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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

टूथ-ब्रश वनाम नीम की दातुन .

आज प्रात जब मैं टहलने निकला तो पहले एक घर से एक लडकी मुहं मैं टूथ-ब्रश दबाये दातुन करती हुई सामने आई । मैं यह सोचते हुए जा रहा था की हम क्यों व्यर्थ मैं अनायास ही एक रसायन एवं प्लास्टिक जैसी बस्तु को मुहँ मैं चवाते है ? आगे चलकर एक मजदूर बाप-बेटे के मुहं मैं नीम की दातुन चवाते हुए दर्शन हुए ,अचानक विचार आया की अगर सभी लोग नीम की दातुन करने लग जाएँ तो शायद अरबों रुपयों की व विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी और दांतों की भी सुरक्षा की गारंटी । फ़िर सोचा की दातुन कहाँ से आयेगी , कौन पेड़ से तोडेगा ? विचार हुआ की यह भी एक धंधा हो सकता है मंदी मैं । जैसे तमाम बच्चे , औरतें ,आदमी -तेल, पेस्ट , व्यर्थ की अंगरेजी पुस्तके आदि- आदि घर -घर बेचते घूमते हैं , या दूध ,अखबार आदि डालते हैं , वैसे ही नीम की डालोंसे दातुन तोड़ कर घर -घर बेचीं जा सकतीं हैं। है न लोकल अर्थ व्यवस्था व लघु -उद्योग की बात । बताएं क्या बात मैं दम है?

शिक्षा व राजनीति

क्या राजनीति शिक्षा को ख़राब कर रही है ? एक यक्ष प्रश्न है ? वस्तुतः यह एक दुश्चक्र होता है । भारत के स्वतंत्र होते ही प्रारंभ होगया था , चाहे अज्ञान- वश या सकारण अभिप्रायः वश --आप ध्यान दें किप्रारंभ से ही भारत का शिक्षा -मंत्री एक विशिष्ट जाति या सम्प्रदाय का रहा है , जो भारतीय भाव भूमि, उसकी बारीकियों , उसके इतिहास व मानव धर्म व्यवहारिता , नैतिकता आदि से अनजान थे । अतः तेजी से आगे बढ़ने ,अनुपयोगी सेकुलर वाद की अवधारणा के कारण शिक्षा में भारतीयता , आत्मवाद , उद्देश्यपूर्ण ज्ञान , मानववाद , विश्वबंधुत्व की उचित व्याख्या , अध्यात्म आदि को शिक्षा मैं कोई स्थान नहीं दिया गया । बस टेक्नीकल , बाजारबाद , शासन करने वाली राजनीति , जल्दी -जल्दी अमीर होने की होड़ वाली ,अभारतीय शिक्षा को तरजीह दी गयी । परिणाम स्वरुप राजनीति भ्रष्ट हुई और वह राजनीति अब शिक्षा को भ्रष्ट करके समस्त पीढी को भ्रष्ट कर रहीहै। यही दुश्चक्र तोड़ना होगा ।

अमीरी , गरीबी बेचना .

लोग उदाहरण देते हैं किगरीबी कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जिसे सहेज कर रखाजाये, अगर बेच कर कुछ कमाई होजाए तो क्या बुरा है ?, हर चीज़ को बाज़ार मैं लाने का ही तो मामला है सब।
गरीबी दिखाने के लिए , करोड़पति बनने की क्या आवश्यकता है? लाटरी , जुआ आदि के ग़लत चलन को बढावा देने की क्या आवश्यकता है? किसी को गरीबों व गरीवी हटाने की चिंता नहीं है। बस अपनी गरीबी हटाने की चिंता है।