्टिकोण सदा ही पारदर्शी रहा है | उन्होंने अपने समाज में उपस्थित बुराइयों, कुप्रथाओं आदि को छुपाने की अपेक्षा सदैव उजागर व स्पष्ट किया है एवं वैदिक, पौराणिक व शास्त्रीय कथाओं आदि में संपूर्ण वर्णित किया, ताकि मानव उन पर तथ्यातथ्य विचार करके उन्हें अपनाए, सुधार लाये या त्यागे |
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माधवी की कथा में उसे तीन राजाओं और अंत में गुरु विश्वामित्र को सपुत्र प्राप्ति हेतु सौपा गया । यद्यपि उस काल में यह एक बुराई नहीं अपितु समाज में स्त्री की सर्व-स्वीकृत सार्वभौम स्वतंत्रता व महत्ता थी | स्त्री के शरीर की अपेक्षा आत्मा व मन की स्वच्छता व सौन्दर्य शुचिता की महत्ता थी | --------यद्यपि आज के लेखकों भीष्म साहनी के नाटक एवं अन्य कहानियों में इसे महाभारत की मूलकथा से कुछ अवांतर करके प्रस्तुत किया गया है जिसमें आज के युग के चिंतन-भाव, नारी-विमर्श एवं पौराणिक तथ्यों को विकृत व तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने का भाव उपस्थित है |
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नहुष कुल में उत्पन्न चन्द्रवंश के राजा ययाति की पुत्री माधवी की इस कथा का वर्णन महाभारत के उद्योगपर्व में है। माधवी राजपुत्री थी पर उसके पिता ययाति ने उसे इसलिए गालव ऋषि को सौप दिया ताकि वो उसे अन्य राजाओं को सौप कर अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा में देने के लिए 800 श्वेतवर्णी श्यामकर्ण अश्व प्राप्त कर सके।
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गुरु विश्वामित्र के शिष्य ऋषि गालव अत्यंत गरीब थे यह जानकर विश्वामित्र ने उन्हें गुरु दक्षिणा शुल्क से मुक्त करदिया था, परन्तु गालव को यह अच्छा नहीं लग रहा था अतः वे उन्हें देने के लिए गुरु दक्षिणा माँगने लेने की जिद पर लिए पर अड़ गए | नाराज़ होकर विश्वामित्र ने ८०० श्याम-कर्ण घोड़े मांग लिए, जो अत्यंत दुर्लभ प्रजाति थी |
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घोड़ों की व्यवस्था हेतु गालव की सहायता हेतु उनके मित्र गरुड़ आगे आये उन्होंने प्रतिष्ठानपुर के स्वामी महाराज ययाति की शरण में चलने की प्रेरणा दी। महाराज ययाति का उन दिनों धरती के राजाओं में सर्वाधिक सम्मान था। राजा ययाति प्रसन्न हुए परन्तु संयोगवश उस समय उनकी स्थिति वैसी नहीं थी जैसी कि गरुड़ समझते थे। अनेक राजसूय और अश्वमेध यज्ञों में उन्होंने अपना सम्पूर्ण कोष रिक्त कर दिया था।
---------कुछ क्षण गम्भीर सोच विचार के उपरांत उन्होंने अपनी त्रेलोक्य सुन्दरी कन्या माधवी को समर्पित करते हुए गालव से कहा कि ऋषिकुमार मेरी यह कन्या दिव्य गुणों से अलंकृत है। माधवी को यह वरदान था कि वह चक्रवर्ती सम्राट को जन्म देगी और जन्म के पश्चात एक अनुष्ठान द्वारा चिर कुमारी हो सकेगी| दैवी वरदान के अनुसार इसके द्वारा हमारे देश में चार महान राजवंशों की प्रतिष्ठा होगी। इसे संग लेकर आप पृथ्वी के अन्य राजाओं के पास जाइए। ऐसी सर्वगुण संपन्न एवं सुन्दरी के शुल्क के रूप में राजा लोग अपना राज्य तक दे सकते हैं, फिर आठ सौ श्यामकर्ण अश्वों की तो बात ही क्या है| परन्तु प्रार्थना है की अपना कार्य पूर्ण करने के उपरांत आप मेरी कन्या मुझे लौटा देंगे |
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माधवी को संग लेकर गरुड़ और गालव सर्वप्रथम संसार भर से चुने हुए अश्वों को रखने के कारण विख्यात एवं दानशीलता, शूरता, परदुःख-कातरता तथा समृद्धि के कारण धरती भर में प्रसिद्ध अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुँचे | उन्होंने जब अपना मन्तव्य प्रकट किया, किन्तु विडम्बना यह थी कि उनके पास वैसे श्यामकर्ण अश्वों की संख्या केवल दो सौ थी। हर्यश्व ने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए गालव और गरुड़ को यह सुझाव दिया कि आपको मेरे ही समान अन्य राजाओं से भी माधवी के शुल्क के रूप में वैसे श्यामकर्ण अश्वों की प्राप्ति का उपाय करना होगा। मैं अपने दो सौ अश्वों को देकर माधवी से केवल एक पुत्रोत्पत्ति की प्रार्थना करूँगा।
