. ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
महीयसी महादेवी वर्मा जी की पुण्यतिथि पर .....उन्हीं की भाव-भूमि पर ...एक श्रृद्धा सुमन ...
निश्वासों में बस कर मन में |
कितने सौरभ कण से हे प्रिय!
बिखरा जाते इस जीवन में |
तेरे ही गीतों का विहान |
खिल उठते नभ में बन वितान |
खिल उठतीं कलियाँ उपवन में|
यदि तुम आजाते जीवन में ||
महका महका आता सावन,
लहरा लहरा गाता सावन |
तन मन पींगें भरता नभ में ,
नयनों मद भर लाता सावन |
जाने कितने वर्षा-वसंत,
आते जाते पुष्पित होकर |
पुलकित होजाता जीवन का,
कोना कोना सुरभित होकर |
उल्लास समाता कण कण में ,
यदि तुम आजाते जीवन में ||
संसृति भर के सन्दर्भ सभी ,
प्राणों की भाषा बन् जाते |
जाने कितने नव-समीकरण,
जीवन की परिभाषा गाते |
पथ में जाने कितने दीपक,
जल उठते बनकर दीप-राग |
चलते हम तुम मन मीत बने,
बज उठते नव संगीत साज |
जलता राधा का प्रणय-दीप ,
तेरे मन के वृन्दाबन में |
यदि तुम आजाते जीवन में ||