----बस्तुतः एक परिभाषा के अनुसार,--जो विभु( द्रश्य पदार्थ,प्रक्रति) का विश्लेषण करते करते लघु( अणु) तक पहुंचेतथा रास्ते में प्राप्त जान्कारियों व परिणामी जानकारियों को मानव के भौतिक सुख साधन हेतु उपयोग करे वह विग्यान है, एवम जो लघु( अणु- आत्मा, ब्रह्म,जीव ,माया) की व्याख्या करते करते विभु( महान- ईश्वर,प्रक्रति,जीव) तक पहुंचे तथा इस जानकारी को मानव के आचरण की उन्नति हेतु उपयग करे वह ग्यान( दर्शन,ब्रह्म ग्यान आदि) है।
उपनिषद के अनुसार ईश्वर, जीव,स्रष्टि,माया के बारे में जानना ग्यान,बाकी सन्सार के बारे में जानना-अग्यान है। विग्यान का अर्थ है विशिष्ट ग्यान,विशेष वस्तु के बारे में विशेष ग्यान। क्योंकि ज्योतिष ,ज्योति पिन्डों(नक्षत्रों आदि द्रश्य पिन्ड) के बारे में विशेष ग्यान है अतः सभी अग्यान श्रेणियों के अन्तर्गत वह भी विग्यान ही है। बहस यह होनीचाहिये कि वह कितना उपयोगी है,जीवन के लिये।
-----ग्यान,अग्यान,विग्यान ,धर्म,दर्शन के तात्विक विश्लेषण हम अपने अन्य ब्लोग--http://vijaanaati-vijaanaati-science.blogspot.com पर करेंगे।