------दूसरा कोई चारा न होने के कारण गालव और गरुड़ ने अयोध्यापति हर्यश्व की बात मान ली और माधवी को अयोध्या में निर्दिष्ट अवधि के लिए छोड़ दिया| यथा समय राजा हर्यश्व के संयोग से माधवी ने वसुमना नामक पुत्र को उत्पन्न किया, जो बाद में चलकर अयोध्या के राजवंश में परम प्रसिद्ध हुआ।
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तदनंतर गालव और गरुड़ काशिराज दिवोदास के दरबार में पहुँचे, जिनकी कीर्ति-कौमुदी का प्रसार उन दिनों समग्र भूमण्डल में हो रहा था। गालव और गरुड़ के प्रस्ताव करने पर वह भी अपने दो सौ श्यामकर्ण अश्वों को देकर माधवी जैसी सुन्दरी तथा दैवी प्रभायुक्त स्त्री से एक पुत्र प्राप्त करने का लोभ संवरण न कर सके।
------- नियत समय बीत जाने पर माधवी के संयोग से काशिराज दिवोदास ने प्रतर्दन नामक पुत्र की प्राप्ति की, जो बाद में काशीराज्य का पुनरुद्धारक ही नहीं, प्रत्युत वंशपरम्परागत शत्रुओं का विध्वंसक भी हुआ।
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इस द्वितीय पुत्रोत्पत्ति के बाद गालव और माधवी, पक्षिराज गरुड़ के संग भोजराज उशीनर के यहाँ पहुँचे, भोजराज की अतिशय समृद्धि और अदम्य दानशीलता की उन दिनों पृथ्वी पर बड़ी चर्चा थी। किन्तु संयोगतः उनके पास भी दो सौ श्यामकर्ण अश्व थे। गालव और गरुड़ की प्रार्थना पर राजा उशीनर ने भी त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी के संयोग से एक पुत्र प्राप्त कर अपने उन दुर्लभ अश्वों को उन्हें सौंप दिया।
-------- भोजराज का यही तेजस्वी पुत्र बाद में शिवि के नाम से विख्यात हुआ, जिसकी दान-शीलता की अमर कहानी आज भी पुराणों की शोभा है। इस पुत्र की उत्पत्ति के बाद भी माधवी का रूप-यौवन पूर्ववत् बना रहा।
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गालव को अपनी गुरु-दक्षिणा के लिए अब दो सौ अश्व ही शेष थे, गालव द्वारा विश्वामित्र से प्राप्त की गयी अवधि समाप्ति पर थी और गरुड़ को यह ज्ञात हो चुका था कि धरती पर इन छह सौ श्यामकर्ण अश्वों के सिवा कहीं अन्यत्र एक भी नहीं बचा है |
------अन्ततः छह सौ अश्वों और त्रैलोक्य-सुन्दरी माधवी तथा गरुड़ को संग लेकर वह विश्वामित्र के समीप पहुँचे और शेष दो सौ अश्वों की प्राप्ति में असमर्थता प्रकट करते हुए विनय भरे स्वर में कहा-‘‘गुरुवर! आपकी आज्ञा से इस भूमण्डल पर प्राप्त छह सौ श्यामकर्ण अश्वों को मैं ले आया हूँ, जिन्हें आप कृपा कर स्वीकार करें। अब इस धरती पर ऐसा एक भी अश्व नहीं बचा है। अतः मेरी प्रार्थना है कि शेष दो सौ अश्वों के शुल्क के रूप में आप दिव्यांगना माधवी को अंगीकार करें।’’गालव की प्रार्थना का अनुमोदन गरुड़ ने भी किया। -------विश्वामित्र ने अपने प्रिय शिष्य की प्रार्थना स्वीकार कर ली और माधवी के संयोग से अन्य राजाओं की भाँति उन्होंने भी एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति की, जो कालान्तर में अष्टक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनकी राजधानी का सारा कार्य-भार ग्रहण किया और माधवी के शुल्क के रूप में प्राप्त उन छह सौ दुर्लभ श्यामकर्ण अश्वों का भी वही स्वामी हुआ।
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इन चारों पुत्रों की उत्पत्ति के बाद माधवी ने गालव को उऋण करा दिया। फिर वह अपने पिता राजा ययाति को वापस कर दी गयी | उसके अनन्त रूप और यौवन में चार पुत्रों की उत्पत्ति के बाद भी कोई कमी नहीं हुई थी।
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अपने इन चारों यशस्वी पुत्रों की उत्पत्ति के बाद जब वह पिता के घर वापस आयी, तो पिता ने उसका स्वयंवर करने का विचार प्रकट किया। किन्तु माधवी ने किसी अन्य पति को वरण करने की अनिच्छा प्रकट कर तपोवन का मार्ग ग्रहण किया।